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दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली में हो सुधार

रांची : सब पढ़े–सब बढ़े की तर्ज पर शिक्षा का अधिकार अधिनियम पारित हुआ. इस नियम के तहत मुख्य उद्देश्य यह रखा गया कि बच्चों की उपस्थिति विद्यालय में अधिक से अधिक हो. इसके लिए मध्याह्न योजना, फ्री में कॉपी, किताब, यूनिफार्म की व्यवस्था करायी गयी, ड्राॅप आउट रोकने के लिए बच्चों को उसकी आयु […]

रांची : सब पढ़े–सब बढ़े की तर्ज पर शिक्षा का अधिकार अधिनियम पारित हुआ. इस नियम के तहत मुख्य उद्देश्य यह रखा गया कि बच्चों की उपस्थिति विद्यालय में अधिक से अधिक हो. इसके लिए मध्याह्न योजना, फ्री में कॉपी, किताब, यूनिफार्म की व्यवस्था करायी गयी, ड्राॅप आउट रोकने के लिए बच्चों को उसकी आयु के अनुसार कक्षा की व्यवस्था कराने का प्रावधान बनाया गया. सरकार को चाहिए कि हमारी दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली में सुधार हो.
कक्षा पहली से आठवीं तक की शिक्षा उच्च शिक्षा की नींव होती है. मुख्यत: इन कक्षाओं में पांच से 13 वर्ष के आयु के बच्चे होते हैं. यह एक ऐसी अवस्था होती है जिसमें बच्चे की शारीरिक व मानसिक विकास की गति काफी तेज होती है.
इसी अवस्था में बच्चों में समझने, ग्रहण करने व कुछ नया करने का जज्बा होता है. अत: उनके प्रयास व मेहनत को जांचे-परखे बिना प्रोन्नति मिल जाना उसके जुझारुपन में विराम चिह्न लगाने जैसा है. पहली कक्षा से ही फेल होने का डर बच्चों में डाला जाने लगता है जो कि दसवीं के बाद आत्महत्या जैसी घटना में तब्दील हो जाती है. नकारत्मक भावना बच्चों के मन-मस्तिष्क में इतना घर कर जाती है कि दोबारा प्रयास उनके लिए जटिल बन जाता है.
विद्यालय में बच्चों की उपस्थिति बढ़ाने के लिए सभी तरह के प्रलोभन कार्यक्रम शामिल किये जाते हैं, लेकिन उन्हीं बच्चों की संख्या के अनुरूप योग्य शिक्षक की नियुक्ति नहीं की जाती है.
इस अवस्था में शिक्षक की जिम्मेदारी काफी महत्वपूर्ण होती है. प्रत्येक बच्चों का व्यक्तिगत रूप से निरीक्षण करना इसी अवस्था में आवश्यक होता है. इसी उम्र में बच्चों की मेहनत व प्रयास को प्रोत्साहित किया जा सकता है.
देश की साक्षरता दर बढ़ाना आवश्यक है, लेकिन केवल मातृ भाषा में पढ़ना, लिखना व बोलना वर्तमान व भविष्य के लिए उचित नहीं होगा. जरूरत है साक्षरता की दर से ऊपर होकर सरकार बच्चों को शिक्षित बनाने का प्रयास करे.
अंजलि कुमारी, पीएचडी छात्र, रांची विवि

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