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रांची :कुपोषण के खिलाफ मुहिम के दो चेहरे, अर्पण व अल्फा

IIप्रवीण मुंडाII रांची : अर्पण टोप्पो लगभग ढाई साल का है. पिता संजू टोप्पो कृषक हैं अौर मां रीना देवी खेती में पति का हाथ बंटाती है. अर्पण उन बच्चों में शामिल है जिसे अति कुपोषित शिशु के रूप में चिह्नित किया गया था. हालांकि, वह जन्म के समय स्वस्थ था अौर उस समय उसका […]

IIप्रवीण मुंडाII
रांची : अर्पण टोप्पो लगभग ढाई साल का है. पिता संजू टोप्पो कृषक हैं अौर मां रीना देवी खेती में पति का हाथ बंटाती है. अर्पण उन बच्चों में शामिल है जिसे अति कुपोषित शिशु के रूप में चिह्नित किया गया था. हालांकि, वह जन्म के समय स्वस्थ था अौर उस समय उसका वजह तीन किलो था. बाद में उसका वजन काफी घट गया था अौर वह दुबला-पतला हो गया था.
अप्रैल 2017 में अर्पण को विकास भारती के पोषण सलाहकारों के द्वारा चिह्नित कर आउट पेशेंट थियेरोपेटिक प्रोग्राम (अोटीपी) में एडमिट किया गया. अर्पण को विशेष आहार दिया जाने लगा. यह आहार जिसे आरयूटीएफ कहा जाता है, इसमें कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, मिनरल, मल्टी विटामिन अौर वसा होता है. इसे विशेष रूप से कुपोषित बच्चों के लिए तैयार किया गया है जो हाई एनेर्जेटिक होता है.
18 सितंबर 2017 तक अर्पण का वजन बढ़कर सात किलोग्राम से ज्यादा हो गया था. उसके शारीरिक माप में भी सुधार आया. अब उसकी शारीरिक वृद्धि सामान्य हो गयी है.
गुमला के असनी पंचायत स्थित भलदम चट्टी गांव में अल्फा टोप्पो रहती हैं. उसकी उम्र एक साल दस महीने है.अल्फा की मां मुनेश्वरी पन्ना बताती है कि जन्म के समय अल्फा का वजन ढाई किलो था. पिछले साल अप्रैल में जांच कराने के बाद पता चला कि वह भी अति कुपोषित हो चुकी थी. अोटीपी में एडमिशन के बाद अल्फा को भी आरयूटीएफ का आहार दिया जाने लगा. चिकित्सीय सहायता, अच्छे भोजन अौर माता पिता की जागरूकता की वजह से अब उसका वजन 12.6 किलो हो गया है अौर वह सामान्य हो गयी है.
झारखंड के ग्रामीण क्षेत्रों में कमोवेश यही स्थिति है. खराब आर्थिक स्थिति, खानपान के संबंध में जागरूकता का अभाव. पारंपरिक भोजन की आदतों में बदलाव आदि की वजह से बच्चें कुपोषित हो रहे हैं. अर्पण टोप्पो अौर अल्फा टोप्पो, दोनों उन बच्चों में शामिल है. जो सेव द चिल्ड्रेन के सहयोग से विकास भारती के द्वारा चलाये जा रहे करुणा प्रोजेक्ट के तहत चिह्नित किये गये थे.
सहिया, एएनएम करती हैं विशेष निगरानी
विकास भारती गुमला के डॉ सी के शर्मा ने बताया कि इस कार्यक्रम के तहत चिह्नित बच्चों की विशेष देखभाल की जाती है. उन्हें सहिया, एएनएम की निगरानी में रखा जाता है.
विकास भारती के पोषण सलाहकार के पास उनके स्वास्थ्य से संबंधित पूरा चार्ट होता है. इसमें अोटीपी में एडमिशन के वक्त बच्चे का पूरा विवरण, जिसमें वजन, शारीरिक माप, भूख की स्थिति, बीमारी आदि की जानकारी होती है.
इसके बाद जरूरत के मुताबिक बच्चे को आहार, दवाएं अौर उसके माता-पिता को परामर्श दिया जाता है जिससे उनकी उचित देखभाल हो सके. बच्चे के ठीक होने तक उसकी पूरी निगरानी रखी जाती है. अभी जिन पंचायतों अौर गांवों में यह कार्यक्रम चल रहा है उससे बच्चों को कुपोषण से निकालने में काफी मदद मिली है.
कुपोषण को लेकर कई अलग पहलू हैं. किशोरावस्था से लेकर मां बनने तक किशोरी/महिलाअों में सही खान-पान को लेकर जागरूकता जरूरी है. डिलिवरी घर में करने की मान्यता भी बदलनी होगी क्योंकि इससे महिला अौर बच्चे उन सुविधाअों, दवाअों अौर देखभाल से वंचित हो जाते हैं जो दोनों के लिए जरूरी है. इसके अलावा स्वास्थय संबंधी आदतों अौर साफ पेयजल आदि भी जरूरी है. समुदाय, संस्थाएं अौर सरकार के स्तर पर सतत प्रयास से कुपोषण पर अंकुश लगाया जा सकता है.
महादेव हांसदा, सेव द चिल्ड्रेन जेनरल मैनेजर झारखंड

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