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झारखंड : राजधानी में ऑब्जर्वेशन होम के लिए जमीन दे सरकार
बाल संरक्षण पर आयोजित राज्यस्तरीय परिचर्चा में प्रभारी मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल ने कहा रांची : प्रभारी मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल ने राजधानी में आॅब्जर्वेशन होम बनाने के लिए सरकार से नौ एकड़ जमीन उपलब्ध कराने का आग्रह किया है. उन्होंने कहा कि हाइकोर्ट की देखरेख में समेकित आॅब्जर्वेशन होम लड़कियों के लिए बनायी जायेगी. […]
बाल संरक्षण पर आयोजित राज्यस्तरीय परिचर्चा में प्रभारी मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल ने कहा
रांची : प्रभारी मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल ने राजधानी में आॅब्जर्वेशन होम बनाने के लिए सरकार से नौ एकड़ जमीन उपलब्ध कराने का आग्रह किया है.
उन्होंने कहा कि हाइकोर्ट की देखरेख में समेकित आॅब्जर्वेशन होम लड़कियों के लिए बनायी जायेगी. डेढ़ वर्ष में यह योजना पूरी होगी, जिसमें ट्रैफिकिंग से मुक्त करायी गयी बच्चियों को रखा जायेगा. उन्हें पुनर्वासित करने और समुचित प्रशिक्षण की भी व्यवस्था इस होम में होगी. श्री पटेल ने उक्त बातें न्याय सदन में रविवार को बाल संरक्षण पर आयोजित राज्य स्तरीय परिचर्चा में कही.
अपराध कर चुके बच्चों की विशेष देखभाल की जरूरत : उन्होंने कहा कि उन बच्चों की विशेष देखरेख की जरूरत है, जो अपराध से जुड़ गये हैं.
साथ ही पोक्सो एक्ट के शिकार बच्चों पर विशेष निगरानी रखने की आवश्यकता है. उन्होंने कहा कि जुवेनाइल जस्टिस एक्ट (जेजे एक्ट) के तहत बच्चों की पेशी में होनेवाली दिक्कतों को देखते हुए सभी जिलों में वीडियो काॅन्फ्रेंसिंग से पेशी की सुविधाएं बहाल की गयी हैं.
रांची में बाल श्रम से मुक्त बच्चों के लिए बालाश्रय बनाया गया है, जिसमें और सुधार की जरूरत है. नालसा की तरफ से बच्चों के लिए मुफ्त कानूनी सलाह सेवा शुरू की गयी है. इसमें सभी जिलों में 15-15 लोगों की टीम बनायी गयी है. उन्होंने सभी अधिकारियों, समाज के बुद्धिजीवियों, स्वयंसेवी संस्थानों से राज्य में चल रहे बाल सुधार गृह का महीने में विजिट करने का आग्रह किया.
इससे सरकार की योजनाएं और उसके क्रियान्वयन की खामियों का पता चल पायेगा. उन्होंने पुलिस कर्मियों से कहा कि यदि वे किसी बाल अपराधियों की धर-पकड़ करते हैं, तो वर्दी में इसे अंजाम नहीं दिया जाये. हाइकोर्ट का स्पष्ट निर्देश है कि बच्चों को पकड़ने गये पुलिस कर्मी सादा ड्रेस पहनें.
प्रोसिक्यूशन प्रक्रिया को धारदार बनाने की भी जरूरत
बच्चियों को गर्भ में ही मार देना शर्मनाक
झारखंड हाइकोर्ट लीगल सर्विसेज कमेटी के अध्यक्ष जस्टिस एचएस मिश्रा ने कहा कि कुल आबादी में 39 फीसदी आबादी बच्चों की है. जो शून्य से लेकर 18 आयु वर्ष तक के हैं. उन्होंने कहा कि देश में एक करोड़ बच्चियों को गर्भ में ही मार दिया जा रहा है, जो शर्मनाक है. पांच लाख बच्चियों को जन्म लेने से पहले ही गर्भपात कराया जा रहा है.
झारखंड में बाल श्रम, मानव व्यापार, बच्चियों का यौन शोषण जैसे घृणित कार्य हो रहे हैं. इसमें प्लेसमेंट एजेंसियां संगठित रूप से काम कर रही हैं, जिस पर विशेष निगरानी रखनी चाहिए. झारखंड को बच्चों के लिए सेफ जोन बनाने की आवश्यकता है. उन्होंने साइबर क्राइम के जरिये हो रहे मानव व्यापार पर चिंता जतायी.
दर्ज नहीं होती हैं बच्चों से जुड़ी 82 फीसदी शिकायतें
बचपन बचाओ आंदोलन के निदेशक ओम प्रकाश पाल ने कहा कि बच्चों के खिलाफ होनेवाले अपराध की प्राथमिकी दर्ज होनी चाहिए, जिसका समय पर निष्पादन भी जरूरी है. एकीकृत कार्य योजना बना कर बच्चों के अधिकार को संरक्षित करने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि आज भी झारखंड में 82 फीसदी शिकायतें, जो बच्चों से जुड़ी हैं, वह दर्ज नहीं होती हैं.
राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग की अध्यक्ष आरती कुजूर ने चाइल्ड ट्रैफिकिंग को रोकने के लिए पंचायती राज व्यवस्था से जुड़े लोगों को जोड़ने की बातें कहीं. इस मौके पर अजय कुमार राय, महिला और बाल विकास विभाग के सचिव विनय चौबे, समेकित बाल संरक्षण सोसाइटी के निदेशक राजेश सिंह समेत अन्य मौजूद थे.
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