रांची : वित्तीय वर्ष 2018-19 के लिए मनरेगा मजदूरी दर में वृद्धि की मांग को लेकर नरेगा संघर्ष मोर्चा ने शनिवार को ग्रामीण विकास मंत्री को खुला पत्र लिखा था.
मोर्चा के अनुसार इसके कुछ ही घंटों बाद मंत्रालय ने नये वित्तीय वर्ष 2018-19 के लिए मनरेगा मजदूरी की संशोधित दर जारी की. पर देश के कुछ सबसे गरीब राज्यों जैसे बिहार, झारखंड व उत्तर प्रदेश की मनरेगा मजदूरी दर में कोई वृद्धि नहीं हुई है.
गौरतलब है कि झारखंड व बिहार में नरेगा की मजदूरी दर गत वर्ष की तरह 168 रुपये प्रति दिन ही है. कुल 27 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की मजदूरी दर तो संबंधित राज्यों की न्यूनतम खेतिहर मजदूरी से भी कम है.
मजदूरी का यह सर्वाधिक अंतर अधिक त्रिपुरा में है, जहां मनरेगा की मजदूरी दर न्यूनतम कृषि मजदूरी दर का सिर्फ 58 फीसदी ही है. सिक्किम में यह अनुपात 59 फीसदी, गुजरात में 65 प्रतिशत तथा आंध्र प्रदेश के लिए 68 फीसदी है. मोर्चा के अनुसार श्रम कानून में संशोधन व नोटबंदी के बाद 2018-19 की मनरेगा मजदूरी दर मजदूरों के लिए एक और झटका है.
इससे देश में बढ़ती गैर-बराबरी तथा बेरोजगारी प्रति मोदी सरकार की उदासीनता साफ झलकती है. इससे 2018-19 का बजट गरीबों के लिए होने के दावा भी खोखला साबित होता है. जहां एक ओर सांसदों का मासिक वेतन 50 हजार रुपये से लेकर एक लाख रुपये है, वहीं दूसरी अोर ज्यादातर मनरेगा मजदूरों को न्यूनतम मजदूरी भी नहीं मिल रही है. नरेगा संघर्ष मोर्चा ने इस मजदूर विरोधी निर्णय की कड़ी निंदा की है तथा सरकार से मांग की है कि नरेगा मजदूरी 600 रुपये प्रति दिन तक बढ़ायी जाये. यह रकम सातवें वेतन आयोग के 18 हजार रुपये के न्यूनतम मासिक वेतन की अनुशंसा के अनुरूप है.
विभिन्न राज्यों में 2018-19 की मनरेगा मजदूरी : हरियाणा (281 रु), चंडीगढ़ (273 रु) केरल (271 रु), निकोबार (264 रु), गोवा (254 रु), कर्नाटक (249 रु), पंजाब (240 रु), तमिलनाडु (224 रु), गुजरात (194 रु), राजस्थान (192 रु), प. बंगाल (191 रु), अोड़िशा (182 रु), यूपी (175 रु) तथा झारखंड व बिहार (168 रु).
ये हाल है
ग्रामीण विकास मंत्रालय ने वित्तीय वर्ष 2018-19 के लिए जारी की मनरेगा मजदूरी की संशोधित दर
कुल 27 राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों की मजदूरी दर उन राज्यों की न्यूनतम खेतिहर मजदूरी से भी कम