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ओफाज ने एजेंसी चयन के तय टेंडर में की थी गड़बड़ी

खुलासा. लोकायुक्त ने तीन सदस्यीय समिति से करायी जांच रांची : उद्यान निदेशालय के ऑर्गेनिक फॉर्मिंग ऑथोरिटी ऑफ झारखंड (ओफाज) ने एजेंसी चयन के लिए तय टेंडर प्रक्रिया में गड़बड़ी की थी. इसकी पुष्टि भारत सरकार के सेंट्रल विजिलेंस कमीशन (सीवीसी) के आदेश के बाद राज्य स्तर पर की गयी जांच में हुई है. कारण […]

खुलासा. लोकायुक्त ने तीन सदस्यीय समिति से करायी जांच
रांची : उद्यान निदेशालय के ऑर्गेनिक फॉर्मिंग ऑथोरिटी ऑफ झारखंड (ओफाज) ने एजेंसी चयन के लिए तय टेंडर प्रक्रिया में गड़बड़ी की थी. इसकी पुष्टि भारत सरकार के सेंट्रल विजिलेंस कमीशन (सीवीसी) के आदेश के बाद राज्य स्तर पर की गयी जांच में हुई है.
कारण बताओ नाेटिस
सीवीसी के आदेश के बाद लोकायुक्त कार्यालय ने कृषि विभाग के अधिकारियों की तीन सदस्यीय जांच टीम बनायी थी. विशेष सचिव विमल, उप सचिव राजेश कुमार बरवार और निरंजन कुमार ने पूरे मामले की जांच की. जांच में पाया गया कि जनवरी 2016-17 में ओफाज के सीइओ राजीव कुमार के नेतृत्व में अपनायी गयीटेंडर प्रक्रिया में तय नियमों का पालन नहीं किया गया. जांच रिपोर्ट के बाद लोकायुक्त ने श्री कुमार को कारण बताओ नोटिस जारी किया है.
उनको यह भी बताने को कहा है कि टेंडर कमेटी में कौन-कौन अधिकारी शामिल थे. जांच रिपोर्ट में जिक्र किया गया है कि टेंडर एक ऐसे अखबार में निकाला गया, जिसका सर्कुलेशन बहुत ही कम है. जानकारी के मुताबिक परंपरागत कृषि विकास योजना के तहत 30 नवंबर 2016 को टेंडर निकाला गया. सात दिसंबर तक टेंडर पेपर जमा कराया गया. 14 दिसंबर को टेंडर खोला गया. इसी दिन टेंडर फाइनल कर सारी प्रक्रिया पूरी कर ली गयी.
पक्ष रखने से भागते रहे अधिकारी
इस संबंध में जांच समिति ने तीन बार ओफाज के सीइओ को पक्ष रखने के लिए कहा. तीनों बार सीइओ जांच समिति के समक्ष अपना पक्ष रखने के लिए नहीं आये. इसके बाद जांच समिति ने पत्र के माध्यम से पक्ष रखने को कहा. इसके बाद 30 मई 2017 को उन्होंने पत्र के माध्यम से अपना पक्ष रखा.
नहीं हुआ दस्तावेजों का मूल्यांकन
जांच टीम ने लिखा है कि टेंडर मूल्यांकन सबंधी निष्पादन प्रक्रिया में तकनीकी मूल्यांकन महत्वपूर्ण होता है.इसमें दस्तावेजों का सूक्ष्म मूल्यांकन किया जाता है. इसके लिए समय की जरूरत होती है. जांच कमेटी ने लिखा है कि प्रथमदृष्टया लगता है कि टेंडर के मूल्यांकन संबंधी प्रक्रिया के निष्पादन में काफी जल्दबाजी की गयी. एक ही तिथि में तकनीकी, वित्तीय निविदा का निष्पादन हुआ है.
यह तकनीकी रूप से सही नहीं है. इसी तिथि को टेंडर फाइल कर प्रोसिडिंग तैयार कर दी गयी. चयनित एजेंसियों को जिला भी आबंटित कर दिया गया. निविदा संबंधी प्रक्रिया पूरी करने के बाद न ही एकरारनामा किया गया, न ही कार्यादेश निर्गत किया गया. इसे जांच टीम ने स्थापित प्रक्रिया के विपरीत माना है.

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