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सफाई से दूर-दूर क्यों है नगर पर्षद

मेदिनीनगर : अगर आप सुभाष चौक की तरफ से होकर छहमुहान आ रहे हैं, तो उपायुक्त आवास के सामने जो प्रयास किये गये, उसे देख कर सुखद एहसास होगा. आम आदमी के मन में यह भाव जरूर जगेंगे कि स्वच्छता की दिशा में और शहर को सुंदर बनाने की दिशा में प्रयास हो रहा है. […]

मेदिनीनगर : अगर आप सुभाष चौक की तरफ से होकर छहमुहान आ रहे हैं, तो उपायुक्त आवास के सामने जो प्रयास किये गये, उसे देख कर सुखद एहसास होगा. आम आदमी के मन में यह भाव जरूर जगेंगे कि स्वच्छता की दिशा में और शहर को सुंदर बनाने की दिशा में प्रयास हो रहा है.
मन में प्रसन्नता होगी. होना भी स्वभाविक है. क्योंकि इस तरह के प्रयास की आवश्यकता निरंतर महसूस की जा रही है. लेकिन कुछ ही कदम आगे बढेंगे, तो घोर निराशा होगी. यह सवाल उठेगा आखिर यह क्या. यह स्थिति कब बदलेगी, क्योंकि चंद कदमों के बाद ही स्थिति बदल जाती है. एक तरफ जहां बेहतर करने का प्रयास हो रहा है. दूसरी तरफ नगर पर्षद का सफाई कार्यालय, जो छहमुहान के पास स्थित है, वहां कूड़ादान पड़ा है.
उसमें गंदगी है. दुर्गंध से राह चलना मुश्किल है. पर नगर पर्षद को देखिये, वह गंभीर नहीं है, जैसे सफाई करना उनकी जिम्मेवारी नहीं है. बल्कि शहर में कैसे गंदगी फैलायी जाये, इसकी जिम्मेवारी उन पर है. यह देख कर भी नगर पर्षद के लोग नहीं बदले कि पलामू के उपायुक्त स्वच्छता अभियान को लेकर सजग और गंभीर है. वह प्रयास कर रहे हैं. उपायुक्त के श्रीनिवासन के प्रयास का ही नतीजा है कि उपायुक्त के आवास परिसर के बाहर खाली पड़ी जगह सुंदर बनी है, उसकी खूबसूरती देखते ही बन रही है.
उपायुक्त का प्रयास है कि आवास परिसर में दो-तीन एकड़ में पार्क भी विकसित किये जायें, जो जनता के लिए सुलभ हो. इस दिशा में प्रयास भी चल रहा है. यह कदम आशा जगाती है स्वच्छता के प्रति. लेकिन नगर पर्षद का रवैया लोगों को निराश भी करता है. पिछले दो अक्तूबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वच्छता अभियान शुरू किया है. इस अभियान का जनता में असर देखने को मिल रहा है. सफाई के प्रति लोग स्वयं कदम बढ़ा रहे हैं.
शहर के बाजार क्षेत्र की ही बात ली जाये, तो पंचमुहान चौक, जैन मंदिर रोड, विष्णु मंदिर रोड में व्यवसायियों ने स्वयं पहल कर इलाके में साफ-सफाई की है. एक साल के दौरान गांवों के विद्यालयों का भी हाल बदला है. लगभग सभी विद्यालयों में शौचालय का निर्माण हुआ है. स्वच्छता के प्रति लोगों में जागरूकता भी आयी है. सब बदल रहे हैं. नहीं कोई बदल रहा है तो मेदिनीनगर नगर पर्षद. कहने को तो नगर पर्षद पर शहर को साफ और सुंदर रखने की जिम्मेवारी है, लेकिन नगर पर्षद सफाई नहीं करती, बल्कि गंदगी फैलाने का काम करती है. नगर पर्षद के सफाई कार्यालय के बगल में गंदगी है.
शहर के कूड़े को उठा कर तालाब को भरने के साथ-साथ कोयल नदी को गंदा करने का काम नगर पर्षद कर रही है. एक तरफ नगर पर्षद शहर के सुंदरीकरण के लिए तालाबों को सुंदर बनाने का प्रयास का दावा करती है, तो दूसरी तरफ सच यही है कि तालाब को भरने का काम भी नगर पर्षद ही करती है. क्योंकि शहर की गंदगी को उठा कर तालाबों में भरने का काम, नगर पर्षद ही कर रही है.
ऐसे में सुलगता सवाल यह है कि आखिर स्वच्छता अभियान कैसे सफल होगा. जब वह एजेंसी जिस पर साफ रखने की जिम्मेवारी है, वही शहर को गंदा करने पर आमदा है. संभव है कि बापू की जयंती के दिन इस पर नगर पर्षद कुछ चिंतन-मनन करें, तो बात बने. लेकिन नगर पर्षद की कार्य-शैली को देख कर ऐसा नहीं लगता कि वह बापू के सपने को साकार करने में दिलचस्पी रखती है.

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