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#Jharkhand : रिम्स के निदेशक ने बच्चों की मौत पर नहीं दी सफाई, आंकड़े कम करके बताये

रांची : झारखंड की राजधानी रांची स्थित प्रदेश के सबसे बड़े अस्पताल राजेंद्र इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (रिम्स) के निदेशक डॉ बीएल शेरवाल बच्चों की मौत के मामले पर सफाई देने के लिए बुधवार को सामने आये. ‘प्रभात खबर’ में छपी रिपोर्ट को गलत करार देने के लिए बुलायी गयी प्रेस कॉन्फ्रेंस में डॉ शेरवाल […]

रांची : झारखंड की राजधानी रांची स्थित प्रदेश के सबसे बड़े अस्पताल राजेंद्र इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (रिम्स) के निदेशक डॉ बीएल शेरवाल बच्चों की मौत के मामले पर सफाई देने के लिए बुधवार को सामने आये. ‘प्रभात खबर’ में छपी रिपोर्ट को गलत करार देने के लिए बुलायी गयी प्रेस कॉन्फ्रेंस में डॉ शेरवाल यही बताते रहे कि कितने बच्चे अस्पताल में इलाज कराने आये और कितने बच्चे ठीक होकर गये. उनके आंकड़ों में भी बच्चों की मौत की संख्या थी, लेकिन अखबार में छपे नंबर से कम. ‘प्रभात खबर’ ने अगस्त में 133 बच्चों की मौत की रिपोर्ट छापी थी, लेकिन रिम्स प्रबंधन का कहना है कि सिर्फ 103 बच्चों की मौत हुई. लेकिन, ‘प्रभात खबर’ अपनी रिपोर्ट पर अडिग है. उसके पास बच्चों की मौत से जुड़े आंकड़े मौजूद हैं.

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बहरहाल, पत्रकारों से बातचीत में उन्होंने कहा कि इस साल अगस्त तक 4855 बच्चे रिम्स अस्पताल में भर्ती हुए, जिसमें से 4195 बच्चे स्वस्थ होकर घर गये. केवल 660 बच्चों को बचाया नहीं जा सका. अगस्त में कुल 103 बच्चों की ही मौत हुई. वहीं, एनआइसीयू में जनवरी से 28 अगस्त तक 1531 बच्चे भरती हुए, जिसमें 1139 बच्चों को बचाया गया. 263 बच्चों की मौत हो गयी. इनमें से 263 बच्चे रिम्स में बाहर के अस्पताल से रेफर होकर आये थे.

रिम्स के शिशु विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ एके चौधरी ने बताया कि हमारे यहां होनेवाली मौतों की मुख्य वजह एस्फेक्सिया (ब्रेन में ऑक्सीजन की कमी होना) है. वहीं समय से पूर्व जन्म लेनेवाले 22 फीसदी, सांस संबंधी बीमारी के नौ फीसदी, सेप्सिस के सात फीसदी, कम वजन के 5.6 फीसदी एवं अन्य बीमारियों के चार फीसदी बच्चों की मौत होती है.

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डाॅ चौधरी ने बताया कि 48 फीसदी बच्चों की मौत 24 घंटे के अंदर हुई है. ये वह बच्चे हैं, जो बहुत गंभीर होते हैं. बच्चे को डॉक्टर व पारा मेडिकल स्टाफ की सहायता एवं अंतिम क्षणाें में बिना किसी उचित इलाज के रिम्स रेफर होकर आते है.

इन कारणों से हुई है बच्चों की मौत

इंसेफलाइटिस – 24 प्रतिशत

निमोनिया – 17 प्रतिशत

सीसीएफ – 11 प्रतिशत

मलेरिया – 0.8 प्रतिशत

सांप काटने से – 1.4 प्रतिशत

अन्य कारण – 37 प्रतिशत

‘प्रभात खबर’ के पास है बच्चों की मौत का आंकड़ा

रिम्स प्रबंधन ने पत्रकार वार्ता में भले ही अपने स्तर से बच्चों की मौत का आंकड़ा बता रहा है, लेकिन प्रभात खबर के पास पूरा आंकड़ा मौजूद है. मेट्रॉन के यहां तैयार किये गये आंकड़े की मानें तो अगस्त माह में रिम्स के शिशु विभाग में 133 बच्चों की मौत का आंकड़ा है. जबकि रिम्स प्रबंधन इसे 103 बता रहा है.

पाकुड से आते है डेंगू के सबसे ज्यादा मरीज

रिम्स निदेशक डॉ बीएल शेरवाल ने कहा कि पिछले साल हमारे यहां पाकुड से सबसे ज्यादा डेंगू के मरीज पीड़ित होकर आये थे. जिला चिन्हित होने के बाद वहां सरकार द्वारा जागरूकता कार्यक्रम किया गया. जागरूक करने का प्रयास जारी है. इससे वहां से डेंगू के मरीज अब कम आ रहे है. हमारा संस्थान सरकारी है. डॉक्टर जमीन पर बैठकर भी इलाज करते है. सरकार हर सुविधा देती है, जिसका उपयोग कर गरीब मरीजाें को बचाने का काम किया जाता है.

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