रांची: महिला स्वयं सहायता सम्मेलन को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा कि आदिवासियों को स्वावलंबी बनाने के लिए उनकी आय के स्रोतों को बढ़ाने पर केंद्र और राज्य सरकार मिल कर चिंतन-मंथन करते हैं. लेकिन, उस मंथन के परिणाम को बहुत अच्छा नहीं कहा जा सकता है. आज आदिवासी समुदाय कई चुनौतियों से संघर्ष कर रहा है.
जल, जंगल, जमीन की हमारी पहचान अब कोयला, तांबा, अबरख, यूरेनियम से बदल गयी है. हमारी खनिज संपदा से पूरा देश रोशन हो रहा है. लेकिन, आदिवासी समुदाय के लोग आज भी विस्थापन का दंश झेल रहे हैं. वह दो वक्त की रोटी जुटाने के लिए भी जद्दोजहद कर रहे हैं. हेमंत सोरेन ने कहा कि आज आदिवासी समुदाय की महिला देश के सर्वोच्च पद पर बैठी हैं. वह झारखंड में राज्यपाल के रूप में भी रही हैं. वह आदिवासी समुदाय के लिए जीवन-मरण की मांगों को केंद्र से स्वीकृति दिलाने में मदद करें. राज्य सरकार ने केंद्र से सरना धर्म कोड की मांग की है.
साथ ही हो, मुंडारी व कुड़ुख को आठवीं अनुसूची में शामिल करने का आग्रह किया है. इसे लागू कराने का प्रयास करें. श्री सोरेन ने कहा कि राज्य के आदिवासियों को आगे लाने में केंद्र से मदद की काफी उम्मीद है. पिछले 20 वर्षों में जितना राज्य का विकास होना चाहिए, उतना नहीं हुआ. जनजातीय कार्य मंत्री भी हमारे राज्य से ही हैं. झारखंड के प्रति उनका भी लगाव दिखना चाहिए. राज्य के आदिवासियों को मौका दिलाने में मदद करें.
वनोपज संग्रह करनेवाली महिलाओं को उपलब्ध कराया जायेगा बाजार मूल्य :
मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य में सिदो-कान्हू कृषि फेडरेशन का गठन कर तेजी से काम हो रहा है. इसे गति देने के लिए सभी पंचायत समितियों को राशि उपलब्ध करायी गयी है. राज्य में चलनेवाले सेल्फ हेल्प ग्रुप से लगभग 22 लाख महिलाएं जुड़ी हैं. विभिन्न माध्यमों से उनको आर्थिक सहायता देकर उपज का सही मूल्य दिलाने पर काम किया जा रहा है.
पलाश ब्रांड बना कर मार्केटिंग की गयी है. पलाश ब्रांड की मांग बाजार में इतनी अच्छी है कि उत्पादन कम पड़ गया है. उसे बढ़ाने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि राज्य में 14 हजार से अधिक गांव वनोपज से सीधे जुड़े हैं. राज्य में लाह, तसर, चिरौंजी, करंज जैसे कई वनोपज हैं. लेकिन, ग्रामीण किसानों को वनोपज का लाभ नहीं मिलता है. बिचौलिया उनसे सस्ता खरीद कर महंगा बेचता है. सरकार द्वारा निर्धारित एमएसपी चिंता की बात है.
लाह का एमएसपी 240 से 280 रुपये है. जबकि, यह बाजार में वह 11 से 12 सौ रुपये तक है. 22 से 24 रुपये एमएसपी वाले करंज का बाजार भाव 40 रुपये है. ग्रामीणों से 200 रुपये किलो शहद खरीद कर 500 रुपये तक में बेचा जाता है. राज्य सरकार ने तय किया है कि फेडरेशन के माध्यम से वनोपज संग्रह करनेवाली महिलाओं से उत्पाद एकत्र कर उनको बाजार मूल्य उपलब्ध कराया जायेगा. उन्होंने कहा कि अर्जुन मुंडा जब से जनजातीय कार्य मंत्री बने हैं तब से ट्राइफेड में थोड़ी सक्रियता दिखी है. उम्मीद है कि उनके मंत्री होने का लाभ राज्य को मिलेगा.