रांची : रांची के बजरा व पुंदाग मौजा में करीब 800 एकड़ भूमि का घोटाला हुआ है. सरकारी व आदिवासी जमीन का फरजी दस्तावेज तैयार कर खरीद-बिक्री की गयी है. इन जमीन की जमाबंदी पूरी तरह फरजी है. आदिवासियों की जमीन एसएआर कोर्ट के आदेश का फरजी दस्तावेज तैयार कर व मुआवजा भुगतान दिखा कर बेच दी गयी है.
मामले का खुलासा तब हुआ, जब संबंधित वरीय अधिकारियों ने इसकी जांच शुरू की. रिकॉर्ड रूम में जांच करायी गयी, तो पाया गया कि वहां बड़े पैमाने पर छेड़छाड़ हुई है. जांच के दौरान न तो वोल्यूम मिला और न ही इंडेक्स से मिलान हो पाया. अंगूठा का निशान व हस्ताक्षर भी पता नहीं चल रहा है.
जिस दस्तावेज के आधार पर इन दोनों मौजा में जमीन बेचे जा रहे हैं, वरीय अधिकारियों ने उसे भी फरजी पाया. अब इस दस्तावेज की फॉरेंसिक जांच करायी जायेगी. मामले का खुलासा होने के बाद संबंधित अफसरों की भी होश उड़ गये. प्रथम दृष्टया इस मामले में बिचौलये व संबंधित कर्मियों की मिलीभगत सामने आ रही है.
सीअो, रजिस्ट्री अॉफिस की भूमिका पर सवाल
वरीय अधिकारियों ने पाया है कि जमीन की गड़बड़ी में अंचल कार्यालय, रजिस्ट्री कार्यालय व रिकॉर्ड रूम की भूमिका अहम रही है. यहां के कर्मियों की मिलीभगत से ही सारे फरजी दस्तावेज तैयार हुए. रिकॉर्ड रूम से खतियान बदला गया. मूल खतियान गायब कर दिया गया. फरजी डीड बनाया गया. रजिस्ट्री अॉफिस से डीड की मूल प्रति ही गायब है. अंचल कार्यालय में फरजी कागजातों के आधार पर दाखिल खारिज कराया गया और रसीद कटवायी गयी. तीन दफ्तरों के कर्मियों की मिलीभगत की भी जांच होगी.
जाली आदेश दिखा बेच दी 20 करोड़ की जमीन
रांची. कांके अंचल के बोड़ेया में 2.46 एकड़ आदिवासी जमीन फरजी दस्तावेज बना कर बेच दी गयी है. इसकी बाजार कीमत करीब 20 करोड़ आंकी जा रही है. जांच में अधिकारियों ने पाया कि यह जमीन डॉ केके सिन्हा के आवास के पिछले इलाके में स्थित है. इस जमीन का खाता 461 है. प्लॉट संख्या 2425 है. खतियान में इसके मालिक के रूप में सुकरा उरांव, लोहरा उरांव व बिरसा उरांव के नाम दर्ज हैं. जांच में अफसरों ने यह पाया कि यह पूरी तरह आदिवासी जमीन है, पर इसे मोरिअस इंफ्रास्ट्रक्चर व अन्य को बेच दिया गया है. मामले पकड़ में आने के बाद तत्कालीन एलआरडीसी सहित कांके के अंचलाधिकारी, अंचल निरीक्षक व राजस्व कर्मचारी पर कार्रवाई का आदेश दिया गया है. जमीन की गड़बड़ी करनेवाले इबरार अहमद, इसराफिल अहमद व चंद्रशेखर कुमार पर प्राथमिकी दर्ज करने का आदेश दिया गया है. जमीन आदिवासी परिवार को वापस करने का आदेश कांके सीअो को दे दिया गया है.
ऐसे हुई गड़बड़ी
इबरार अहमद व इसराफिल अहमद ने 21 मई 1946 की तिथि से एक डीड अपने नाम से बनवाया. इसका नंबर 3043 है. इसके आधार पर उन्होंने जमीन पर अपना दावा किया और पावर अॉफ अटर्नी चंद्रशेखर कुमार को दे दिया. उन्होंने एसएआर कोर्ट का आदेश भी दिखाया. इसके बाद आदिवासियों को मुआवजा भुगतान किये जाने संबंधी कागजात पेश किये. इसके आधार पर जमीन का दाखिल खारिज भी कराया गया था.
ऐसे हुआ मामले का खुलासा
मामला जब जिला के वरीय अधिकारियों के पास पहुंचा, तो उन्होंने इसकी जांच शुरू की. पता चला कि 1946 का जो डीड (3043) पेश किया गया है, वह जाली है. इस मामले में दो साल पहले ही अवर निबंधक कार्यालय ने प्राथमिकी दर्ज करा रखी है. इसके बाद आगे जांच की गयी, तो पाया गया कि मामले में एसएआर कोर्ट से कोई आदेश ही नहीं हुआ है. एसएआर वाद संख्या 436/2004-05 के तहत मुआवजा का जो आदेश दिखाया गया , वह पूरी तरह से फरजी है. सबसे दिलचस्प बात है कि डीड 3043 की मूल प्रति भी अवर निबंधन कार्यालय से गायब है.