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दिव्यांग प्रमोद जला रहे हैं शिक्षा का अलख
सतबरवा : कहते हैं हौसलों की उड़ान होती है. इस बात को सतबरवा की पोंची पंचायत के हलुमांड गांव के प्रमोद कुमार सिंह सच करने में जुटे हैं. दोनों पैर से दिव्यांग प्रमोद ने परिस्थितियों से हार नहीं मानी है. बल्कि हौसले के साथ वह आगे बढ़ने में जुटे हैं. स्वामी विवेकानंद की 154 वीं […]
सतबरवा : कहते हैं हौसलों की उड़ान होती है. इस बात को सतबरवा की पोंची पंचायत के हलुमांड गांव के प्रमोद कुमार सिंह सच करने में जुटे हैं. दोनों पैर से दिव्यांग प्रमोद ने परिस्थितियों से हार नहीं मानी है. बल्कि हौसले के साथ वह आगे बढ़ने में जुटे हैं. स्वामी विवेकानंद की 154 वीं जयंती है. इसे युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है. ऐसे में दिव्यांग युवा प्रमोद की कहानी भी कम प्रेरणादायी नहीं है. प्रमोद अपने आसपास के गांव में शिक्षा का अलख जगाने में जुटे हैं.
प्रमोद की उम्र लगभग पांच वर्ष की थी, जब वह नि:शक्तता का शिकार हो गया. दिव्यांग होने के कारण वह किसी पर बोझ नहीं बनेगा, इस बात को उस वक्त ही ठान ली थी.
आज की तिथि में प्रमोद क्लास अाठ से 10 तक के विद्यार्थियों को ट्यूशन पढ़ाने का काम करते हैं, जिससे उनकी आजीविका चलती है. साथ ही तीन भाइयों को भी पढ़ाते हैं. तीन भाइयों में एक जितेंद्र कुमार सिंह स्नातक है. अरुण कुमार सिंह इंटर (कॉमर्स) और विक्रम कुमार सिंह इंटर (साइंस) की पढ़ाई कर रहा है. तीनों भाइयों की पढ़ाई के खर्च प्रमोद ही उठाते हैं. प्रमोद की मानें तो शिक्षा से ही गरीबी जैसे अंधकार को दूर किया जा सकता है. प्रमोद न सिर्फ आसपास के गांव में शिक्षा का अलख जगा रहे हैं, बल्कि स्वयं भी अध्ययनरत हैं.
प्रमोद मेदिनीनगर के जनता शिवरात्रि कॉलेज में स्नातकोत्तर के छात्र हैं. प्रमोद ने बताया कि जब वह 5 वर्ष था, तब से नि:शक्तता का शिकार हो गया. पिता शंकर सिंह आर्थिक रूप से कमजोर थे, फिर भी अपने सामर्थ्य के अनुसार काफी इलाज कराया, लेकिन बीमारी ठीक नहीं हुई. प्रमोद अपने गांव से लगभग पांच किलोमीटर दूर सर्वोदय उच्च विद्यालय सतबरवा में रोज पढ़ने आता था. 2010 में इसी विद्यालय से मैट्रिक की परीक्षा पास की और आगे भी पढ़ाई जारी रखा. प्रमोद ने बताया कि दो वर्ष पूर्व सरकार द्वारा थ्री ह्वीलर रिक्शा मिला है, जिससे पढ़ाई करने के लिए आने जाने में सहूलियत होती है
प्रमोद को इस बात का मलाल है कि प्रयास करने के बाद भी उसे विवेकानंद नि:शक्ता पेंशन योजना का लाभ आज तक नहीं मिला. आरोप है कि जब वह काफी परेशान हुआ, तो एक बिचौलिया को पेंशन स्वीकृत कराने के लिए 500 रुपये भी दिया लेकिन इसके बाद भी उसे आज तक पेंशन नहीं मिली. प्रमोद का कहना है कि कभी भी हौसला पस्त नहीं होना चाहिए. मन में यदि इच्छा शक्ति हो तो सफलता मिलती है.
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