ऐसी मान्यता है कि दीपावली के पहले चतुर्दशी को तेलमात्र में लक्ष्मी और जलमात्र में गंगा निवास करती है, जो आज प्रात: स्नान कर श्रीलक्ष्मी वेंकटेश्वर की पूजा व दीप दान करता है, वह यमलोक नहीं देखता है. यह पर्व नरक चौदस, नरक चतुर्दशी या नरका पूजा के नाम से भी प्रसिद्ध है. आज सुबह तेल लगाकर चिरचिड़ी की पत्तियां जल में डाल कर स्नान करना चाहिए.
इस संदर्भ में कई पौराणिक कथाएं हैं. कथा के अनुसार आज के दिन भगवान श्रीकृष्ण ने अत्याचारी नरकासुर का वध किया था और 16,100 सौ कन्याओं को नरकासुर के बंदीगृह से मुक्त कर सम्मान प्रदान किया था. दैत्यराज बलि से भगवान विष्णु ने वामन रूप में तीन दिनों में तीन पग भूमि दान लिया था. इसलिए बलि ने वरदान मांगा था कि यह तीन दिन (चतुर्दशी से शुक्ल प्रतिपदा) तक जो सर्वथा विष्णु महोत्सव करेगा, दीप दान करेगा, उसके घर माता लक्ष्मी स्थिर भाव से निवास करेगी. इन महत्वों से स्नान के पश्चात विष्णु वेंकटेश्वर मंदिर में श्रीकृष्ण मंदिर में भगवान का दर्शन करना अत्यंत पुण्यदायक बताया गया है.