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अखड़ा संस्कृति को सहेज कर रखना जरूरी : मुकुंद नायक

रांची: पद्मश्री मुकुंद नायक ने कहा कि हमारी सामाजिक-सांस्कृतिक विरासत को सहेज कर रखने की जरूरत है़ हमारी बोली-भाषा का क्षरण हो रहा है़ हमारे पुरखे मेहनती थे व उनके जीवन में गीत-संगीत था़ पर आज हम दूसरों की ताल पर नाच रहे है़ं जरूरत है कि हम फिर से अखड़ा में जुटें, हर गांव […]

रांची: पद्मश्री मुकुंद नायक ने कहा कि हमारी सामाजिक-सांस्कृतिक विरासत को सहेज कर रखने की जरूरत है़ हमारी बोली-भाषा का क्षरण हो रहा है़ हमारे पुरखे मेहनती थे व उनके जीवन में गीत-संगीत था़ पर आज हम दूसरों की ताल पर नाच रहे है़ं जरूरत है कि हम फिर से अखड़ा में जुटें, हर गांव में बैठक हो़ अपने अखड़ा को बचाये़.
साहित्यकार महादेव टोप्पो ने कहा कि हम जल, जंगल, जमीन की बात करते हैं पर इसमें जमीर और जुबान भी जोड़ने की आवश्यकता है़ अपनी भाषा और आपनी आत्मा को जानना भी जरूरी है़ फिल्मकार मेघनाथ ने कहा कि गांव के नृत्य में जीवन है़ स्त्री-पुरुष का एक साथ नाचना समाज में उनके बीच बराबरी का भाव प्रकट करता है़ कुचिना फेलो कवयित्री जसिंता केरकेट्टा ने कहा कि अखड़ा संस्कृति हमारी एकजुटता का प्रतीक है़.
प्रतियोगिता में कचाबारी अव्वल : प्रतियोगिता में कचाबारी को प्रथम व बिनगांव को दूसरा पुरस्कार मिला़ अतिरिक्त तुमना, हेसला, चंदापारा, महुआटोली, बांदु, चिऊर, पुकू, बइरगाड़ा, पतराटोली, संत अन्ना उवि कचाबारी की टीम ने भी उम्दा नृत्य पेश किया़ यह आयोजन कचाबारी पंचायत व कुचिना फाउंडेशन ने किया़ आयोजन में मुखिया ज्योति मिंज, हाबिल कच्छप, बिरसा मुंडा आदि ने योगदान दिया़

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