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झारखंड : बकोरिया कांड में सीआइडी ने कहा डीआइजी व इंस्पेक्टर का बयान विश्वसनीय नहीं
प्रणव रांची : आठ जून 2015 को हुई बकोरिया कांड में सीआइडी ने काेर्ट में हलफनामा दिया है. इस हलफनामे में सीआइडी ने पलामू रेंज के तत्कालीन डीआइजी हेमंत टोप्पो और सदर थाने के तत्कालीन थानेदार हरीश पाठक का बयान अविश्वसनीय और किसी चीज से प्रेरित (मोटिवेटेट) बताया है. सीआइडी एसपी सुनील भास्कर की ओर […]
प्रणव
रांची : आठ जून 2015 को हुई बकोरिया कांड में सीआइडी ने काेर्ट में हलफनामा दिया है. इस हलफनामे में सीआइडी ने पलामू रेंज के तत्कालीन डीआइजी हेमंत टोप्पो और सदर थाने के तत्कालीन थानेदार हरीश पाठक का बयान अविश्वसनीय और किसी चीज से प्रेरित (मोटिवेटेट) बताया है.
सीआइडी एसपी सुनील भास्कर की ओर से बकोरिया कांड में दायर शपथ पत्र में मुठभेड़ को भी सही करार दिया गया है. सीआइडी ने अपनी और पुलिस के अनुसंधान से संबंधित केस डायरी को उपलब्ध करा दिया है. शपथ पत्र में जवाहर यादव के रिट पिटीशन को खारिज करने का अनुरोध किया गया है. शपथ पत्र में कहा गया है कि डीआइजी हेमंत टोप्पो का बयान प्रारंभिक दौर में नहीं दर्ज किया गया था, क्योंकि वह मुठभेड़ में शामिल नहीं थे और न ही इस ऑपरेशन में उनसे मदद ली गयी थी.
यह ऑपरेशन बहुत ही गोपनीय रखा गया था. इसकी जानकारी सिर्फ और सिर्फ उसे ही दी गयी थी, जिसे इस ऑपरेशन में शामिल किया गया था.
न्यायालय के आदेश के बाद डीआइजी का बयान दर्ज किया गया. उनका बयान विश्वसनीय नहीं है.वह रेंज के डीआइजी थे. अगर बकोरिया कांड में यदि उन्हें कोई गड़बड़ी नजर आयी होती, तो वे इसकी समीक्षा कर आवश्यक दिशा-निर्देश जारी करते. गंभीर प्रकृति के अपराध या घटना का अधिकार उनको है, लेकिन उन्होंने न तो समीक्षा की और न हीं किसी गड़बड़ी का उल्लेख किया. उनके द्वारा दिया गया बयान भी साक्ष्यों से मेल नहीं खाता है. राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में क्या बयान दिया गया, इसकी जानकारी सीआइडी को नहीं है, क्योंकि उनके बयान की प्रतिलिपि सीआइडी के पास नहीं है.
क्या कहा था थाना प्रभारी ने
एसपी ने कहा, वादी बन जाओ, नहीं तो कर देंगे सस्पेंड : पाठक
सदर थाने के तत्कालीन थाना प्रभारी हरीश पाठक ने अपने बयान में कहा है कि आठ जून 2015 की रात दो बजे पलामू के तत्कालीन एसपी कन्हैया मयूर पटेल ने घटना की जानकारी मुझे दी थी. घटनास्थल पर पहुंचने के बाद उन्होंने मुझसे कहा था कि जल्दी से इंक्वेस्ट तैयार कर सभी शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दो. साथ ही मामले का वादी भी तुम ही बन जाना. तुम अपना भी फायरिंग दिखा देना. मुझे मामला पूरी तरह से संदिग्ध लग रहा था.
इसलिए मैंने एसपी साहब से कहा कि जब मैंने मुठभेड़ किया ही नहीं, तो वादी कैसे बन सकते हैं. कल हो कर जब मामले की जांच होगी, तो मेरे मोबाइल का लोकेशन सदर थाने पर दिखेगा. तब समस्या खड़ी हो जायेगी और मैं फंस जाऊंगा. इस पर एसपी साहब ने कहा कि 15 दिन में केस का सुपरविजन हो जायेगा. कोई दिक्कत नहीं होगी. इसके बावजूद भी जब मैंने इनकार किया, तो वे नाराज हो गये. मुझे डांटा, बोले तुमको सस्पेंड कर देंगे. बाद में पता चला कि सतबरवा ओपी प्रभारी मो रुस्तम इस कांड का वादी बन गया था.
सभी लाश एक लाइन से जमीन पर पड़ा हुआ था :
पाठक के मुताबिक सभी लाश एक लाइन से जमीन पर पड़े हुए ऐ. सभी के बगल में पीठू और हथियार लाइन से रखा था. एक रायफल में वोल्ट और मैगजीन नहीं था. आसपास गोली का कोई खोखा भी नहीं था. एक शव के ऊपर ताजा पत्ता तोड़कर उस पर एक टच स्क्रीन मोबाइल रखा हुआ था. स्कार्पियो के अंदर सीट, शीशा, फर्श, डैश बोर्ड, डिक्की, बॉडी व तौलिया पर खून के निशान या छींटा तक नहीं था. गाड़ी की बॉडी में ज्यादातर छेद बाहर से भीतर की ओर था. घटनास्थल के 200 से 300 गज परिधि में खून के एक भी बूंद निशान नहीं मिले. पौधों के दबने या उसके पत्ते पर खून के निशान नहीं थे.
