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Jharkhand: सरायकेला में आज शाम गुंडिचा मंदिर पहुंचेंगे प्रभु जगन्नाथ, लोगों में उत्साह

सरायकेला में प्रभु जगन्नाथ की रथ यात्रा की धूम मची हुई है. दो वर्षों के बाद निकली रथ यात्रा को लेकर भक्तों में काफी उत्साह देखा जा रहा है. सरायकेला में शनिवार को देर शाम प्रभु जगन्नाथ का रथ 'नंदिघोष' गुंडिचा मंदिर पहुंचेगी. रथ पर प्रभु जगन्नाथ के साथ बड़े भाई बलभद्र व बहन सुभद्रा भी विराजमान हैं.

Saraikela Kharsawan News: सरायकेला में प्रभु जगन्नाथ की रथ यात्रा की धूम मची हुई है. दो वर्षों के बाद निकली रथ यात्रा को लेकर भक्तों में काफी उत्साह देखा जा रहा है. सरायकेला में शनिवार को देर शाम प्रभु जगन्नाथ का रथ ‘नंदिघोष’ गुंडिचा मंदिर पहुंचेगी. रथ पर प्रभु जगन्नाथ के साथ बड़े भाई बलभद्र व बहन सुभद्रा भी बिराजमान हैं. सरायकेला में शुक्रवार को प्रभु जगन्नाथ की रथ यात्रा निकली थी तथा सरायकेला के पाठगार चौक में महाप्रभु जगन्नाथ अपने भाई-बहन के साथ रथ पर ही विश्राम किये.

सुबह से ही शुरू हुआ पूजा अर्चना का दौर

सरायकेला के पाठागार चौक में रथ पर प्रभु जगन्नाथ, बलभद्र व देवी सुभद्रा की पूजा अर्चना की गई. इस दौरान भगवान की आरती उतारी गई. प्रसाद चढ़ा कर लोगों में वितरण किया गया. सुबह से ही श्रद्धालुओं के पहुंचने का दौर शुरू हो गया है. श्रद्धालु यहां पहुंच कर पूजा कर रहे हैं. दोपहर बाद सरायकेला के पाठागार चौक से गुंडिचा मंदिर के लिये रथ निकलेगी. भगवान जगन्नाथ अपने बड़े भाई बलभद्र व बहन सुभद्रा के साथ शनिवार शाम को गुंडिचा मंदिर पहुंचेंगे. इसके पश्चात गुंडिचा मंदिर में पूजा अर्चना कर आरती उतारी जाएगी. यहां आठ दिनों तक रुकने के बाद प्रभु जगन्नाथ 9 जुलाई को गुंडिचा मंदिर से अपने श्रीमंदिर वापस लौटेंगे. इस दौरान गुंडिचा मंदिर के समीप मेला का भी आयोजन किया जाएगा.

महापात्र परिवार द्वारा ओडिशा के ढेंकानाल से लाया गया था सरायकेला

भगवान जगन्नाथ के विग्रह को जालंधर महापात्र ओडिशा (तत्कालीन कलिंग प्रदेश) के ढेंकानाल से लेकर सरायकेला आए थे. जालंधर महापात्र को ढेंकनाल के भार्गवी नदी में स्नान करने के दौरान भगवान का विग्रह मिला था. ढेंकानाल से ही वे प्रतिमा को लेकर वे सरायकेला आए थे. सरायकेला में उस समय के राजा अभिराम सिंहदेव एक प्रतापी और धर्मात्मा राजा थे. उन्होंने पूजा शुरू कराया. महापात्र परिवार द्वारा अपने घर में ही पूजा किया जाता था, फिर राजघरानेके सहयोग से रथयात्रा का आयोजन होने लगा. स्थानीय लोगों का भी पूजा में खासा योगदान रहता है.

शास्त्र व पुराणों में भी स्वीकार है रथ यात्रा की महत्ता

रथ यात्रा के दौरान आस्था की डोर को खींचने के लिये भक्त पूरे साल का इंतजार करते है. मान्यता है कि आषाढ़ शुक्ल के द्वितीया तिथि को आयोजित होने वाली रथ यात्रा की प्रथा प्राचिन काल से चली आ रही है. रथ यात्रा का प्रसंग स्कंदपुराण, पद्मपुराण, पुरुषोत्तम माहात्म्य, बृहद्धागवतामृत में भी वर्णित है. शास्त्रों और पुराणों में भी रथ यात्रा की महत्ता को स्वीकार किया गया है. स्कंद पुराण में स्पष्ट कहा गया है कि रथ यात्रा में जो व्यक्ति श्री जगन्नाथ जी के नाम का कीर्तन करता हुआ गुंडीचा मंदिर तक जाता है, वह सीधे भगवान श्री विष्णु के उत्तम धाम को जाते हैं. जो व्यक्ति गुंडिचा मंडप में रथ पर विराजमान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा देवी के दर्शन करते उन्हों मोक्ष की प्राप्ती होती है. रथ यात्रा एक ऐसा पर्व है जिसमें भगवान जगन्नाथ चलकर जनता के बीच आते हैं और उनके सुख दुख में सहभागी होते हैं.

जीवंत हो जाती है राजवाड़े के समय की उत्कलीय परंपरा

रथ यात्रा में न सिर्फ प्रभु के प्रति भक्त की भक्ति दिखायी देती है, बल्कि राजवाड़े के समय से चली आ रही समृद्ध उत्कलिय परंपरा भी जीवंत हो जाती है. मान्यता है कि रथ यात्र एक मात्र ऐसा मौका होता है, जब प्रभु भक्तों को दर्शन देने के लिये श्रीमंदिर से बाहर निकलते है और रथ पर सवार प्रभु जगन्नाथ के दर्शन से ही सारे पाप कट जाते है.

रिपोर्ट: शचिंद्र कुमार दाश

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