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ओके….गिद्दी से भी नाता थारीझूनाथ चौधरी का

गिद्दी(हजारीबाग).पूर्व प्रमुख रीझूनाथ चौधरी का संबंध गिद्दी क्षेत्र से भी रहा है. बहुत कम लोग जानते हैं कि रीझूनाथ चौधरी गिद्दी सी में को-ऑपरेटिव सोसाइटी के सेल्समैन थे. लगभग दो-तीन वर्षों तक उन्होंने यहां काम किया था. सोसाइटी की स्थिति खराब होने पर वे यहां से अपना घर सांडी, रजरप्पा लौट गये थे. श्री चौधरी […]

गिद्दी(हजारीबाग).पूर्व प्रमुख रीझूनाथ चौधरी का संबंध गिद्दी क्षेत्र से भी रहा है. बहुत कम लोग जानते हैं कि रीझूनाथ चौधरी गिद्दी सी में को-ऑपरेटिव सोसाइटी के सेल्समैन थे. लगभग दो-तीन वर्षों तक उन्होंने यहां काम किया था. सोसाइटी की स्थिति खराब होने पर वे यहां से अपना घर सांडी, रजरप्पा लौट गये थे. श्री चौधरी ने कई संस्थानों में नौकरी की थी. गिद्दी सी परियोजना वर्ष 1960-61 में शुरू हुई थी. यहां पर कार्यरत मजदूरों को खाद्य सामग्री लेने के लिए रैलीगढ़ा, गिद्दी आदि अन्य जगहों पर जाना पड़ता था. मजदूरों ने अपनी सुविधा के दृष्टिकोण से वर्ष 1965-66 के आस-पास को-ऑपरेटिव सोसाइटी बनायी थी. को-ऑपरेटिव सोसाइटी संचालित करने के लिए रीझूनाथ चौधरी को रखा गया था. डाड़ी गांव के स्व निर्मल महतो ने उन्हें यहां पर लाया था. रीझूनाथ चौधरी पढे़ लिखे थे. उन्हें 60-70 रुपये मासिक पगार मिलते थे. दो वर्ष संचालित हुआ को-ऑपरेटिव : दो वर्षों तक रीझूनाथ चौधरी सुचारू पूर्वक को-ऑपरेटिव को संचालित किया था. खाद्य सामग्री सेंट्रल सौंदा स्थित सेंट्रल को-ऑपरेटिव सोसाइटी सहित कुछ अन्य जगहों से यहां लाया जाता था. कुछ कारणों से सोसाइटी की स्थिति खराब हो गयी थी और को-ऑपरेटिव को बंद करना पड़ा था. को-ऑपरेटिव को नये सिरे से चालू किया गया था और कमेटी गठित की गयी थी. सेवानिवृत्त सीसीएलकर्मी ने बताया कि रीझूनाथ चौधरी मिलनसार व मृदुभाषी स्वभाव के थे. उस वक्त लेन-देन के दौरान उनका 20 रुपये हमारे पास रह गये थे. कई वर्षों के बाद उन्हें यह पैसा देने गया था, लेकिन उन्होंने नहीं लिया था.

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