मुख्यालय से 60 किमी दूर पांकी प्रखंड के केकरगढ़ गांव में
– अविनाश –
मेदिनीनगर : पांकी प्रखंड में एक गांव है केकरगढ. यह तीन तरफ से पहाड़ों से घिरा है. यह गांव जिला मुख्यालय से लगभग 60 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. इस गांव के सरकारी स्कूल में महापुरुषों के संदेश की जगह नक्सली नारे लिखे होते हैं. नक्सली नारे लिख कर चले जाते हैं. उसे मिटाने की हिम्मत कोई नहीं जुटा पाता है.
करीब एक साल पहले नक्सली नारे लिख कर गये हैं. अंदाजा लगाया जा सकता है कि गांव में नक्सलियों का खौफ किस हद तक तारी है. चतरा, लातेहार और पलामू की सीमा पर बसा है यह गांव.
गांव उग्रवाद प्रभावित है. इसलिए सरकारी महकमे के लोग भी हिम्मत जुटा कर ही जाते हैं. इसी पंचायत के जशपुर गांव से एक सितंबर 2009 को तत्कालीन सीओ आलोक कुमार का अपहरण हुआ था. वह एक आमसभा कराने गांव गये थे. विकास के मामले में काफी पीछे है यह पंचायत. बरसात के दिनों में यदि इस गांव के लोगों को पांकी से केकरगढ़ जाना हो, तो अमानत नदी को तीन बार पार करना पड़ता है.
बोरोदीरी, होटवार से द्वारिका होते हुए केकरगढ़ जाना पड़ता है. जब बरसात में नदी उफान पर होती है, तब जरूरत पड़ने पर गांव के लोगों को लातेहार के इचाक होकर आना पड़ता है. इचाक हेरहंज से छह किलोमीटर की दूरी पर है. वहां जाने के लिए केकरगढ़ पंचायत के लोगों को लगभग आठ किलोमीटर पगडंडीनुमा रास्ते हुए पैदल जाना पड़ता है.
आदेश के बिना नहीं होता काम
केकरगढ़ पंचायत में बिना उग्रवादी संगठन की मरजी के कोई काम नहीं होता. पंचायत भवन का कार्य स्वीकृत हुआ था. एक तल्ला निर्माण हुआ. दूसरे तल्ले के निर्माण पर संगठन ने रोक लगा दी. उसके बाद से काम बंद है. पहले तल्ले का काम भी फिनिश नहीं हुआ. गांव के लोग बताते हैं कि आदेश नहीं मिला, इसलिए काम नहीं हुआ.
पनबिजली परियोजना हवा हुई
केकरगढ़ गटिया टालटोला को बांध कर पनबिजली परियोजना शुरू करने की योजना तैयार की गयी थी. ग्रामीणों की मानें, तो 1978-89 में इसका सर्वे भी हुआ था. लेकिन उसी वक्त नक्सली संगठन का यहां उदय हो रहा था.
उसी दौरान काम रोक दिया गया. कर्मियों को रहने के लिए जो आवास बने थे, उसे भी तहस–नहस कर दिया गया. केकरगढ़ गांव में लगभग 1500 की आबादी है. यहां यादव,भुइयां और लोहरा जाति के लोग रहते हैं. स्थानीय लोगों की मानें, तो विकास के नाम पर वर्ष 2006 में ग्रेड वन रोड बना था, जो गांव को जोड़ता था. अब वह भी बदहाल हो गया है.
लोगों की मानें, तो आज यदि कोई बीमार हो जाये, तो गांव में जाने के लिए रास्ते नहीं है. डोली पर टांग कर मरीजों को लातेहार के इचाक या फिर पांकी के द्वारिका में लाना पड़ता है. गांव के लोग कृषि पर निर्भर हैं.
पर सिंचाई के साधन नहीं हैं. गांव के लोग बताते हैं कि यदि बनरचुआ नाला पर चेकडैम का निर्माण हो जाये, तो काफी हद तक समस्या दूर हो सकती है. कंप्यूटर,इंटरनेट के इस युग में भी गांव में बिजली नहीं है.