रांची : पैसेंजर ट्रेन से हर दिन शहर में आ रहा छह लाख का अवैध चारकोल

II दुष्यंत तिवारी/अमित दास II रांची : ये तसवीरें रांची रेलवे स्टेशन की हैं. ऐसा ही नजारा यहां रोजाना दिन के 11 बजे से दोपहर 12 बजे के बीच देखने को मिलता है. प्लेटफॉर्म से उतर कर रेलवे लाइन पार कर रही इन महिलाओं के सिर पर रखी बोरियाें में लकड़ी का कोयला (चारकोल) भरा […]

By Prabhat Khabar Print Desk | March 17, 2018 8:47 AM
II दुष्यंत तिवारी/अमित दास II
रांची : ये तसवीरें रांची रेलवे स्टेशन की हैं. ऐसा ही नजारा यहां रोजाना दिन के 11 बजे से दोपहर 12 बजे के बीच देखने को मिलता है. प्लेटफॉर्म से उतर कर रेलवे लाइन पार कर रही इन महिलाओं के सिर पर रखी बोरियाें में लकड़ी का कोयला (चारकोल) भरा हुआ है. यह कोयला झारसुगुड़ा पैसेंजर ट्रेन समेत अन्य लोकल ट्रेनों में लादकर रांची लाया जाता है.
जानकार बताते हैं कि ये लकड़ी का कोयला जोन्हा के जंगलों में पेड़ाें को काट कर तैयार किया जाता है. यह एक अवैध और काफी बड़ा कारोबार है. इसका कारोबार करने वाले रोजाना करीब एक हजार बोरियां रांची मंगाते हैं और शहर के विभिन्न होटलों में बेचते हैं. कारोबारी एक बोरी मंगाने में करीब 500 रुपये खर्च करते हैं.
इसमें एक बोरी कोयले की कीमत 300 रुपये होती है, जबकि प्रति बोरी ढुलाई के लिए महिलाओं को 100 रुपये दिये जाते हैं. वहीं, 100 कमीशन उन लोगों को दिये जाते हैं, जो ट्रेन और उसके बाद रेलवे प्लेटफॉर्म से इन बोरियों को बाहर तक पहुंचाने में मदद करते हैं. रास्ते में खड़े पहरेदारों को भी कमीशन दिया जाता है. इसके बाद एक बोरी 1000 रुपये में बेची जाती है. यानी अवैध कोयला के कारोबारी एक बोरी पर शुद्ध रूप से 400 से 500 रुपये तक कमाते हैं. अनुमान है कि हर दिन शहर में लकड़ी के कोयले का छह से सात लाख रुपये तक का कारोबार होता है.
ऐसे स्टेशन से बाहर आता है कोयला
जैसे ही पैसेंजर ट्रेन रांची रेलवे स्टेशन पर रुकती है, ट्रेन में तैनात महिलाएं एक-एक बोरियां अपने सिर पर उठा लेती हैं. इसके बाद वे लोहरदगा गेट से होते हुए बीएसआरटीसी कॉलोनी में पहले से खड़े रिक्शा में बोरियों को लोड करती हैं. इसके बाद रिक्शा चालक सिरमटोली रोड होते हुए शहर के विभिन्न हिस्सों में चले जाते हैं. यह कारोबार महिलाएं ही संभालती हैं.
मौके पर ही माल ढोने वालों का हिसाब कर दिया जाता है. खास बात यह है कि पटेल चौक पर ही पुलिस की पीसीआर वैन खड़ी रहती है, लेकिन उसमें तैनात पुलिसकर्मी इन्हें रोकते-टोकते नहीं हैं. स्थानीय लोगों का आरोप है कि कोयले के इस कारोबार में आरपीएफ, जीआरपी और जिला पुलिस के हाथ भी काले हैं.

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