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लक्ष्य को संस्कार बनायें, सफलता खुद मिलेगी

रांची: बच्चे के प्रतियोगिता परीक्षाओं में सफल होने में एक संस्थान की भूमिका मात्र नौ फीसदी ही होती है, बाकी का 91 फीसदी प्रयास बच्चे को ही करना होता है. आप इसे यूं समझें कि एक बीज को पेड़ बनने में हवा, पानी, सूर्य की रोशनी आवश्यक है, लेकिन उस बीज का सक्रिय होना सबसे […]

रांची: बच्चे के प्रतियोगिता परीक्षाओं में सफल होने में एक संस्थान की भूमिका मात्र नौ फीसदी ही होती है, बाकी का 91 फीसदी प्रयास बच्चे को ही करना होता है. आप इसे यूं समझें कि एक बीज को पेड़ बनने में हवा, पानी, सूर्य की रोशनी आवश्यक है, लेकिन उस बीज का सक्रिय होना सबसे पहले है. इसी तरह जब तक बच्चे को यह विश्वास न हो कि वह सफल हो सकता है, तब तक कोई संस्थान कुछ नहीं कर सकता.

यह कहना है कोटा के इंजीनियरिंग-मेडिकल परीक्षाओं की तैयारी कराने वाली संस्थान एलेन के निदेशक नवीन माहेश्वरी का. शुक्रवार को श्री माहेश्वरी रांची में थे. प्रभात खबर से बातचीत करते हुए कोटा, संस्थान की शिक्षण शैली अादि पर कई महत्वपूर्ण बातों पर प्रकाश डाला.

संस्कार से सफलता तक
कोटा को इंजीनियरिंग-मेडिकल परीक्षाओं की तैयारी का गढ़ माना जाता है. यहां तमाम तरह की संस्थाएं जो बच्चों को इंजीनियरिंग और डॉक्टर बनाने की गारंटी देते हैं. लेकिन हमारे यहां आने वाले छात्र को कभी इस तरह की बात नहीं कही जाती है. एलेन बच्चों को संस्कार से सफलता तक की बात करता है. हम बच्चों से बस इतनी सी बात कहते हैं कि आप जो करने आये हैं, उसे संस्कार बना लें. उस संस्कार का अक्षरश: पालन करें, सफलता खुद ब खुद मिल जायेगी. यही वजह है कि हमने ‘एलेन पापा’ कांसेप्ट शुरू किया. बच्चा जब घर में होता है, तब वह अपने अभिभावकों के साथ रहते हुए उनके द्वारा दिये गये संस्कार को फॉलो करता है. वही बच्चा जब घर से बाहर निकलता है, तो एक संरक्षक की उम्मीद करता है. इसी बात को समझते हुए हमने ‘एलेन पापा’ कांसेप्ट शुरू किया. इस कांसेप्ट में संस्थान के शिक्षक बच्चों के पिता की तरह होते हैं. घर में एक पिता जिस तरह की भूमिका निभाता है, ठीक वही भूमिका संस्थान में शिक्षक निभाते हैं.
कमिटमेंट, अनुशासन और निरंतरता : मेडिकल परीक्षाओं की तैयारी कराने वाली एलेन आज इंजीनियरिंग में अच्छा कर रही है. ऐसा कैसे संभव हुआ. इस सवाल के जवाब में कहा कि हमारे यहां कोई मालिक नहीं है. टीम एलेन एक परिवार के रूप में काम करता है. हमने अपने शिक्षकों से कह रखा है कि आप काम करें और स्वयं निर्णय लें. चूंकि कोई एक ब्रेन का कांसेप्ट नहीं है, तो ऐसे में हम जो भी काम करते हैं, आपसी सहमति से करते हैं. जहां तक रही बात मेडिकल से इंजीनियरिंग में बेहतर करने की, तो हम कोई आश्चर्यजनक काम नहीं कर रहे. हम अपने संस्थान में कमिटमेंट, अनुशासन और निरंतरता को फॉलो करते हैं. ये तीन चीजें मेरे हर जगह के संस्थान में मिलेगी. इन्हीं तीन चीजों को आप मेरा टीचिंग मैथड कह सकते हैं. इन्हीं की बदौलत हम बेहतर कर रहे हैं.
संस्थान नहीं दिलाते सफलता : एक विद्यार्थी के सफल होने में संस्थान की भूमिका क्या होती है? इस सवाल के जवाब में कहा शिक्षा, रक्षा और चिकित्सा ये तीन ऐसे क्षेत्र हैं, जहां सफल होने के लिए अनुशासन व संस्कार जरूरी हैं. अगर ये नहीं हैं, तो आपकी सफलता में संशय बना रहेगा. ऐसी धारणा बनी हुई है कि हम फलाने संस्थान से पढ़ाई कर रहे हैं, तो सफलता सुनिश्चित है. ऐसा नहीं है. बच्चे के सफल हाेने में 91 फीसदी स्वयं उसकी भूमिका होती है, जबकि नौ फीसदी ही भूमिका संस्थान की होती है. अपने नौ फीसदी की भूमिका में संस्थान आपको बस इतना बताती है कि आप अपनी 91 फीसदी भूमिका का निर्वहन कहां, कैसे और कब करें.

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