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कोर्ट से पीड़क कार्रवाई का आदेश हटने के बाद ही चार्जशीट दाखिल करे पुलिस

कानूनी पेंच. शहरी क्षेत्रों में नहीं होता लागू, पर गांव-देहात के लिए ग्रामीण एसपी का नया नियम जारी अमन तिवारी रांची : झारखंड सहित रांची जिला में पुलिस किसी केस में कोर्ट से नो कोरेसिव एक्शन अर्थात पीड़क कार्रवाई पर रोक के बाद आरोपी के खिलाफ कोर्ट में चार्जशीट दाखिल कर केस को डिस्पोजल कर […]

कानूनी पेंच. शहरी क्षेत्रों में नहीं होता लागू, पर गांव-देहात के लिए ग्रामीण एसपी का नया नियम जारी
अमन तिवारी
रांची : झारखंड सहित रांची जिला में पुलिस किसी केस में कोर्ट से नो कोरेसिव एक्शन अर्थात पीड़क कार्रवाई पर रोक के बाद आरोपी के खिलाफ कोर्ट में चार्जशीट दाखिल कर केस को डिस्पोजल कर देती थी.
लेकिन अब रांची जिला के ग्रामीण थाना क्षेत्र में दर्ज केस में पीड़क कार्रवाई पर रोक के बाद पुलिस उस केस में आरोपी के खिलाफ चार्जशीट दाखिल नहीं कर पायेगी. उस अवधि तक जब तक कि आरोपी के खिलाफ कोर्ट से जारी रोक हट नहीं जाती. इससे संबंधित आदेश ग्रामीण एसपी अजीत पीटर डुंगडुंग ने जारी किया है. यह आदेश सिर्फ ग्रामीण क्षेत्रों के पुलिस के लिए है.
जबकि ऐसा कोई नियम शहरी थाना क्षेत्र में दर्ज केस के लिए नहीं है. पीड़क कार्रवाई पर रोक के बाद पुलिस आरोपी के खिलाफ कोर्ट में सीआइडी की तत्कालीन एडीजी आशा सिन्हा के आदेश पर काम करती है. पुलिस के अनुसार उन्होंने इससे संबंधित आदेश वर्ष 2011 में विधि-विशेषज्ञों से विचार के बाद जारी किया था.
उन्होंने यह भी कहा था नो कोरसिव एक्शन (पीड़क कार्रवाई पर रोक) का मतलब अनुसंधान पर रोक नहीं है. लेकिन पुलिस न्यायालय से पीड़क कार्रवाई का निर्देश जारी होने पर अनुसंधान ही रोक देती है. पुलिस ऐसे मामलों में अभियुक्त के खिलाफ चार्जशीट दाखिल कर सकती है. इसी आदेश पर एसपी से लेकर डीएसपी तक किसी केस में आरोपी के खिलाफ न्यायालय से पीड़क कार्रवाई पर रोक लगने के बाद न्यायालय में चार्जशीट दाखिल कर देते थे.
क्या है ग्रामीण एसपी के आदेश में
ग्रामीण एसपी अजीत पीटर डुंगडुंग ने 22 दिसंबर को ग्रामीण क्षेत्र के डीएसपी और थाना प्रभारी के लिए एक आदेश जारी किया था. इसमें लिखा है कि प्राय: यह देखा जा रहा है कि न्यायालय द्वारा अभियुक्त के विरुद्ध नो कोरसिव एक्शन अर्थात पीड़क कार्रवाई नहीं करने के निर्देश के बाद आरोप पत्र सौंप दिया जाता है. यह विधि और व्यवहार संगत नहीं है. इसलिए सभी थाना प्रभारी, इंस्पेक्टर और डीएसपी को निर्देश दिया जाता है कि न्यायालय द्वारा पारित आदेश के आलोक में आरोपियों के खिलाफ नो कोरसिव एक्शन को वेंकेट अर्थात हटाये बिना केस में आरोप पत्र समर्पित नहीं करेंगे. इस संबंध में आवश्यकतानुसार मार्गदर्शन भी प्राप्त किया जा सकता है.
1. ग्रामीण क्षेत्र के थानों में दर्ज केस में न्यायालय द्वारा पीड़क कार्रवाई नहीं करने का निर्देश मिलने पर पुलिस चार्जशीट दाखिल नहीं कर पायेगी. इससे शहरी क्षेत्र की अपेक्षा ग्रामीण क्षेत्र में लंबित केस की संख्या बढ़ जायेगी.
2. आरोपी के खिलाफ चार्जशीट दाखिल करने के बाद पुलिस न्यायालय से किसी केस में स्पीडी ट्रायल चलाने की अनुशंसा कर सकती थी. लेकिन ग्रामीण इलाके में किसी केस में नो कोरसिव लगने पर चार्जशीट दाखिल नहीं कर पाने की वजह से पुलिस स्पीडी ट्रायल की अनुशंसा नहीं कर पायेगी.
3. पुलिस को आरोपी के खिलाफ न्यायालय से जारी पीड़क कार्रवाई पर रोक हटाने के लिए अलग से कानूनी कार्रवाई करनी होगी. इससे पुलिस का अधिकांश समय न्यायालय में ही बीतेगा और विधि-व्यवस्था का काम संभालने के लिए उसे कम समय मिलेगा.
शहरी क्षेत्र में भी नो कोरसिव के बाद की गयी है चार्जशीट
गोंदा थाना क्षेत्र में 2012 में गुड्डू खान की हत्या हुई थी. इस केस में अन्य आरोपी सहित पिस्का मोड़ निवासी संजय कुमार पर हत्या का आरोप सही पाया गया था. केस के अनुसंधानक ने उसकी तलाश में छापेमारी की, लेकिन नहीं मिला. इस बीच न्यायालय ने संजय कुमार के खिलाफ पीड़क कार्रवाई नहीं करने का निर्देश दिया. न्यायालय के निर्देश के बाद हाल ही में सीनियर पुलिस अधिकारियों के निर्देश पर केस के अनुसंधानक ने आरोपियों के खिलाफ न्यायालय में चार्जशीट दाखिल की है.
मैंने यह आदेश केस में क्वालिटी अनुसंधान के लिए जारी किया है. जमीन से संबंधित मामलों के केस में पुलिस नो कोरेसिव एक्शन का आदेश पारित होने पर न्यायालय में चार्जशीट दाखिल कर देती थी. केस का अनुसंधान नहीं होने से न्यायालय में केस फेल हो जाता था. इस आदेश के बाद लंबित केस की संख्या बढ़ेगी नहीं बल्कि घटेगी.
अजीत पीटर डुंगडुंग, ग्रामीण एसपी, रांची

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