रांची: स्वास्थ्य विभाग का काम एलोपैथी के अलावा देसी चिकित्सा सुविधा भी मुहैया कराना है. पर आयुर्वेदिक, योग, यूनानी, सिद्धा व होमियोपैथी (आयुष) चिकित्सा व्यवस्था पूरी तरह बदहाल है. दूसरी ओर सरकार आयुष संबंधी शिक्षा देने में भी विफल है. राज्य में आयुष चिकित्सकों के कुल चार सौ स्थायी पद में से 296 रिक्त हैं. ये पद आयुर्वेदिक, यूनानी व होमियोपैथी चिकित्सकों के हैं.
झारखंड में योग व सिद्धा पद्धति प्रचलन में नहीं है. उधर, राज्य भर के कुल 182 आयुष चिकित्सा केंद्रों में दवाएं नहीं हैं. ज्यादातर केंद्र किराये के भवन में हैं. इधर 2013-14 में दवा मद का 18 लाख रु लैप्स हो गया. उधर चिकित्सकों के वेतन व अन्य स्थापना मद में सालाना 7.24 करोड़ रुपये खर्च हो रहे हैं. पर प्रचार-प्रसार पर खर्च नगण्य है. इससे लोग आयुष चिकित्सा पद्धति का लाभ नहीं ले पा रहे. कामकाज की मॉनीटरिंग करने वाले आयुष निदेशक का पद भी गत छह माह से खाली है.
188 पदों में 175 रिक्त: आयुष शिक्षा के लिए वर्ष 2001-02 में स्वास्थ्य विभाग ने पांच कॉलेज बनाने की घोषणा की थी. इनमें होमियोपैथी कॉलेज गोड्डा, आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेज चाईबासा व यूनानी मेडिकल कॉलेज गिरिडीह के साथ-साथ आयुर्वेदिक फॉर्मेसी कॉलेज साहेबगंज व गुमला शामिल हैं. पर इनमें से होमियोपैथी कॉलेज गोड्डा व आयुर्वेदिक फार्मेसी कॉलेज साहेबगंज को छोड़ आज तक कोई संचालित नहीं है. इसमें से आयुर्वेदिक फॉर्मेसी कॉलेज साहेबगंज तो किराये के भवन में चल रहा है. इन कालेजों में शिक्षक-प्रशिक्षक के कुल 188 पदों में से 175 रिक्त हैं. अस्थायी नियुक्ति व पदस्थापन पर कार्यरत लोगों के वेतन व स्थापना मद में ही सालाना 50 लाख खर्च हो रहा है.
नहीं बना हारबेरियम, शोध केंद्र
स्वास्थ्य विभाग ने वर्ष 2001-02 में ही देशज चिकित्सा पद्धति पर शोध के लिए देवघर में एक रिसर्च सेंटर बनाने का निर्णय लिया था. दुमका व घाटशिला में हारबेरिम (मेडिसिनल प्लांट व वनस्पतियों का संग्रह) भी बनना था. इधर न तो निजी सहभागिता से बनने वाला शोध केंद्र बना और न ही हारबेरियम. वहीं अब देवघर में हर्बल ट्रीटमेंट हब की स्थापना को अंडर प्रोसेस बता कर विभाग ने इसे वित्तीय वर्ष 2013-14 की अपनी उपलब्धि बतायी है.