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बगैर कार्य के हो रहा है भुगतान

विश्रमपुर की आंगनबाड़ी केंद्र संख्या पांच की सहायिका को विश्रमपुर (पलामू) : नियमों की अनदेखी करते हुए बगैर कार्य के आंगनबाड़ी केंद्र की एक सहायिका को 24 माह से मानदेय का भुगतान किया जा रहा है. मामला विश्रमपुर बाल विकास परियोजना द्वारा संचालित विश्रमपुर के आंगनबाड़ी केंद्र संख्या–पांच का है. इतना ही नहीं विश्रमपुर सीडीपीओ […]

विश्रमपुर की आंगनबाड़ी केंद्र संख्या पांच की सहायिका को

विश्रमपुर (पलामू) : नियमों की अनदेखी करते हुए बगैर कार्य के आंगनबाड़ी केंद्र की एक सहायिका को 24 माह से मानदेय का भुगतान किया जा रहा है. मामला विश्रमपुर बाल विकास परियोजना द्वारा संचालित विश्रमपुर के आंगनबाड़ी केंद्र संख्यापांच का है.

इतना ही नहीं विश्रमपुर सीडीपीओ राखी चंद्रा ने इस सहायिका के चयन मुक्ति की अनुशंसा भी लगभग एक वर्ष पहले की थी. सहायिका चयन मुक्त तो नहीं हुई, लेकिन उसका मानदेय वित्तीय वर्ष के अंत में एकमुश्त उसे मिलता रहा.

केंद्र की सेविकासहायिका की अनुपस्थिति की जानकारी सीडीपीओ से लेकर लेकर डीपीओ तक को लिखित रूप से देती रही है. इन दो वर्षो के दौरान महिला पर्यवेक्षिका, सीडीपीओ डीपीओ ने केंद्र पर आकर मामले की कई बार जांच की सहायिका को केंद्र से गायब होने का दोषी पाया. सहायिका को दंडित करने की बजाय उसे नियमित मानदेय देकर पुरस्कृत किया जाता रहा.

क्या है मामला

विश्रमपुर नगर पंचायत के आंगनबाड़ी केंद्र संख्यापांच की सहायिका 20.10.2011 से बगैर सूचना के 24 माह से अनुपस्थित है. इस बात की पुष्टि केंद्र की उपस्थिति पंजी भी करती है. सेविका प्रियंका देवी ने इसकी लिखित जानकारी बाल विकास परियोजना कार्यालय समाज कल्याण पदाधिकारी को दी.

शिकायत के आलोक में महिला पर्यवेक्षिका जसिंता कुजूर, सीडीपीओ राखी चंद्रा, तत्कालीन डीपीओ सुभाष कुमार वर्तमान डीपीओ राजेश कुमार साव ने जांच की. सभी ने सहायिका को बिना सूचना के केंद्र से गायब रहने का दोषी पाया. दोषी सहायिका को दंडित करने की बजाय उसे प्रत्येक माह का मानदेय देकर उपकृत किया जाता रहा. इन 24 माह में सहायिका को बगैर काम किये लगभग 27000 रुपये की राशि मानदेय के रूप में भुगतान किया जा चुका है.

घर में केंद्र चलाने की जिद

विश्रमपुर बाल विकास परियोजना कार्यालय से मिली जानकारी के मुताबिक सहायिका अपने घर में आंगनबाड़ी केंद्र चलाने की जिद पर अड़ी है. प्रावधान के अनुसार केंद्र का संचालन सेविका सहायिका के घर में नहीं होना चाहिए. इसी प्रावधान के मद्देनजर सहायिका को अपने घर में केंद्र संचालन की अनुमति नहीं मिली.

जिससे खफा हो कर सहायिका ने 24 माह से केंद्र पर जाना बंद कर दिया है. यहां उल्लेखनीय है कि सहायिका के परिजनों ने एक वर्ष पूर्व अपने घर में केंद्र चलाने को लेकर परियोजना कार्यालय में हंगामा किया था. बाद में पुलिस के हस्तक्षेप से मामला शांत हुआ था.

क्या कहता है नियम

नियम के अनुसार अगर सेविका सहायिका बगैर लिखित सूचना के 15 दिन तक लगातार गायब रही, तो उन्हें स्वत: चयन मुक्त माना जाता है. लेकिन 24 माह से बगैर सूचना के गायब सहायिका को चयन मुक्त कर बगैर काम के उसे मानदेय का भुगतान किया जा रहा है.

केंद्र में नहीं जाती सहायिका : पर्यवेक्षिका

महिला पर्यवेक्षिका जसिंता कुजूर ने कहा कि इन दो वर्षो के दौरान उन्होंने दर्जनों बार केंद्र की जांच की. हर बार सहायिका अनुपस्थित पायी गयी. सारी जांच रिपोर्ट परियोजना कार्यालय डीपीओ कार्यालय को भेज दी गयी थी. कार्रवाई के बारे में उच्चाधिकारी ही बता पायेंगे.

चयन मुक्ति की अनुशंसा : सीडीपीओ

सीडीपीओ राखी चंद्रा ने कहा कि सहायिका केंद्र में 24 माह से नहीं जा रही है. उसे कई बार मौखिक लिखित आदेश दिया गया, फिर भी वह केंद्र से अनुपस्थित रही. इन्हीं सब बातों के आलोक में एक वर्ष पूर्व ही सहायिका को चयन मुक्त करने की अनुशंसा तत्कालीन डीपीओ सुभाष कुमार से की गयी थी. लेकिन इस पर कोई कार्रवाई अब तक क्यों नहीं हुई है, उच्चधिकारी ही बता पायेंगे.

चयन मुक्त किया जायेगा : डीपीओ

जिला समाज कल्याण पदाधिकारी राजेश कुमार साव ने कहा कियह मेरे कार्यकाल का नहीं बल्कि पुराना मामला है. लेकिन गंभीर मामला है. बगैर काम के वेतन देना नियम के विपरीत कार्य करना गलत है. मामला मेरे संज्ञान में अब चुका है. अगर सहायिका 24 माह से केंद्र से अनुपस्थित है, तो उसे हर हाल में चयन मुक्त किया जायेगा. मानदेय भुगतान के बारे में पूरी जानकारी नहीं है. सीडीपीओ से इसके बारे में जानकारी मांगी जायेगी. उसके बाद नियम सम्मत कार्रवाई होगी.

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