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पॉलिटेक्निकों के संचालन में विभाग लापरवाह ….दो तसवीर है

पॉलिटेक्निकों के संचालन में विभाग लापरवाह ….दो तसवीर हैउच्च व तकनीकी शिक्षा विभागसरकार खामोश अौर विभाग सुस्ततीन वर्ष का डिप्लोमा कोर्स चार वर्ष में होता है पूराकिसी भी पॉलिटेक्निक में स्थायी प्राचार्य नहीं विभागाध्यक्षों के कुल 19 पद में से 18 खालीरांची पॉलिटेक्नक कैंपस की चहारदीवारी ही नहीं निर्माण के लिए 46 लाख रुपये दो […]

पॉलिटेक्निकों के संचालन में विभाग लापरवाह ….दो तसवीर हैउच्च व तकनीकी शिक्षा विभागसरकार खामोश अौर विभाग सुस्ततीन वर्ष का डिप्लोमा कोर्स चार वर्ष में होता है पूराकिसी भी पॉलिटेक्निक में स्थायी प्राचार्य नहीं विभागाध्यक्षों के कुल 19 पद में से 18 खालीरांची पॉलिटेक्नक कैंपस की चहारदीवारी ही नहीं निर्माण के लिए 46 लाख रुपये दो वर्ष पहले ही दिये गयेबच्चों का अंडर ग्राउंड माइनिंग प्रशिक्षण बंद वरीय संवाददाता, रांचीराज्य के 13 राजकीय पॉलिटेक्निकों की स्थिति बदतर है. तकनीकी शिक्षा तथा कौशल विकास के नाम पर इन संस्थानों में सुविधा का अभाव कुछ ऐसा है कि खुद एक पॉलिटेक्निक के प्रभारी प्राचार्य से जब इस संबंध में पूछा गया, तो वे धाराप्रवाह बोलने लगे – कुछ नहीं है. गत 15 वर्षों में स्थिति सुधरने के बजाय अौर बिगड़ी है. किसी भी संस्थान में चले जाइए. टीचर नहीं हैं. क्लास रूम नहीं है. राज्य भर के पॉलिटेक्निक की बिल्डिंग से पानी टपकता है. लैब नहीं खुलता, वहां इंस्ट्रक्टर नहीं हैं. अाप तो रांची में रहते हैं, वहीं का पॉलिटेक्निक देख लें, पता चल जायेगा. कहीं भी जाकर पूछ लें कि क्या कभी बच्चों को इंडस्ट्रियल टूर पर ले गये हैं या कभी कोई इंडस्ट्री संस्थान में आयी है? पूछिए कि लाइब्रेरी व रीडिंग रूम कहां है, बच्चे कहां पढ़ते हैं? कौन-कौन सा अखबार-मैगजीन आता है? बाथरूम की व्यवस्था क्या है? कुछ है ही नहीं, तो बच्चों को तीन साल बाद सीधे डिप्लोमा दे देना चाहिए. जब विद्यार्थियों के ज्ञान व एटिट्यूड में कोई फर्क अाना ही नहीं है, तो समय क्यों खराब किया जाये. उक्त प्राचार्य की यह पूरी प्रतिक्रिया झारखंड के पॉलिटेक्निक संस्थानों का हाल बताने के लिए काफी है. फिर भी सरकार खामोश है अौर विभाग सुस्त. विभाग की एकमात्र उपलब्धि प्राचार्यों व शिक्षकों की नियुक्ति के लिए जेपीएससी को अधियाचना भेजना है. इन संस्थानों के बारे में दूसरे तथ्य भी निराशाजनक हैं. इंटरनल परीक्षा में विलंब से तीन वर्ष का डिप्लोमा कोर्स चार वर्ष में पूरा होता है. किसी भी पॉलिटेक्निक में स्थायी प्राचार्य नहीं हैं. विभागाध्यक्षों के कुल 19 पद में से 18 खाली हैं. शिक्षकों के कुल 220 पद में से 143 रिक्त हैं. रांची पॉलिटेक्नक कैंपस की चहारदीवारी ही नहीं है, जबकि इसके निर्माण के लिए 46 लाख रुपये दो वर्ष पहले ही दिये गये थे. इस पॉलिटेक्निक की बदतर स्थिति के बाद विभाग ने कभी यह पता नहीं लगाया कि वर्ल्ड बैंक की स्कीम टेक्निकल एडुकेशन क्वालिटी इंप्रूवमेंट प्रोग्राम (टेकिप) के तहत 2005 से 2009 के बीच मिले 92 लाख रुपये से यहां क्या-क्या काम हुआ. उधर, राज्य के तीन माइनिंग संस्थानों निरसा, भागा व कोडरमा में बच्चों का अंडर ग्राउंड माइनिंग प्रशिक्षण बंद है. कोल कंपनियां इसकी अनुमति नहीं दे रही. एक वर्ष का यह प्रशिक्षण नौकरी पाने के लिए जरूरी है. इस तरह इन संस्थानों में पढ़ रहे करीब दो हजार बच्चों का भविष्य अधर में लटका है. इनमें से करीब 35 फीसदी बच्चे एससी-एसटी हैं. राजकीय पॉलिटेक्निक (13) कहां-कहां : चर्च रोड रांची, थड़पखना रांची (महिला), धनबाद, निरसा धनबाद, भागा धनबाद (माइनिंग), दुमका, आदित्यपुर जमशेदपुर, गम्हरिया जमशेदपुर (महिला), जैनामोड़ खुटरी बोकारो, बालिडीह बोकारो (महिला), कोडरमा, लातेहार, खरसावां.पॉलिटेक्निक में शिक्षक नहीं पद सृजित कार्यरत रिक्तप्राचार्य 13 0 13विभागाध्यक्ष 19 01 18व्याख्याता 220 77 143प्रयोगशाला सहायक 55 19 36अनुदेशक 144 45 99(कुल 13 स्थायी प्राचार्य व 88 शिक्षकों के लिए जेपीएससी को अधियाचना भेजी गयी है)

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