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मुख्यमंत्री का हस्तक्षेप चाहिए

मुख्यमंत्री का हस्तक्षेप चाहिएअस्पताल के लिए जमीन दे सरकारयालाेग सामने आयें, जमीन दान करेंअनुज कुमार सिन्हा यह साेलह आने सच है कि झारखंड में गरीबाें के लिए रिम्स के अलावा काेई बेहतर सरकारी अस्पताल नहीं है. सदर अस्पताल ताे भरे पड़े हैं, लेकिन अच्छी स्थिति में नहीं हैं. एेसी बात नहीं है कि राज्य में […]

मुख्यमंत्री का हस्तक्षेप चाहिएअस्पताल के लिए जमीन दे सरकारयालाेग सामने आयें, जमीन दान करेंअनुज कुमार सिन्हा यह साेलह आने सच है कि झारखंड में गरीबाें के लिए रिम्स के अलावा काेई बेहतर सरकारी अस्पताल नहीं है. सदर अस्पताल ताे भरे पड़े हैं, लेकिन अच्छी स्थिति में नहीं हैं. एेसी बात नहीं है कि राज्य में बड़े अस्पताल (निजी की बात हाे रही है) नहीं हैं. एक-दाे नहीं, कई हैं. लेकिन पैसेवालाें के लिए, गरीबाें के लिए नहीं. हां, वहां बेहतरीन सुविधाएं हैं . लेकिन आप वहां तभी जा सकते हैं, जब आपके पास अच्छा-खासा पैसा हाे. एेसे अस्पतालाें में मामूली बीमारी- चेकअप के लिए हजाराें लगते हैं. झारखंड के लाेग इलाज के लिए सीएमसी वेल्लाेर जाते हैं. वही सीएमसी आज झारखंड में बन गया हाेता, अगर उसे झारखंड में जमीन मिल गयी हाेती. जमीन नहीं मिली. अगर वह अस्पताल बन गया हाेता, ताे यहां के लाेगाें काे दक्षिण के राज्याें में इलाज के लिए नहीं जाना पड़ता. यहां के लाेग दिल्ली जाते हैं, एम्स में इलाज के लिए. एक बार ताे ऐसी खबर आ गयी कि इस राज्य में एम्स बनाने के लिए केंद्र तैयार हाे गया है. जमीन की खाेज हाेने लगी. सच यह है कि अभी तक झारखंड के लिए एम्स स्वीकृत ही नहीं हुआ है. एम्स या एम्स जैसे बेहतरीन सरकारी अस्पताल ही झारखंड में गरीब मरीजाें का भला कर सकता है. अगर निजी अस्पताल की बात हाे ताे झारखंड काे ऐसे अस्पताल चाहिए, जिनका मकसद सिर्फ पैसा कमाना नहीं हाे. ऐसे अस्पताल आयें, जाे बेहतर सुविधा दें आैर वह भी कम पैसे पर. लाेगाें काे तत्काल राहत चाहिए. 180 कराेड़ की लागत से रांची में बने सदर अस्पताल का अगर बेहतर उपयाेग हाे पाये, ताे सबसे अच्छा लेकिन इस पर इतना विवाद हाे चुका है कि काेई इसमें पड़ना नहीं चाहता. सरकार ने एक रुपये में एक बड़े अस्पताल काे जमीन दी, लेकिन अस्पताल कहां बन रहा. रद्द हाेने चाहिए ऐसे समझाैते. एचइसी में अस्पताल है, लेकिन बेकार हाेता जा रहा है. इसका कायाकल्प हाे सकता है. झारखंड काे बेहतर आैर कम पैसे में इलाज करनेवाला अस्पताल चाहिए. मुख्यमंत्री अगर चाहें, ताे मिनटाें में इसका समाधान हाे सकता है. अस्पताल के लिए सरकार जमीन दे या फिर झारखंड के उन लाेगाें (दानवीराें) काे आगे आना हाेगा, जिनके पास जमीन है आैर अच्छे काम के लिए जमीन दान में देने