रिपोर्ट के मुताबिक, मौजा पुंदाग का खाता संख्या 101, 256, 43, 141 व मौजा बजरा के खाता संख्या 100 आदि आदिवासी खाते की भूमि से संबंधित है. ये आदिवासी खाते की भूमि के विक्रेता वही लोग हैं, जो वॉल्यूम 36 (1945) में आदिवासी खाते की भूमि की स्थायी लीज बंदोबस्ती तत्कालीन कथित जमींदार से प्राप्त किये थे.
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बड़ा खुलासा: बजरा व पुंदाग के तीन दस्तावेजों की जांच में सामने आया मामला, 113.38 एकड़ जमीन की अवैध बिक्री
रांची : जांच टीम ने आदिवासी खाते की जमीन के दस्तावेजों में छेड़छाड़ कर बेचने के मामले की रिपोर्ट उपायुक्त को सौंप दी है. इसकी जांच कई दिनों से चल रही थी. जांच टीम ने हेहल अंचल के बजरा मौजा से संबंधित 5.26 एकड़ जमीन के मामले की जांच की और गड़बड़ी पकड़ी. इस रिपोर्ट […]
रांची : जांच टीम ने आदिवासी खाते की जमीन के दस्तावेजों में छेड़छाड़ कर बेचने के मामले की रिपोर्ट उपायुक्त को सौंप दी है. इसकी जांच कई दिनों से चल रही थी. जांच टीम ने हेहल अंचल के बजरा मौजा से संबंधित 5.26 एकड़ जमीन के मामले की जांच की और गड़बड़ी पकड़ी. इस रिपोर्ट के आधार पर उपायुक्त मनोज कुमार ने जिला अवर निबंधक को निर्देश दिया कि मूल दस्तावेज को बदलनेवाले लोगों, कर्मियों व लाभार्थियों की पहचान करें. फिर इनके खिलाफ तत्काल प्राथमिकी दर्ज करायें. साथ ही आदिवासियों को जमीन वापसी से संबंधित प्रस्ताव भी दें. बजरा व पुंदाग के केवल तीन दस्तावेजों के माध्यम से 113.38 एकड़ गैरमजरूआ जमीन की अवैध बंदोबस्ती या बिक्री की गयी है.
रांची के हेहल अंचल स्थित बजरा मौजा में 5.26 एकड़ आदिवासी खतियान की जमीन संजय कुमार साहू के नाम से कर दिये जाने (नामांतरण) के मामले की जांच रिपोर्ट आ गयी है. यह मामला खाता संख्या 87, प्लॉट संख्या 263 व 265 से संबंधित है. इसकी जांच में पाया गया कि निबंधित इस्तीफा संख्या 5439 (वर्ष 1945) से उक्त भूमि को खतियानी रैयत द्वारा तत्कालीन जमींदार को इस्तीफा दिया गया है. साथ ही निबंधित कबूलियत बंदोबस्ती संख्या 5679 (वर्ष 1945) द्वारा तत्कालीन जमींदार महाराजा गंगा राम साहू द्वारा सोनारी जौजे, पालतू साहू को बंदोबस्ती की गयी. इन दोनों पंजीकृत दस्तावेज इस्तीफानामा व कबूलियत की जांच जिला अवर निबंधक कार्यालय में करने पर जांच टीम को आश्चर्यजनक तथ्य मिले.
उस समय के अन्य दस्तावेज के लेखन बिल्कुल अलग : जांच में पाया गया कि ये दस्तावेज बुक संख्या एक के वॉल्यूम संख्या 36 वर्ष 1945 में अंकित है. पंजी में दस्तावेज लेखक की हस्तलिपि स्पष्ट है, लेकिन उस समय के अन्य दस्तावेज के लेखन बिल्कुल अलग हैं. उसी समय के इस पंजी व दूसरे पंजी में दर्ज अवर निबंधक के हस्ताक्षर में भिन्नता पायी गयी. पंजी में अंकित दस्तावेज का मिलान भी इंडेक्स से नहीं हुआ. वॉल्यूम 36 से संबंधित आदिवासी भूमि के संदिग्ध इस्तीफा-कबूलियत के दस्तावेज के पन्ने हल्के पीले रंग के हैं, जबकि इंडेक्स के अन्य पन्ने हल्के हरे रंग के हैं. वहीं दस्तावेजों का मिलान अंगूठे के निशान वाली पंजी से करायी गयी, तो वे भी मैच नहीं कर रहे हैं.
वॉल्यूम 23 के 39 विक्रेताअों के नाम नहीं मिल रहे : बुक संख्या एक के वॉल्यूम 23 (1969) की जांच में पाया गया कि इसमें कुल 226 दस्तावेज हैं. इन दस्तावेजों का मिलान अंगूठे के निशान से कराया गया, तो पाया गया कि 187 दस्तावेजों का विक्रेताअों के नाम इस पंजी में मिल (मैच) रहे हैं, जबकि 39 दस्तावेजों के विक्रेताअों के नाम नहीं मिल रहे हैं. नाम नहीं मिलनेवाले दस्तावेजों में चार दस्तावेज पुंदाग मौजा के खाता संख्या 383 (गैर मजरुआ) से हैं, जबकि चार दस्तावेज रातू मौजा के गैर मजरुआ मालिक खाता संख्या 426, एक दस्तावेज मौजा बजरा के गैर मजरुआ खाता 119 से संबंधित हैं.
जांच में जो गड़बड़ियां पायी गयी
-बुक संख्या एक, वॉल्यूम 36/1945 में छेड़छाड़ की गयी, मूल पंजी को बदल कर दूसरे दस्तावेज रखे गये
-इंडेक्स एक व दो में बदले गये दस्तावेजों से संबंधित पृष्ठों को भी बदल दिया गया है, जो पेपर के अलग-अलग रंग में दिख रहे हैं
-फरजी दस्तावेजों के आधार पर आदिवासी खाते की जमीन बेची गयी है
-इस काम में रजिस्ट्री कार्यालय के तत्कालीन अभिलेख प्रभारी व उनके सहयोगी की कर्मियों की संलिप्तता रही है
गड़बड़ी करनेवालों के खिलाफ जो आदेश हुआ
-इसमें शामिल लोगों, कर्मियों, लाभ पानेवालों पर प्राथमिकी दर्ज करायें
-पंजी के पन्नों की लिखावट, गुणवत्ता, समावधि, स्याही की तुलनात्मक जांच विशेष दूत कोलकाता भेज कर फॉरेंसिक लेबोरेटरी से करायें
– रिपोर्ट प्राप्त होते ही इस अवधि के कर्मियों के नाम दर्ज कर अापराधिक मुकदमा चलाने की कार्रवाई करें
-इस पंजी से किसी भी तरह का नकल नहीं दें
-जिला अवर निबंधक को किसी भी पंजीकृत दस्तावेजों का नकल उचित पहचान के बाद ही निर्गत करें
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