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Thursday, March 28, 2024

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हजारों मील की दूरी तय कर 15 दिन पहले विदेशी पक्षियों का तिलैया डैम में हुआ आगमन, संरक्षण को लेकर रहेगी सख्ती

Jharkhand news, Koderma news : वैश्विक महामारी कोरोना को लेकर देश- दुनिया में लंबे समय तक लॉकडाउन रहा. इस लॉकडाउन ने भले ही आमलोगों के जीवन पर आर्थिक रूप से बुरा प्रभाव डाला है, पर प्रकृति के लिए यह वरदान साबित हुआ. प्रकृति पर पड़े सकारात्मक असर की वजह से इस बार तिलैया डैम (Tilaiya dam) की हसीन वादियों में विदेशी मेहमानों का आगमन समय पूर्व हो गया है. पर्यावरणविद् व एक्सपर्ट की मानें तो यह अच्छा संकेत है.

Jharkhand news, Koderma news : कोडरमा (विकास) : वैश्विक महामारी कोरोना को लेकर देश- दुनिया में लंबे समय तक लॉकडाउन रहा. इस लॉकडाउन ने भले ही आमलोगों के जीवन पर आर्थिक रूप से बुरा प्रभाव डाला है, पर प्रकृति के लिए यह वरदान साबित हुआ. प्रकृति पर पड़े सकारात्मक असर की वजह से इस बार तिलैया डैम (Tilaiya dam) की हसीन वादियों में विदेशी मेहमानों का आगमन समय पूर्व हो गया है. पर्यावरणविद् व एक्सपर्ट की मानें तो यह अच्छा संकेत है.

इस बार सात समंदर पार से हजारों मील की दूरी तय कर विदेशी पक्षी (Exotic birds) करीब 15 दिन पहले पहुंचे हैं. हालांकि, समय पूर्व आगमन से विदेशी मेहमानों के संरक्षण एवं सुरक्षा को लेकर चिंता बढ़ गयी है. इस बीच वन विभाग ने इनकी सुरक्षा को लेकर पूरी सख्ती बरतने का दावा किया है.

जानकारी के अनुसार, तिलैया डैम के रिजर्व क्षेत्र (Reserve Area) में हर वर्ष ठंड के एहसास के साथ ही विदेशी पक्षियों का आगमन होता है. यहां विदेशी पक्षी अमूनन 15-20 नवंबर के बाद आते हैं, पर इस बार इन्हें आज से एक सप्ताह पूर्व से देखा जा रहा है. रविवार शाम को प्रभात खबर की टीम ने बर्ड वाचर व पर्यावरणविद इंद्रजीत सामंता (Bird watcher and environmentalist Indrajit Samanta) के साथ विदेशी पक्षियों के आगमन के बाद तिलैया डैम क्षेत्र का दौरा किया.

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टीम कोटवारडीह गांव (Kotwardih Village) के पास से नाव पर सवार होकर डैम के किनारे पहुंची, तो यहां हजारों की संख्या में विदेशी पक्षी अठखेलियां करते दिखे. इनमें चाइना व लद्दाख क्षेत्र से आने वाले गेडवाल (Gedwal), कॉमन पोचार्ड (Common Pochard), हनी बजार्ड (Honey Bajard) के अलावा यूरोपीयन क्षेत्र से आने वाली प्रजाति की पक्षियां शामिल थे.

इंद्रजीत की मानें, तो इस क्षेत्र में पूर्व के वर्षों में बार हिडेड गीज (Hidden Geys), नार्थन पिनेट (Norton Pinet), कॉमन पॉचार्ड (Common Pochard), टफटेड डक (Tufted Duck) भी देखे गये हैं. ये पक्षी लद्दाख, मंगोलिया, चाइना, पाकिस्तान के अलावा यूरोपियन क्षेत्र से आते हैं. हर वर्ष इनका आगमन 15-20 नवंबर के बाद होता है और ये अमूनन मार्च, अप्रैल तक रहते हैं. इस बार ये पहले आए हैं. इनका आगमन कई बार मौसम पर निर्भर करता है. जनवरी में इनकी संख्या काफी बढ़ जाती है.

इंद्रजीत के अनुसार, तिलैया डैम को वर्ष 2017 में इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (International Union for Conservation of Nature) ने इंपोर्टेंट बर्ड एरिया (Important bird area) के रूप में चिह्नित भी किया है. इसके बावजूद यहां केचमेंट एरिया (Catchment area) को निर्माण कार्य के लिए प्रभावित करने के साथ ही मानव दखलअंदाजी बढ़ रही है. इस वजह से विदेशी पक्षियों का आगमन पहले से कम हो रहा है. पहले करीब 30-35 हजार की संख्या में विदेशी मेहमान अलग-अलग झुंड में दिख जाते थे, पर आज इनकी संख्या कुछ हजार में सिमट गयी है. कुछ लोग तो इनका शिकार भी करते हैं, जो पूरी तरह गैरकानूनी है.

नाविक व स्थानीय निवासी मुकेश यादव ने बताया कि इस क्षेत्र में शिकार को लेकर कुछ लोग जरूर आते हैं. इस पर रोक लगाने की जरूरत है. गांव वाले भी धीरे-धीरे इसको लेकर जागरूक हो रहे हैं. मुकेश की मानें, तो कुछ दिन बाद विदेशी पक्षियों की संख्या और बढ़ेगी.

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बनेगा वाच टॉवर, आम लोग कर सकेंगे दीदार : डीएफओ

वन प्रमंडल पदाधिकारी कोडरमा सूरज कुमार सिंह ने बताया कि विदेशी पक्षियों के लिए तिलैया डैम वर्षों से पसंदीदा जगह है, पर इस क्षेत्र में मानव दखलअंदाजी ने काफी प्रभाव डाला है. इसे कम करने का प्रयास किया जा रहा है. जिला पर्यटन समिति (District Tourism Committee) ने डैम के किनारे वॉच टॉवर (watch tower along the dam) बनाने की स्वीकृति दी है. 2 वाच टॉवर बनाने के लिए जगह चिह्नित किया जा रहा है. इस वॉच टॉवर से आम लोग विदेशी पक्षी या डैम की सुंदरता का दीदार कर सकेंगे. वॉच टॉवर बनने से विभाग के कर्मी भी शिकारियों पर निगरानी रखेंगे. उन्होंने बताया कि डैम का केचमेंट एरिया कम से कम प्रभावित हो इसके लिए योजना बनायी गयी है. आसपास और पौधारोपण किया जायेगा. नेचर ट्रेल बनाने का भी प्रस्ताव है. डीएफओ ने बताया कि इस वर्ष विदेशी पक्षियों का भी सेंसस कराया जायेगा, ताकि इनकी संख्या के साथ प्रजाति की पहचान हो सके.

Posted By : Samir Ranjan.

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