की इच्छाशक्ति भी. गंगाराम बुधिया ने बीआइटी, मारवाड़ी स्कूल, विकास विद्यालय के लिए जमीन दी थी, नागरमल माेदी ने सेवा सदन बनवाया था. एसके सहाय द्वारा दी गयी जमीन पर कॉलेज, बिहार क्लब जैसी संस्थाएं बनीं. अगर इन लाेगाें ने नेक काम के लिए जमीन नहीं दी हाेती, ताे साेचिए, बेहतर संस्थाएं कहां आैर कैसे बनती. आज भी समाज में ऐसे लाेग हैं. इन्हें आगे आना चाहिए. देश-समाज काे बेहतर बनाने के लिए. झारखंड उन्हें याद करेगा. उनका ऋणी रहेगा. खुद मुख्यमंत्री घाेषणा करते रहे हैं कि जमीन की कमी नहीं हाेगी. काेई आगे ताे आये. लगभग 15 साल के बाद झारखंड के पास एक बेहतरीन अस्पताल काे लाने का माैका आया है. यह अस्पताल है आनंदलाेक अस्पताल. काेलकाता का है. ट्रस्ट चलाता है. देवकुमार सर्राफ चलाते हैं. सेवा का उनमें जुनून है, क्याेंकि इलाज के अभाव में उनके करीबी की कभी माैत हाे गयी थी. सारी संपत्ति बेच कर अस्पताल चालू किया. एक चाैथाई खर्च पर इलाज हाेता है. सिर्फ 20 रुपये में आंख की जांच कर चश्मा दिया जाता है. आइसीयू केबिन का किराया सिर्फ 75 रुपये प्रतिदिन है (अन्य बड़े अस्पतालाें में तीन से पांच हजार), 85 हजार में बाइपास सर्जरी हाेती है (अन्य अस्पतालाें में इस पर तीन लाख खर्च हाेते हैं). यह अस्पताल झारखंड आने काे तैयार है, अगर उसे जमीन मिल जाती है. इस अस्पताल काे जमशेदपुर लाने का 2001 में प्रयास हुआ था. तब बाबूलाल मरांडी की सरकार थी. डीके सर्राफ से 17 जून 2001 काे झारखंड में अस्पताल बनाने का आग्रह किया गया था. बात आगे बढ़ी थी. तब 8 जुलाई 2001 काे एक कार्यक्रम में तत्कालीन मंत्री अर्जुन मुंडा, डॉ दिनेश षाड़ंगी ने घाेषणा की थी कि जमीन दी जायेगी. वर्तमान मुख्यमंत्री रघुवर दास भी इस पर तब सहमत थे, लेकिन जमीन तब नहीं मिल सकी थी. अस्पताल नहीं बन सका था. बाद में यही अस्पताल रानीगंज में बना. अब एक वरिष्ठ नागरिक पीपी वर्मा आैर अन्य लाेगाें ने फिर से प्रयास किया है. श्री सर्राफ मान गये. रांची आ रहे हैं बात करने. देखना है कि काम बनता है या बिगड़ता है. सारा कुछ मुख्यमंत्री पर निर्भर करता है. वे संवेदनशील हैं आैर झारखंड में बेहतर अस्पताल चाहते हैं. सरकार आनंदलाेक अस्पताल के बारे में जानकारी हासिल कर सकती है. पहले जांच कराये आैर लगे कि बेहतर अस्पताल है, कम खर्च में इलाज करता है, ताे ऐसे अस्पतालाें काे लाने के लिए हरसंभव प्रयास करना चाहिए. काम आसान नहीं है, क्याेंकि एक बड़ा वर्ग निजी हित के कारण अच्छी संस्थाआें काे झारखंड में लाने में बाधा खड़ा करता रहा है. अगर सरकार जमीन उपलब्ध नहीं करा पाती, ताे झारखंड के उन दानवीराें काे जमीन देने (चाहे दान दें या कम दाम पर बेचें) इसके लिए में आगे आना हाेगा.

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