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स्वयं निर्भर हो औरों के लिए बनी प्रेरणा

रांची: छोटानागपुर सांस्कृतिक संघ 1968 से ही महिलाओं को मुख्य धारा से जोड़ने में अहम भूमिका निभा रहा है. अब आठ मई को 47 वें वर्ष में प्रवेश कर रहा है. महिलाओं की समस्याओं, उनकी आवश्यकताओं एवं उनके विकास के महत्व को पहचाना. साथ ही महिलाओं के अधिकारों के संरक्षण के लिए उनको सशक्त किया. […]

रांची: छोटानागपुर सांस्कृतिक संघ 1968 से ही महिलाओं को मुख्य धारा से जोड़ने में अहम भूमिका निभा रहा है. अब आठ मई को 47 वें वर्ष में प्रवेश कर रहा है. महिलाओं की समस्याओं, उनकी आवश्यकताओं एवं उनके विकास के महत्व को पहचाना.

साथ ही महिलाओं के अधिकारों के संरक्षण के लिए उनको सशक्त किया. इस संस्था से जुड़ कर महिलाएं स्वयं सशक्त हुईं और अन्य महिलाओं का जीवन सुधारने के लिए प्रेरणा स्रोत बनीं.

लड़कियों को प्रशिक्षण देकर आत्मनिर्भर बना रही हैं अमूल्या
शांतिपुर निवासी अमूल्या तिग्गा अपने पति एवं दो बच्चों के साथ खुशीपूर्वक जीवन व्यतीत कर रही थी. उनके पति अचानक बीमार पड़े और परिवार पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा. पति का व्यवसाय बंद होने से आर्थिक अभाव का सामना करना पड़ा. पारिवारिक समस्या से निराश हो उठी अमूल्या को संघ का सहारा मिला. अपने विवाह के पूर्व वह ब्यूटीशियन का कोर्स की थी. उसे ही पेशा बनाने के लिए स्वयं को दक्ष की. संस्था की मदद से डिबडीह एवं आस पास के निर्धन परिवार की लड़कियों को ब्यूटीशियन का प्रशिक्षण देने लगी. इससे उनका आत्मविश्वास बढ़ा. साथ ही रोजगार भी बढ़ने लगा. आज अमूल्या प्रतिमाह 7000-8000 रुपये आय करती हैं. उसके द्वारा प्रशिक्षित लड़कियां भी 4000-5000 रुपये प्रतिमाह आमदनी कर रही हैं. अमूल्या ने कहा कि अन्य स्थानों पर 6000-8000 रुपये में जो प्रशिक्षण दिया जाता है, उसे हर लड़की वहन नहीं कर सकती. वह अभावग्रस्त परिवार की लड़कियों को आत्मनिर्भर बनाने में सहयोग कर रही हैं.

सरोज ने पति को भी प्रशिक्षित किया
गिरिजाटोली निवासी सरोज मुकुल खलखो अपने पति एवं दो बच्चों के साथ किसी प्रकार जीवन व्यतीत कर रही थीं. महंगाई के जमाने में 2000 प्रतिमाह की आमदनी चार लोगों के अपर्याप्त थी. वर्ष 2013 में सरोज छोटानागपुर सांस्कृतिक संघ से जुड़ीं. संघ ने बैग निर्माण का प्रशिक्षण दिया. प्रशिक्षण के बाद वह अपनी पुरानी सिलाई मशीन के सहारे स्वरोजगार से जुड़ गई. आमदनी बढ़ी तो पुरानी मशीन बेच कर नयी मशीन ले ली. धीरे-धीरे व्यवसाय बढ़ता गया एवं ऑर्डर भी मिलने लगा. उसने अपने पति को भी प्रशिक्षित किया. वह भी खाली वक्त में हाथ बंटाने लगे. देखते-देखते आमदनी 5000-6000 प्रतिमाह बढ़ गयी. सरोज ने एक स्कूटी भी ले ली है. अब वह अपने जैसी अन्यषाहिलाओं को सशक्त करने के लिए जागरूक कर रही हैं. वह संस्था में प्रशिक्षक का कार्य भी कर रही हैं एवं प्रतिमाह 11000-12000 रुपया अजिर्त कर रही हैं. सरोज का कहना है कि दूसरो को सिखा कर बहुत प्रसन्नता होती है.

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