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सोवेंद्र शेखर की किताब ‘दि आदिवासी विल नॉट डांस’ की प्रतियां जब्त करने का आदेश, जानें आठ बड़ी बातें

डॉक्टर हांसदा सौवेन्द्र शेखर की किताब को लेकर विरोध की शुरुआत सोशल मीडिया से शुरू हुई और यह विधानसभा तक पहुंच गयी. विवादित किताब को लेकर विधानसभा में सरयू राय ने कहा, इस किताब पर पूर्णत: प्रतिबंध लगा है. इसे खरीदा और बेचा जाना दोनों गुनाह होगा. जिसके यहां यह किताब पायी जायेगी उसे भी […]

डॉक्टर हांसदा सौवेन्द्र शेखर की किताब को लेकर विरोध की शुरुआत सोशल मीडिया से शुरू हुई और यह विधानसभा तक पहुंच गयी. विवादित किताब को लेकर विधानसभा में सरयू राय ने कहा, इस किताब पर पूर्णत: प्रतिबंध लगा है. इसे खरीदा और बेचा जाना दोनों गुनाह होगा. जिसके यहां यह किताब पायी जायेगी उसे भी सजा होगी. आज शाम होते ही मुख्यमंत्री रघुवर दास ने ‘दि आदिवासी विल नॉट डांस’ की प्रतियां जब्त करने का आदेश दिया. डॉक्टर हांसदा सोवेंद्र शेखर और उनकी किताब से जुड़ी दस अहम बातें

1.डा0 हांसदा सौवेन्द्र शेखर की पुस्तक ‘दि आदिवासी विल नॉट डांस’ की सभी प्रतियों को जब्त करने तथा लेखक के विरूद्ध कानूनी कार्रवाई का निदेश मुख्यमंत्री श्री रघुवर दास ने मुख्य सचिव राजबाला वर्मा को दिया है. उन्होंने कहा कि पाकुड़ डीसी इस पर तत्काल कार्रवाई करें.
2. मुख्यमंत्री ने मीडिया में छपी खबर पर संज्ञान लेते हुए मुख्य सचिव से कहा कि संताल जनजातीय महिलाओं की अस्मिता और उनकी गरिमा को ठेस पहुँचाने वाली इस पुस्तक को पूरे झारखण्ड में कहीं भी बिकने या इसके किसी भी अंश को प्रसारित एवं प्रचारित करने पर पूरी तरह रोक रहेगी.
3. रांची में जन्मे और घाटशिला व चकुलिया में पले-बढ़े डॉ हांसदा सोवेंद्र शेखर पेशे से चिकित्सक हैं. पाकुड़ के सिविल सर्जन कार्यालय में पदस्थापित हैं. उन्होंने एमजीएम कॉलेज से पढ़ाई की है.15 साल की उम्र से ही उन्होंने पत्र-पत्रिकाअों में लिखना शुरू कर दिया था. इंडियन लिटरेचर, द स्टेट्समैन, द एशियन एज, गुड हाउसकीपिंग, नॉर्थईस्ट रिव्यू, द फोर क्वार्टर्स मैगजीन, अर्थेन लैंप जर्नल, अलकेमी जैसे प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाअों में उनकी लघु कहानियां और लेख प्रकाशित हो चुके हैं.
4.झारखंड के कुछ बुद्धिजीवियों ने उनके किताब की भाषा शैली को लेकर सवाल खड़ा किया. हांसदा के उपन्यास ‘सीमेन, सलाइवा, स्वीट, ब्लड’ में एक किरदार निर्मल महतो का है, जो एक आदिवासी लड़की के साथ अश्लील संवाद करता है. कई लोगों ने बताया कि यह झारखंड आंदोलन का अपमान है. निर्मल महतो ने ‘झारखंड आंदोलन’ के दौरान अहम भूमिका निभायी थी.
5.डा. शेखर को वर्ष 2015 में साहित्य अकादमी ने युवा लेखक का पुरस्कार दिया था. यह उन्हें यह पुरस्कार उनके उपन्यास ‘द मिस्टीरियस एलीमेंट ऑफ रूपी बास्के’ के लिए दिया गया था.जामिया मिलिया इसलामिया विश्वविद्यालय में अंग्रेजी की प्रोफेसर डॉ आइवी इमोजेंस हांसदा ने अकादमी को पत्र लिखा है. इसमें शेखर के ताजा उपन्यास के साथ-साथ उनकी कहानी संग्रह ‘आदिवासी विल नॉट डांस’ पर भी गंभीर सवाल खड़े किये गये हैं.’
6.आदिवासी समाज और आंदोलन पर कई किताबें लिखनेवाले अश्विनी कुमार पंकज तो डा. हांसदा की भाषा शैली से क्षुब्ध हैं. वह कहते हैं, ‘जब मैंने इस अंग्रेजी उपन्यास को पढ़ा, तो हैरत हुई कि एक लेखक सिर्फ बाहरी दुनिया, जिससे आदिवासी समाज अनेक वर्षों से सांस्कृतिक युद्ध में है, से प्रशंसा-पुरस्कार पाने के लिए किस हद तक ‘गैरजरूरी’ लेखन कर सकता है. और जब हांसदा सोवेंद्र शेखर की कहानियों का संग्रह ‘द आदिवासी विल नॉट डांस’ आया, तो मेरी यह धारणा और मजबूत हुई कि इस आदिवासी लेखक को अपने ‘आदिवासीपन’ से घृणा है. यह बेहद दुखद पहलू है.’
7.प्रभात खबर डॉट कॉम के साथ दिये इंटरव्यू में सोवेन्द्र ने कहा कि मेरी कहानी शोषण व पलायन पर है. एक लेखक होने के नाते , मेरी जिम्मेदारी बनती है कि मैं पूरी घटना को जस का तस पन्ने पर उतारूं. मेरा कोई एजेंडा या प्रोपेगेंडा नहीं है. वहां के आदिवासी समाज की जमीन कोयले खदानों में चली गयी, लेकिन नौकरी नहीं मिली. घाटशिला में तब भी मैंने संपन्न आदिवासी देखे और पाकुड़ की स्थिति बिलकुल उलट थी. लेखक होने के नाते मेरे लिए यह बहुत पीड़ादायी था.
8.लेखक और सामाजिक कार्यकर्ता ग्लैडसन डुंगडुंग ने भी फेसबुक पर डा. हांसदा सोवेंद्र शेखर के खिलाफ कड़ी प्रतिक्रिया जतायी थी. उन्होंने लिखा, ‘कोकशास्त्र के महान लेखक डा. हांसदा सोवेंद्र शेखर को साहित्यकार बता कर उनकी कृति के लिए उन्हें पुरस्कार दिया गया, और अब जब उनकी आलोचना हो रही है, तो कुछ लोग उनको अभी भी महान साहित्यकार बता कर उनके पक्ष में खड़े हैं. ऐसे लोगों से सवाल पूछा जाना चाहिए कि डा. हांसदा के उपन्यास और कहानी संग्रह में आदिवासी दर्शन कहां है?’

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