अविनाश
मेदिनीनगर : संभावनाओं के बाद भी पलामू में उद्योग नहीं लगे, जो उद्योग थे वह या तो बंद हो गये या फिर बंदी के कगार पर हैं. एकीकृत बिहार में पलामू का इलाका उपेक्षित माना जाता था. जब अलग झारखंड राज्य का गठन हुआ तो इसकी गिनती राज्य की राजनीतिक राजधानी के रूप में होती है. पर पलामू का हाल क्या है, सिंचाई के क्षेत्र में पिछड़ा इलाका, मेडिकल कॉलेज की स्थापना नहीं हुई, विश्वविद्यालय तो खुला पर अभी तक जमीन नहीं मिली, एशिया फेम का कोयला राजहरा कोलियरी में है, पर कोलियरी बंदी के कगार पर है, जपला सीमेंट फैक्टरी बंद है.
पर चुनाव में भी ये मुद्दे गौण हैं. पिछले लोकसभा चुनाव में पानी, पलायन मुद्दा बना था. इसी मुद्दे पर जेल में बंद कामेश्वर बैठा सांसद बने. पर यह मुद्दा जिंदा ही रह गया, कोई काम नहीं हुआ. इस बार भी चुनाव में पलामू की समस्या गौण है. सूखे इलाके में हरियाली कैसे आयेगी, इस पर किसी ने अभी तक कुछ नहीं कहा, मंडल डैम पर गेट लगने का मामला केंद्र स्तर पर लंबित है. पर इस मुद्दे पर प्रत्याशी क्या करेंगे, इसके बारे में भी अभी तक किसी ने कुछ नहीं कहा.