बिजली पानी और रोजगार की समस्या से जूझ रहा है स्वतंत्रता सेनानियों का यह गांव

।।पंकज कुमार पाठक ।।रांची : झारखंड का यह छोटा से गांव जहां चार स्वतंत्रता सेनानी. सिर्फ इन चारों का नहीं पूरे गांव का सपना आजादी. अंग्रेजी शासन से मुक्ति के इस सपने के लिए लड़े, अंग्रेजों की लाठियां खायी, जेल गये यातनाएं सही और इन बलिदानों के दम पर आजादी का सपना सच कर दिखाया. […]

By Prabhat Khabar Print Desk | September 16, 2019 6:41 PM

।।पंकज कुमार पाठक ।।
रांची :
झारखंड का यह छोटा से गांव जहां चार स्वतंत्रता सेनानी. सिर्फ इन चारों का नहीं पूरे गांव का सपना आजादी. अंग्रेजी शासन से मुक्ति के इस सपने के लिए लड़े, अंग्रेजों की लाठियां खायी, जेल गये यातनाएं सही और इन बलिदानों के दम पर आजादी का सपना सच कर दिखाया. सिर्फ, आजादी सपना था या आजादी के बाद के भारत की कल्पना ने इन्हें लड़ने की शक्ति दी थी. अपनी चुनी सरकार से क्या उम्मीद थी ? क्या आजादी के इन दिवानों को लगता था कि इस लड़ाई के बाद भी एक लड़ाई होगी ?

साल 2018 में गांव को आदर्श बनाने की लड़ाई शुरू हुई, गांव वालों ने प्रधानमंत्री कार्यालय में चिट्टी लिखी. वहां से आदेश आया लेकिन अबतक गांव आदर्श नहीं बन सका, आज भी इस छोटे से गांव में पीने के पानी की समस्या है, शौचालय कई घरों में नहीं है, यहां के लोग रोजगार के लिए दूसरे शहरों का रुख करते हैं. आजादी भले मिली हो लेकिन आजादी के बाद का सपना पूरा करने के लिए गांव अभी भी संघर्ष कर रहा है…

झारखंड की राजधानी रांची से लगभग 75 किमी की दूरी पर चापी प्रखंड में टाना भगत का गांव, नाम बंदुआ. 45 घरों का यह गांव जिसमें चार स्तवंत्रता सेनानी के परिवार वाले रहते हैं. पूरन टाना भगत, चंदा टाना भगत, गुदरी टाना भगत ,आशीर्वाद टाना भगत इन सबको सरकार ने सम्मानित किया. पेंशन मिलता रहा, ताम्रपत्र मिला. आजादी की लड़ाई के लिए सम्मान मिला लेकिन इनके सपने का क्या जिसने इन्हें लड़ने की ताकत दी.
गांव जाने के लिए पक्की सड़क जिसकी चमक बताती है कि रास्ता हाल में ही बना है. गांव के चौराहे पर आशीर्वाद टाना भगत की प्रतिमा जो बताती है कि यह गांव दूसरों से अलग है. चौराहे पर खड़े लोगों से बातचीत हुई तो उनका पहला सवाल था आशीर्वाद टाना भगत के गांव जाना है हम चुप रहे और हां में सिर हिलाया तो हाथ उठाकर रास्ता दिखा दिया कहा, जहां पक्की सड़क खत्म होती है वहां से दाहिने मुड़ जाइये कच्ची सड़क से होते हुए थोड़ी ही दूरी पर उनका घर है.
नीले रंग का कच्चा मकान लेकिन फर्श सिमेंट का घर के अंदर गलियारा और आंगन में बैठक. कमरे में गांधी की प्रतिमा, भारत और चेन्नई का नक्शा. आशीर्वाद टाना भगत के बेटे अंबिका जिनकी कदकाठी लंबी चौड़ी अंबिका बताते हैं कि सेना में लंबे वक्त तक रहे और सेवानिवृत होकर गांव लौट आये हैं.
अंबिका बताते हैं कि इस गांव में टाना भगत ही रहते हैं कुछ सालों पहले बाहरियों को भी जगह दी है उन्हें बसाया गया है. गावं की सबसे बड़ी समस्या क्या है ? कहते हैं, पानी गांव की सबसे बड़ी समस्या है. गांव में एक चापाकल है बाकि खराब पड़े हैं. चापाकल खराब हो जाता है तो पानी का संकट हो जाता है.
आशीर्वाद टाना भगत की बड़ी बहू हीरामणि कहतीं है उन्होंने अपना पूरा जीवन आजादी के लिए दे दिया, गांधी को समर्पित कर दिया लेकिन अपने घर का रास्ता पक्का नहीं करा सके. हर बार जब कोई अधिकारी आता तो मैंने उन्हें कहते सुना कि इस रास्ते को भी पक्का कीजिए यहां से लोगों का आना जाना है लोगों को परेशानी होती है लेकिन आजतक यहां का रास्ता कच्चा है. खेती पारंपरिक काम है लेकिन खेती के लिए पानी की परेशानी है.
इस गांव में पूरन टाना भगत के परिवार वाले रहते हैं. टाना भगत की योजनाओं पर कहते हैं कि हमतक कुछ नहीं पहुंचता. हम चाहते हैं कि हमें कोई सरकारी मदद मिले, तो जीवन थोड़ी आसान हो, सुना है सरकार टाना भगत को गाय दे रही है लेकिन हमारे गांव में कोई योजना नहीं पहुंची है. जब पिता पूरन टाना भगत के ताम्रपत्र की चर्चा हुई तो कहा हां, घर में कहीं तो रखा है ढुढ़ना होगा. घंटों ढुढ़ते रहे लेकिन नहीं मिला अंत में कहा, कहां रख दिये मिलिये नई रहा है…

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