चंदवा : प्रखंड में शारदीय व वासंतिक नवरात्र पूजन की विशेष परंपरा है. नगर गांव स्थित मां उग्रतारा के प्राचीन मंदिर में सैकड़ों वर्ष पूर्व से अष्टादसभुजी मां उग्रतारा की पूजा हो रही है. नवरात्र में यहां पूरे भारत के लोग पूजन को आते है. मां उग्रतारा लोगों की मन्नतें पूरी करती है. प्रखंड में मां दुर्गे की प्रतिमा स्थापित कर पूजन का इतिहास भी काफी पुराना है. इसके साथ कई तथ्य भी जुड़े हैं. प्रखंड के दर्जनों गांव में पूजा होती है.
कइलाखांड़ रूद : यहां 1998 से मातेश्वरी की पूजा जारी है. दशहरा के दिन जतरा लगता है. चेतर मुखिया रूना देवी के नेतृत्व में पूजा की तैयारी जारी है.
मां वनशक्ति मंदिर रूद : 2004 से यहां मां अंबे की पूजा हो रही है. मुखिया समेत बुजुर्गों के मार्गदर्शन में युवकों का दल तैयारी में लगा है. यहां हर वर्ष आर्केस्ट्रा का आयोजन भी किया जाता रहा है.
महाबीर मंदिर ब्रह्माणी : यहां 1954 से लगातार पूजा की जा रही है. पंडित जगदीश पांडेय व ग्रामीणों द्वारा इसकी शुरुआत की गयी थी. अब भी परंपरा जारी है.
दुर्गा मंडप डडैया : यहां 2008 से मां अंबे की पूजा की जा रही है. पूजा समिति के लोग व ग्रामीण पूजा को लेकर जी-जान से लगे हैं.
दुर्गा मंडप बारी : यहां करीब 60 वर्षों से शाहदेव परिवार द्वारा पूजा शुरू की गयी है. लाल अरुण नाथ शाहदेव व लाल नीलम नाथ शाहदेव के नेतृत्व में इस वर्ष से भी ग्रामीण पूजा को लेकर हर्षित हैं.
शिव मंदिर रामपुर : यहां 1983 से माता की पूजा हो रही है. युवकों की टोली तैयारी में लगी है.
महाबीर मंदिर सेरक : 1960 में निर्मित इस मंदिर में 1988 से मां दुर्गा की पूजा की जा रही है. यहां की खासियत है कि इस मंदिर की राग-भोग के लिए 52 एकड़ भूमि दान में मिली है.
एरूद कीता : तत्कालीन मुखिया बालेश्वर पाठक उर्फ बालो बाबा द्वारा 1970 में मां अंबे की प्रतिमा स्थापित कर पूजा प्रारंभ की गयी थी. स्व. पाठक के पुत्र व ग्रामीणों की मदद से इस परंपरा का बखूबी निर्वहन किया जा रहा है.
देवी मंडप रूद : बरवाटोली पंचायत के रूद गांव में 1982 से मां दुर्गे की पूजा हो रही है. स्थानीय युवकों के सहयोग से तैयारी जारी है.
देवी मंडप बरवाटोली : यहां 1994 से मातेश्वरी की पूजा हो रही है. शांति प्रिय माहौल में ग्रामीण पूजा को लेकर संकल्पित है.
देवी मंडप हुटाप : स्व. सुख चरण साहू द्वारा 1987 में मां दुर्गें की पूजा की परंपरा शुरू की गयी थी. वर्ष 1995 तक इनके ज्येष्ठ पुत्र चंद्रमोहन प्रसाद द्वारा परंपरा का निर्वह्न किया गया था. 1996 से 2010 तक पूजा नहीं हो पायी थी. स्व. साहू के नाती अनुज साव व मुखिया के प्रयास से फिर से यह परंपरा 2011 से शुरू की गयी है.
रेलवे स्टेशन महुआमिलान : यहां 2008 से पूजा की शुरुआत की गयी है. नियमित जतरा लगाया जाता है. अध्यक्ष लाल प्रतुल नाथ शाहदेव व कार्यकारी अध्यक्ष रमेश प्रसाद के नेतृत्व में युवकों की टोली पूजा की तैयारी में लगी है. जतरा में आस-पास के करीब दो दर्जन गांव के लोग एकत्र होते हैं. यह जतरा काफी आकर्षक होता है.
रेलवे स्टेशन टोरी : 1967 से यहां मां की पूजा अनवरत जारी है. रेलवे अधिकारी, कर्मचारी व स्थानीय लोगों के सहयोग से पूजा की जाती है. बंगाली परंपरा की छाप यहां दिखती है.
दुर्गा मंडप हरैया-कामता : 2000 से यहां मां दुर्गे की पूजा की शुरूआत की गयी थी. आचार्य पंडित बालकृष्ण देवज्ञ के सानिध्य में हर वर्ष पूजा होती है. दशमी के दिन जतरा की परंपरा है. रावण दहन का कार्यक्रम भी होता है.
दुर्गा मंडल बुध बाजार : यहां 1972 से लगातार पूजा जारी है. अध्यक्ष रंजीत गुप्ता, सचिव प्रभाकर मिश्र के नेतृत्व में युवकों की टोली तैयारी में लगी है. इस वर्ष यहां रात्रि जागरण व रावण दहन का कार्यक्रम भी आयोजित किया गया है.
श्री दुबे जी का गोला : यह चंदवा प्रखंड की सबसे पुरानी पूजा है. यहां 1935 में स्व. शिवव्रत दुबे ने प्रतिमा स्थापित कर मां दुर्गे की पूजा शुरू की थी. 2016 में इसे सार्वजनिक दुर्गा पूजा मंडप का नाम दिया गया. अध्यक्ष संजय दुबे सचिव केके अग्रवाल व कोषाध्यक्ष अजय वैद्य के नेतृत्व में पूजा भव्य हो रही है. इसी वर्ष शिवव्रत दुबे जी के निधन के कारण सादगी के साथ पूजा करने का निर्णय लिया गया है.
शिव मंदिर थाना टोली : 2009 में पूजा की शुरुआत की गयी. अध्यक्ष सतेंद्र प्रसाद के नेतृत्व में युवकों ने पूजा को भव्य रूप देने का संकल्प लिया है. पंडित प्रदीप उपाध्याय के सानिध्य में मां अंबे की पूजा जारी है.
शिव मंदिर होलंग : चंदवा व बालूमाथ के सीमाने पर स्थित होलंग गांव में 1954 से लगातार पूजा की जा रही है. स्व. लालचंद साहू, दुर्गा प्रसाद वैद्य, बद्री साव, बालेश्वर पाठक व बनवारी साव ने पूजा की नींव रखी थी. इसके अलावे बालू, कुरीयांग बालूमाथ में भी प्रतिमा स्थापित कर मां अष्टादसभुजी की पूजा-अर्चना की जाती है.