राज्य में अबतक छह हजार स्कूलों का हो चुका है विलय, और सात हजार की तैयारी

सुनील कुमार झा 7000 प्राथमिक व मध्य विद्यालय में 30 से कम बच्चों का हुआ है नामांकन रांची : झारखंड में शिक्षा के अधिकार अधिनियम का मापदंड पूरा नहीं करनेवाले लगभग छह हजार स्कूलों का विलय हो चुका है. सात हजार ऐसे विद्यालय हैं, जिसमें पढ़ रहे बच्चाें की संख्या 30 या उससे कम है. […]

By Prabhat Khabar Print Desk | August 21, 2018 8:23 AM
सुनील कुमार झा
7000 प्राथमिक व मध्य विद्यालय में 30 से कम बच्चों का हुआ है नामांकन
रांची : झारखंड में शिक्षा के अधिकार अधिनियम का मापदंड पूरा नहीं करनेवाले लगभग छह हजार स्कूलों का विलय हो चुका है. सात हजार ऐसे विद्यालय हैं, जिसमें पढ़ रहे बच्चाें की संख्या 30 या उससे कम है. इन विद्यालयों में बच्चों की औसत उपस्थिति 15 से 20 तक रहती है. स्कूली शिक्षा व साक्षरता विभाग 30 से कम बच्चाें वाले इन स्कूलाें के विलय की तैयारी कर रहा है.
क्या है वजह : राज्य गठन के समय झारखंड में लगभग 19 हजार प्राथमिक व मध्य विद्यालय थे. सर्वशिक्षा अभियान के तहत राज्य में 22 हजार विद्यालय आैर खुले. इससे विद्यालयों की संख्या बढ़ कर 41 हजार हो गयी थी. जिस अनुपात में विद्यालय की संख्या में वृद्धि हुई, उस अनुरूप बच्चे नहीं बढ़े.
वर्तमान में राज्य के सरकारी विद्यालयों में 43 लाख बच्चे नामांकित है, जबकि मध्याह्न भोजन खानेवाले बच्चों की संख्या औसतन 33 लाख है. बच्चों के नामांकन को आधार से जोड़ने के बाद स्कूलों से फर्जी बच्चों का नाम काट दिया गया है.
प्रावधानाें की अनदेखी हुई : सर्व शिक्षा अभियान के तहत प्रत्येक एक किलोमीटर पर एक प्राथमिक विद्यालय व तीन किलोमीटर पर एक मध्य विद्यालय खोलने का प्रावधान है.
पर सर्व शिक्षा अभियान के तहत खोले गये विद्यालयों में प्रावधान का पालन नहीं किया गया. एक किलोमीटर के दायरे में एक से अधिक प्राथमिक विद्यालय खोल दिये गये. इसके लिए सही रिपोर्ट नहीं दी गयी. इन स्कूलाें के भवन निर्माण के लिए भारत सरकार द्वारा राशि उपलब्ध करायी जाती थी.
घट गये मैट्रिक के 50 हजार परीक्षार्थी : प्राथमिक व मध्य विद्यालय की तरह राज्य में हाइस्कूल की संख्या दोगुनी हो गयी, पर उस अनुपात में मैट्रिक के परीक्षार्थी नहीं बढ़े.
राज्य गठन के समय झारखंड में हाइस्कूलों की संख्या 785 थी. इसमें 564 राजकीयकृत, 195 प्रोजेक्ट व 26 राजकीय उच्च विद्यालय शामिल थे. सभी सरकारी विद्यालय थे. आज राज्य में सरकारी विद्यालयों की संख्या बढ़ कर 2,266 हो गयी. इसमें 203 कस्तूरबा गांधी बालिका आवासीय विद्यालय भी शामिल है.
राज्य में 1189 मध्य विद्यालय को हाइस्कूल में अपग्रेड किया गया. कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय कक्षा आठ तक के लिए खोला गया था. आगे चल कर राज्य सरकार ने पहले मैट्रिक व बाद में प्लस टू तक अपग्रेड कर दिया. इसके अलावा 89 मॉडल हाइस्कूल भी खोले गये हैं. वर्ष 2017 की तुलना में इस वर्ष मैट्रिक की परीक्षा में शामिल होनेवाले परीक्षार्थियों की संख्या लगभग 50 हजार कम हो गयी.
क्या है विलय का मापदंड
वैसे प्राथमिक /मध्य विद्यालय, जिनमें 20 से कम विद्यार्थी नामांकित हो तथा एक किमी की परिधि में अन्य विद्यालय स्थित हो
वैसे प्राथमिक /मध्य विद्यालय, जिनमें 21 से 60 विद्यार्थी
अध्ययनरत हो तथा 500 मीटर की परिधि में अन्य विद्यालय अवस्थित हो वैसे विद्यालय, जिनमें 21 से 40 विद्यार्थी नामांकित हो तथा एक किलोमीटर परिधि में दूसरा विद्यालय अवस्थित हो
वैसे मध्य विद्यालय, जिनमें प्राथमिक स्तर पर 60 से अधिक तथा उच्च प्राथमिक स्तर पर 60 से कम विद्यार्थी अध्ययनरत हो, तथा दो किलोमीटर की दूरी में दूसरा मध्य / उच्च विद्यालय हो
एक ही परिसर में संचालित दो या उससे अधिक विद्यालय
12 सांसद कर रहे विरोध
राज्य के सभी भाजपा सांसदों ने स्कूलों के विलय का विरोध किया है. दो केंद्रीय मंत्री सुदर्शन भगत व जयंत सिन्हा समेत सभी सांसदों ने गत दिनों मुख्यमंत्री रघुवर दास को पत्र लिख कर इस फैसले पर रोक लगाने की मांग की है. सांसदों ने कहा है कि इससे सर्व शिक्षा अभियान का उद्देश्य पूरा नहीं होगा. ग्रामीण अंचलों के गरीब बच्चे शिक्षा से वंचित होंगे.
वर्ष बच्चे
2007-08 41,16,712
2008-09 51,93,088
2009-10 64,26,504
2010-11 44,98, 547
2011-12 45,00,000
2012-13 45,00, 000
2013-14 55,00, 000
2014-15 45,00, 000
2015-16 45,00, 000
2016-17 45,00,000
2018-19 43,00, 000

Next Article

Exit mobile version