नक्सलियों के हथियारों को किया गया दुरुस्त :
पाठक ने कहा कि पलामू के डीएसपी टू के चेंबर में आरमोरर जमादार और सिपाही नक्सलियों से जब्त हथियार ठीक करने के लिए पुलिस लाइन से औजार लेकर आये थे. नौ जून की रात 11 बजे तक उन लोगों ने हथियारों को ठीक कर दिया. बैरल को अलग से साफ किया.
हथियार ठीक कर कैंपस में एक हथियार से एक राउंड फायर भी किया गया, जबकि दूसरे हथियार से मिस फायर हो गया. मामले में रांची की तत्कालीन आइजी से फोन पर मशविरा किया. फोन सर्विलांस पर था, इस वजह से मुझे निलंबित कर दिया गया. वहीं दूसरे वरीय पदाधिकारियों का तबादला कर दिया गया. सभी मृतकों के शरीर पर खून सुख चुके थे.
अधिसंख्य मृतकों के शरीर, सीना एवं कमर के ऊपर कई-कई गोलियों के निशान थे, जबकि खून का रिसाव ना के बराबर था. कई मृतक के शर्ट एवं शरीर में गोलियों से हुए छेद में कोई तालमेल नहीं था. एक मृतक के शरीर में गोली का निशान था, लेकिन जो वरदी पहना था, उसमें कोई छेद नहीं था. कुछ मृतकों के पास रखा हथियार प्लास्टिक के तार से बना था, जिसका वोल्ट खोलने से ट्रिगर, गार्ड और मैगजीन गिर जाता था. एक मृतक के पास रखे 30.06 रायफल में बोल्ट और मैगजीन नहीं था. एक अन्य .303 रायफल में भी मैगजीन नहीं था. किसी मृतक के कमर में बिंदोलिया भी नहीं था.
डीजीपी ने रात एक बजे फोन कर दी थी सूचना : डीआइजी
डीआइजी हेमंत टोप्पो ने अपने बयान में कहा है कि उन्हें घटना की रात एक बजे तत्कालीन डीजीपी ने फोन पर सूचना दी कि कोबरा बटालियन के साथ नक्सलियों की मुठभेड़ हुई है. इसके बाद उन्होंने तत्कालीन पलामू एसपी कन्हैया मयूर पटेल और लातेहार के एसपी अजय लिंडा से पूछा था, तो दोनों ने कहा था कि उन्हें मुठभेड़ की कोई सूचना नहीं है. वहीं पलामू सदर के तत्कालीन थानेदार हरीश पाठक ने कहा था कि पूरब दिशा में फायरिंग की बात उन्होंने सुनी थी.
शपथ पत्र में िकया दावा
हरीश पाठक का बयान सतबरवा ओपी के प्रभारी व दंडाधिकारी के बयान से अलग
शपथ पत्र में सीआइडी ने सदर थाना के तत्कालीन प्रभारी हरीश पाठक की चर्चा करते हुए कहा गया है कि प्रारंभिक दौर में उनका भी बयान दर्ज नहीं किया गया. उन्हें घटना की जानकारी नहीं दी गयी थी. घटनास्थल सतबरवा के बकोरिया में था. वहां के प्रभारी मो रुस्तम टीम में शामिल थे. हरीश पाठक का बयान सतबरवा प्रभारी व दंडाधिकारी के बयान से अलग है. इसलिए उस पर विश्वास नहीं किया जा सकता है. मानवाधिकार आयोग में पाठक द्वारा दिये गये बयान की प्रति सीआइडी के पास नहीं है कि उन्होंने क्या बयान दिया है.
हटा दिये गये थे एमवी राव
बकाेरिया कांड की जांच एडीजी सीआइडी एमवी राव कर रहे थे. पर उन्हें हटा दिया गया. बाद में उन्हाेंने गृह सचिव को लिखे पत्र में कहा था कि बकोरिया कांड की जांच धीमी करने का उन्हें निर्देश दिया गया था.
उन्होंने इस आदेश का विरोध करते हुए जांच की गति सुस्त करने, साक्ष्यों को मिटाने व फर्जी साक्ष्य बनाने से इनकार कर दिया. इसके तुरंत बाद उनका तबादला सीआइडी से नयी दिल्ली स्थित ओएसडी कैंप में कर दिया गया, जबकि यह पद स्वीकृत भी नहीं है.
यही नहीं, बकोरिया कांड की जांच सही दिशा में ले जानेवाले और दर्ज एफआइआर से मतभेद रखने का साहस करनेवाले अफसरों का पहले भी तबादला किया गया है. यह एक बड़े अपराध को दबाने और अपराध में शामिल अफसरों को बचाने की साजिश है.
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