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कोई हमदर्द नहीं, इंतजार है मौत का

स्कूल के बरामदे में पड़ा है बीमार-लाचार टीबी पीड़ित राजेश माता-पिता का साया बचपन में ही उठ गया था. कोई भाई-बहन नहीं है. पत्नी ने भी साथ छोड़ा और मायके में जा बसी. कोई देखने-सुनने वाला नहीं है. हरिहरगंज (पलामू) : ईश्वर से जीवन की कामना तो सभी करते हैं. परिस्थितियों से हारा एक युवक […]

स्कूल के बरामदे में पड़ा है बीमार-लाचार टीबी पीड़ित राजेश
माता-पिता का साया बचपन में ही उठ गया था.
कोई भाई-बहन नहीं है. पत्नी ने भी साथ छोड़ा और मायके में जा बसी. कोई देखने-सुनने वाला नहीं है.
हरिहरगंज (पलामू) : ईश्वर से जीवन की कामना तो सभी करते हैं. परिस्थितियों से हारा एक युवक ऐसा भी है, जो ईश्वर से मौत मांग रहा है. मानवीय संवेदना को झकझोर देने वाली कहानी हरिहरगंज की कटैया पंचायत के राजेश पासवान से जुड़ी है. राजेश का अब कोई सहारा नहीं.
बीमारी ने राजेश को अपने आगोश में लिया, तो उसके अपनों ने भी उसका साथ छोड़ दिया. पत्नी भी उसे उसके हाल पर ही छोड़ कर मायके चली गयी. मां-बाप का साया बचपन में ही उठ गया था. पैतृक संपत्ति भी पास है, पर रिश्तेदारों का ध्यान नहीं. सेवा भावना का संकल्प लेकर राजनीति करने वाले जनप्रतिनिधियों ने भी राजेश की सुध नहीं ली. परिस्थितियों से हारे राजेश को मौत के अलावा कोई विकल्प नजर नहीं आ रहा है.
राजेश खुद कमा कर किसी तरह अपनी जीविका चला रहा था. लोगों ने देखा कि होनहार है, तो शादी करा दी. शादी के कुछ दिन बाद तक पत्नी साथ रही. उसने जब यह देखा कि बीमारी बढ़ रही है, तो वह भी राजेश को छोड़ कर चली गयी. अब स्थिति यह है कि एक वर्ष से राजेश शरीर से लाचार हो गया है. वह चल-फिरने की स्थिति में भी नहीं है. आसपास के लोग भी उसकी मदद नहीं करते. लोगों के मन में यह बात रहती है कि राजेश टीबी से ग्रस्त है, पास जाने पर संक्रमण दूसरों को भी हो सकता है.
इसलिए गांव से कुछ दूर पर स्थित एक सरकारी स्कूल के बरामदे में राजेश को एक सप्ताह पहले छोड़ दिया गया है. अब वह तेंदुआ खुर्द के प्राथमिक विद्यालय के बरामदे में पड़ा हुआ है. राजेश का हाथ-पैर व शरीर का अन्य हिस्सा सूख गया है. वह उठ कर बैठ भी नहीं सकता. वह बोलने की स्थिति में भी नहीं है. इशारों में ही वह अपनी पीड़ा बताता है. उसे देखने के लिए जो कोई भी वहां पहुंचता है, उसकी हालत देख कर उसकी भी आंखें नम हो जाती है.
लोग कहते हैं कि आखिर वह किस जन्म की सजा भुगत रहा है. रोज उसे देखने के लिए कोई न कोई वहां पहुंचता है, लेकिन सहानुभूति के दो बोल कह कर चला जाता है. कोई-कोई व्यक्ति दूर से ही खाने के सामान फेंक कर चले जाते हैं. उसके करीब भी कोई जाना नहीं चाहता है. उसके माता-पिता का निधन बचपन में ही हो गया था. इकलौता संतान होने के कारण जब वह बीमार पड़ा, तो वह बिल्कुल असहाय हो गया. लाचार व बेबस राजेश अपनी स्थिति पर खाट पर लेट कर आंसू बहा रहा है. गांव की साहिया पूनम देवी को भी इसकी जानकारी है, लेकिन उसके द्वारा कोई पहल नहीं की गयी.
पंचायत के मुखिया,पंसस व अन्य जनप्रतिनिधि द्वारा कोई हमदर्दी नहीं दिखायी गयी. उसकी पैतृक संपत्ति भी है, लेकिन रिश्तेदार या पड़ोसी द्वारा पहल नहीं करने के कारण उसका इलाज नहीं हो रहा है. इसके कारण दिनों-दिन उसकी स्थिति बिगड़ती जा रही है. ग्रामीणों की मानें, तो उसका दम कभी भी टूट सकता है. राजेश पासवान की स्थिति यह बताने के लिए काफी ह2ै कि टीबी मुक्त समाज बनाने की दिशा में स्वास्थ्य विभाग किस तरह सक्रियता के साथ काम कर रहा है.

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