लोहरदगा : आज भी परंपरागत पेशे से जुड़े हैं तुरी जाति के लोग

किस्को,लोहरदगा : किस्को प्रखंड क्षेत्र के कोचा गांव के तुरी जाति के लोग आज भी परंपरागत पेशे से जुड़े हैं. यह गांव प्रखंड मुख्यालय से छह किलोमीटर की दूरी पर पहाड़ी पर बसा है. इस गांव में लगभग 10-12 परिवार तुरी जाति के हैं. इनका मुख्य पेशा सूप, दउरा, डलसी बनाना है. यही इनके जीविकोपार्जन […]

By Prabhat Khabar Print Desk | December 6, 2018 12:37 AM
किस्को,लोहरदगा : किस्को प्रखंड क्षेत्र के कोचा गांव के तुरी जाति के लोग आज भी परंपरागत पेशे से जुड़े हैं. यह गांव प्रखंड मुख्यालय से छह किलोमीटर की दूरी पर पहाड़ी पर बसा है. इस गांव में लगभग 10-12 परिवार तुरी जाति के हैं. इनका मुख्य पेशा सूप, दउरा, डलसी बनाना है. यही इनके जीविकोपार्जन का मुख्य साधन है.
कृष्णा तुरी, दुर्गा तुरी, किरण तुरी ने बताया कि बांस से बने इन वस्तुओं को वे लोग स्थानीय बाजार में बेचते हैं. लेकिन मेहनत के अनुपात में सामान का दम नहीं मिलता है जिसके चलते परेशानी उठानी पड़ती है. जंगल से बांस तो मिल जाता है लेकिन लाने और बांस का सामान बनाने में काफी समय लग जाता है. कृष्णा तुरी ने बताया कि 40-50 रुपये में सूप, 80-100 रुपये में दउरा तथा छोटा-बड़ा के अनुसार डलसी का दाम मिलता है. यह परिवार चलाने के लिए काफी नहीं है लेकिन परंपरागत धंधा है.
इसके अलावा कोई रोजगार नहीं है. त्योहार और पूजा में सूप की मांग बढ़ जाती है़ इस समय लोहरदगा से भी व्यापारी आकर सामान खरीदते हैं लेकिन अन्य दिनों में वे लोग किस्को और आसपास के बाजारों में इसकी बिक्री करते हैं. इसी से अपने परिवार का गुजारा किसी तरह होता है. गंदूरवा तुरी, जितेंद्र तुरी, गोवर्धन तुरी का कहना है कि इस धंधे में अब के समय में गुजारा नहीं चलता है लेकिन दूसरा व्यवसाय नहीं होने के कारण इसी काम में लगे रहते हैं.

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