रांची : धर्मांतरण बिल विधानसभा में पेश करने से पहले अखबारों में छपे विज्ञापन पर मचे बवाल के बाद झारखंड सरकार के एक और विज्ञापन से राजनीति गरमा गयी है. एदार-ए-शरीया झारखंड और भाकपा माले ने विज्ञापन का विरोध किया है.
एदार-ए-शरीया झारखंड के नाजिम-ए-आला मौलाना कुतुबुद्दीन रिजवी ने राज्य जीव-जंतु बोर्ड झारखंड द्वारा 30 अगस्त को प्रकाशित आवश्यक सूचना को कुर्बानी रोकने की कोशिश बताते हुए विज्ञापन की कड़ी निंदा की है. उन्होंने कहा कि यह अनुच्छेद 25 (ए) और 14 का उल्लंघन है, जिसमें भारतीयों को धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार दिया गया है.
इसे भी पढ़ें : धर्मांतरण के खिलाफ आजाद भारत का सबसे बड़ा अभियान, गरमा सकती है प्रदेश की राजनीति
इस सूचना में गाय, बछड़ा, बछिया, बैल, ऊंट आदि की कुर्बानी देना, खरीदना, बेचना, परिवहन के लिए जमा करना आदि को गंभीर अपराध कहा गया है. झारखंड के 400 से अधिक गैर-मुसलिम धार्मिक स्थानों व पर्यटक स्थलों में प्रतिदिन सैकड़ों पशुआें की बलि दी जाती है.
उन्होंने कहा कि झारखंड सरकार उसूल और शर्तों के साथ स्लॉटर हाउस काे लाइसेंस दे रही है और लगभग 700 स्लॉटर हाउस को लाइसेंस दिया गया है. बोर्ड के इस नोटिस के जरिये सरकार कुर्बानी जैसे महत्वपूर्ण अवसर को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के इशारे पर नुकसान पहुंचाना चाहती है. यह मुसलमानों में आतंक व भय का माहौल पैदा करने की कोशिश कर रही है.
इसे भी पढ़ें : झारखंड सरकार ने गोवंश हत्या पर कड़ी कार्रवाई का दिया आदेश
दूसरी तरफ, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) के राज्य सचिव जनार्दन प्रसाद तथा पूर्व विधायक सह केंद्रीय कमेटी के सदस्य विनोद सिंह ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा कि 30 अगस्त को अखबारों में प्रकाशित विज्ञापन लोगों को दिग्भ्रमित करनेवाला तथा मुस्लिम समाज पर हमला तेज करनेवाला है. राज्य जीव-जंतु कल्याण बोर्ड के नाम से छपे इस विज्ञापन में गोवंशीय पशुअों की खरीद-बिक्री तथा ऊंटों की कुरबानी को संज्ञेय अपराध बताया गया है.
नेताअों ने कहा है कि इस विज्ञापन में सुप्रीम कोर्ट व हाइकोर्ट को घसीट कर कोर्ट की भी मानहानि की गयी है. तथ्य यह है कि मद्रास हाइकोर्ट ने गत वर्ष ऊंट की सार्वजनिक हत्या पर तो रोक जरूर लगायी गयी थी, पर इसकी कुर्बानी पर रोक लगाने से मना कर दिया था.
इसे भी पढ़ें : दिल्ली की देह मंडी में छह साल तक बिकी दुमका की बेटी, उसके बाद…
इधर, इसी वर्ष 31 मई को केंद्र सरकार ने गोवंशीय पशुअों की खरीद-बिक्री पर जो रोक लगायी थी, मद्रास हाइकोर्ट की मदुरै बेंच ने इस रोक को भी हटा दिया था. इसलिए इस सरकारी विज्ञापन का कोई कानूनी आधार नहीं है.