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दोनों पैरों से लाचार, पर जिंदगी की दौड़ में अव्वल

जन्म से ही दोनों पैरों से नि:शक्त हैं उमेश, फिर भी अपने बूते पर स्नातकोत्तर की पढ़ाई कर रहे हैं. साथ ही नि:शक्तों की सहायता भी करते हैं.प्रतिनिधि, हुसैनाबाद (पलामू). कहा जाता है की यदि कुछ कर गुजरने की तमन्ना व ललक हो , इरादे नेक हों तब इंसान अपने परिश्रम के बल पर विषम […]

जन्म से ही दोनों पैरों से नि:शक्त हैं उमेश, फिर भी अपने बूते पर स्नातकोत्तर की पढ़ाई कर रहे हैं. साथ ही नि:शक्तों की सहायता भी करते हैं.प्रतिनिधि, हुसैनाबाद (पलामू). कहा जाता है की यदि कुछ कर गुजरने की तमन्ना व ललक हो , इरादे नेक हों तब इंसान अपने परिश्रम के बल पर विषम परिस्थितियों को लांघ कर भी आगे निकल जाता है. कुछ इसी तरह की मिसाल प्रस्तुत कर रहे हैं बैरांव गांव निवासी नि:शक्त उमेश कुमार मेहता . स्व. करीम मेहता के पुत्र उमेश कुमार मेहता अपने दो भाइयोंं में सबसे छोटा हैं. वह जन्म से ही दोनों पैरों से विकलांग हैं. यह स्थिति देखकर घर के लोग उनके भविष्य के प्रति काफी चिंतित थे. घर का माली हालत भी दयनीय थी . लेकिन उमेश ने अपनी सकारात्मक सोच व परिश्रम के बल वर्ष 2007 में प्रथम श्रेणी से मैट्रिक उत्तीर्ण की. वर्ष 2009 में एसबीएस कॉलेज जपला इंटर की परीक्षा पास की. अब उनके समक्ष स्नातक की शिक्षा प्राप्त करना मुश्किल था. लेकिन इस विषम परिस्थिति में भी उमेश ने हार नही मानी . अपने लचार पैरों बावजूद भी 81 किमी दूर मेदिनीनगर जेले कॉलेज में नामांकन लिया और परीक्षा उत्तीर्ण की . इसके लिए उन्हें बस व ट्रेन से यात्रा करनी पड़ी . फिलवक्त उसी कॉलेज से एमए की पढ़ाई कर रहे हैं. साथ ही नि:शक्तों के कल्याण के लिए सामाजिक संस्था उत्क र्ष बना कर कई कल्याण कारी काम कर रहे हैं . जिसके तहत नि:शक्तों को ट्राइ साइकिल ,बैसाखी अन्य यंत्र उपलब्ध करा रहे है. वह हुसैनाबाद विकलांग विकास संघ के कोषाध्यक्ष भी हैं. उमेश नि:शक्तों को आगे बढ़ने उदाहरण प्रस्तुत कर हैं.

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