10.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

वैसाख सुहावा तां लगै

-डॉ एमपी सिंह- रांचीः समय की निरंतर प्रवाहित सरिता में सुहावने बैसाख का आगमन हो रहा है. पंजीबी तिथि गणना अनुसार आज से बैसाख माह प्रारंभ हो रहा है. बैसाख मानव जीवन में मिलाप, संतुष्टि एवं परिपूर्णता का प्रतीक है. यह धन-धान्य की प्रचूरता दे कर वर्ष का श्रम फल प्रदान करता है. यह ऋतुओं […]

-डॉ एमपी सिंह-

रांचीः समय की निरंतर प्रवाहित सरिता में सुहावने बैसाख का आगमन हो रहा है. पंजीबी तिथि गणना अनुसार आज से बैसाख माह प्रारंभ हो रहा है. बैसाख मानव जीवन में मिलाप, संतुष्टि एवं परिपूर्णता का प्रतीक है. यह धन-धान्य की प्रचूरता दे कर वर्ष का श्रम फल प्रदान करता है. यह ऋतुओं को अनमोल संधिकाल भी है. इसका आगाज ही बैसाखी के खुशियों भरे त्योहार से होता है.

प्रकृति प्रेम से गुरुवाणी भी परिपूर्ण है. प्रकृति ईश्वर स्वरूप है, इसकी हर छटा शुद्ध आत्मा को प्रभु से जोड़ कर संत जनों के जीवन में स्थायी आनंद प्रवाहित करती है.गुरुवाणी में भी समय श्रृंखला मे पिरोये 12 माहों की सुंदर विवेचना है. हर माह और ऋतु प्रभु प्रेम को अपने अनूठे तरीके से प्रकट करती है, परंतु मोह-माया में फं सा मन इस प्रेम को समझने और पाने में असमर्थ रहता है. इस तरह जीवन यू हीं निष्फल बीतता जाता है.

गुरुवाणी अनुसार बैसाख अनुपम मिलन का प्रतीक है. प्रेमी स्वजनों का मिलन जो आनंद का सृजन करता है. आत्मा भी प्रभु की स्वजन ही है और इसे प्रभु मिलन की चाह भी है. मगर ये अपने प्रिय प्रभु को भूल कर मोहिनी माया से जकड़ी रहती है.- ‘हरि साजन पुरख विसार कै लगी माया धोह.’ कदम-कदम पर चेतावनी भी है.‘ दय विसारि विगुचणा, प्रभ बिन अबर न कोई.’ अविनाशी परमात्मा ही सच्च साथी है. प्रेम स्वरूप प्रभु को विसार कर घोर विरह का ही कष्ट होता है.

गुरुनानक देव जी फरमाते है‘ दूरि न जाना, अंतरि माना हरि का महल पछाना, नानक बैसाखी प्रभ भावै, सुरति सबदि मन माना.’- हे मित्र प्रभु, मैंने तुम्हें पहचान कर अपने अंतर में बसा लिया है, अब मुझसे मेरा प्रभु कभी दूर नहीं होगा. बैसाख में, मेरी चेतना में, शबद द्वारा प्रभु रमे हुए है.

आनंद के साथ शक्ति संचार कर बैसाख का माह आत्मा को आस्था की दृढ़ता देता है. यही दृढ़ता पुरुषार्थ को जन्म देती है और सतकर्मो की ओर प्रेरती है. इसी लिए एक निश्चयी पुरुषार्थी ने बैसाखी के इस त्योहार को एक ऐतिहासिक सृजन के लिए चुना. दुनिया उन्हें दशमेश पिता गुरु गोविंद सिंह के नाम से पुकारती है. आज ही के दिन उन्होंने एक नयी जीवनशैली-‘खालसा’ का सृजन किया. खालसा-शुद्ध आचरण, निर्भीकता, स्वतंत्रता, न्याय प्रियता, ओजस्विता और शौर्य का प्रतीक. जीवन की मूल्य मर्यादाओं को निभाने में पूर्णत: सक्षम. आज दशमेश पिता के प्रति कृतज्ञता और आभार का दिवस भी है, जिन्होंने समूचे भारत को सिखाया- ‘मानस की जात सभै एकै पहिचानबो.’

बैसाखी का त्योहार खालसा के लिए उन संकल्पों को दोहराने का दिवस भी है, जो गुरु गोविंद सिंह जी ने खालसा की साजना के साथ हमे दिये. ये संकल्प हमारे मार्गदर्शक भी है, और हमारी धरोहर भी.

इस तेज भागती जिंदगी में कुछ पुरानी और कुछ नयी विसंगतियां हमारे साथ-साथ दौड़ रही है. इनसे सामना करने के लिए हमारे पास गुरु का आशीर्वाद भी है, और गुरुप्रदत पुरुषार्थ भी. आवश्यकता गुरु गोविंद सिंह जी की तरह दृढ़ निश्चय की है.

‘प्रीतम चरणी जो लगे, तिन की निर्मल सोई’. नानक की प्रभ बेनती प्रभ मिलहु परापत होई.‘बैसाख सुहावा तां लगै, जा संत भेटै हरि सोई’-हे प्रभु मेरी विनती है कि मुङो आपका, मेरे हृदय को तृप्त करता मिलाप नसीब हो. आपके चरणों में मैं निर्मलता पा सकूं. बैसाख का महीना तो तभी सुहावना हो सकता है, अगर हरि संत प्रभु मिल जाये. बैसाखी के इस आनंदोत्सव पर सभी आस्थावान हृदयों को मेरी हार्दिक शुभकानाएं.

( लेखक वरिष्ठ लेप्रोस्कोपिक सजर्न हैं)

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें