टीम ने अपनी रिपोर्ट में निदेशालय को बताया था कि अस्पतालों को लाभ पहुंचाने के लिए सप्लायर क्रेडिट नोट जारी करते हैं. अस्पतालों द्वारा मरीजों को अलग-अलग बिल दिया जाता है. टीम ने निदेशालय को सुझाव दिया था कि इंप्लांट के क्रय-विक्रय की नीति नहीं है, जिसके कारण मरीजों को अनावश्यक कीमतें चुकानी पड़ती हैं. प्रभात खबर ने 30 जनवरी को हड्डी इंप्लांट के नाम पर मनमाना पैसा वसूले जाने की खबर प्रकाशित की थी. विधानसभा में मामला उठने के बाद जांच के लिए टीम बनायी गयी थी.
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तीन हड्डी इंप्लांट सप्लायरों के लाइसेंस 30 दिनों के लिए निलंबित
रांची :राज्य औषधि निदेशालय ने हड्डी इंप्लांट के सप्लायर अग्रवाल सर्जिकल, सुधीर सर्जिकल एवं स्पार्क सर्जिकल का लाइसेंस 30 दिन के लिए निलंबित कर दिया है. निदेशालय ने उक्त सप्लायरों पर 14 जुलाई को कार्रवाई कर अधिसूचना जारी दी है. यह कार्रवाई ड्रग कंट्रोलर रितु सहाय के निर्देश पर की गयी है. निलंबन की अवधि […]
रांची :राज्य औषधि निदेशालय ने हड्डी इंप्लांट के सप्लायर अग्रवाल सर्जिकल, सुधीर सर्जिकल एवं स्पार्क सर्जिकल का लाइसेंस 30 दिन के लिए निलंबित कर दिया है. निदेशालय ने उक्त सप्लायरों पर 14 जुलाई को कार्रवाई कर अधिसूचना जारी दी है. यह कार्रवाई ड्रग कंट्रोलर रितु सहाय के निर्देश पर की गयी है. निलंबन की अवधि में सप्लायर हड्डी इंप्लांट की खरीद-बिक्री नहीं कर सकेंगे. निदेशालय ने स्पष्ट निर्देश दिया है कि अगर निलंबन की अवधि में एजेंसी द्वारा किसी प्रकार की खरीद-बिक्री की जाती है, तो उनका लाइसेंस स्थायी रूप से रद्द कर दिया जायेगा. निदेशालय ने सप्लायरों पर यह कार्रवाई जांच टीम द्वारा सौंपी गयी रिपोर्ट के आधार पर की है.
क्या गड़बड़ी मिली थी
मेसर्स अग्रवाल सर्जिकल
टीम ने 15 फरवरी को जांच की थी. जांच में पाया गया था कि एक ही प्रकार के इंप्लांट की आपूर्ति अलग-अलग अस्पतालों को अलग-अलग दर पर की गयी. सप्लायर ने टीम को अस्पतालों को दिये गये इंप्लांंट का कच्चा बिल व कार्बन कॉपी प्रस्तुत किया. क्रय का अभिलेख प्रस्तुत नहीं किया गया.
मेसर्स सुधीर सर्जिकल
टीम ने 18 फरवरी को जांच की थी. इसमें पाया गया था कि एक ही प्रकार के इंप्लांट की आपूर्ति अलग-अलग अस्पतालों को अलग-अलग दर पर की गयी. लेबल पर एमआरपी नहीं पाया गया था. बिना बिल के कई अस्पतालों को इंप्लांट की आपूर्ति की गयी थी.
मेसर्स स्पार्क सर्जिकल
टीम ने 14 फरवरी को जांच की थी. टीम ने पाया था कि एक ही प्रकार के इंप्लांट की आपूर्ति अलग-अलग अस्पतालों को अलग-अलग दर पर की गयी. लेबल पर एमआरपी नहीं पाया गया था. वहीं लेबल के अभिलेख से भी छेड़छाड़ की गयी थी. जांच टीम ने यहां से दो गवाहों के समक्ष इंप्लांट को जब्त किया था. निदेशालय को भेजी गयी रिपोर्ट में इस बात का उल्लेख भी किया गया.
मेडिका व गुलमोहर अस्पताल को चेतावनी
राज्य औषधि निदेशालय ने रांची के मेडिका व गुलमोहर अस्पताल को चेतावनी दी है.जांच टीम ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि गुलमाेहर अस्पताल में 12 फरवरी को जांच की गयी थी.अस्पताल द्वारा इंप्लांट की सूची सप्लायर को फोन पर दी जाती है.सप्लायर मरीज के बजाय अस्पताल के नाम से बिल देते हैं.एक ही इंप्लांट का अलग-अलग पैसा लिया जाता है. वहीं मेडिका अस्पताल की जांच 21 फरवरी को हुई थी. यहां इंप्लांट की राशि मरीज से पैकेज के रूप में ली जाती है.सप्लायर अस्पताल के नाम पर बिल देते हैं. क्रेडिट नोट पर अस्पताल इंप्लांट क्रय करता है.
जो निर्देश दिये गये :सप्लायरों को निदेशालय ने निर्देश दिया है कि इंप्लांट का बिल अस्पताल के बजाय मरीज के नाम पर जारी किया जाये. भले ही अस्पताल द्वारा इंप्लांट मंगाया जा रहा हो. वहीं अस्पतालों को चेतावनी दी गयी है कि ऑपरेशन के पैकेज में इंप्लांट का पैसा नहीं जोड़ा जाये. इंप्लांट का कितना पैसा लिया गया है व बैच नंबर क्या है,इसका उल्लेख मरीजों को दिये गये बिल में करें.
तीन सप्लायरों का लाइसेंस निलंबित कर दिया गया है. उन्हें स्पष्ट निर्देश दिया गया है कि दोबारा ऐसी गलती न करें, नहीं तो हमेशा के लिए लाइसेंस रद्द कर दिया जायेगा. दो अस्पतालों को भी चेतावनी दी गयी है.
सुरेंद्र प्रसाद, संयुक्त निदेशक, औषधि
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