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आदिवासी हितों के लिए होगा आंदोलन

जमशेदपुर : आदिवासी हिताें की रक्षा के लिए जन जागरण अभियान चलाने का फैसला जमशेदपुर के विभिन्न आदिवासी संगठनाें के नेताआें ने लिया है. इस मुद्दे काे लेकर 30 जून काे एक राष्ट्रीय सम्मेलन का आयाेजन माइकल जॉन प्रेक्षागृह में किया जायेगा. सम्मेलन में एक नये गैर राजनीतिक संगठन का भी गठन किया जायेगा, उसी […]

जमशेदपुर : आदिवासी हिताें की रक्षा के लिए जन जागरण अभियान चलाने का फैसला जमशेदपुर के विभिन्न आदिवासी संगठनाें के नेताआें ने लिया है. इस मुद्दे काे लेकर 30 जून काे एक राष्ट्रीय सम्मेलन का आयाेजन माइकल जॉन प्रेक्षागृह में किया जायेगा. सम्मेलन में एक नये गैर राजनीतिक संगठन का भी गठन किया जायेगा, उसी संगठन के बैनर तले आदिवासियत पर हाे रहे हमले आैर अन्य गंभीर मुद्दाें काे लेकर आंदाेलन चलाने की रणनीति तैयार की जायेगी.

मंगलवार काे निर्मल महताे गेस्ट हाउस में आयाेजित संवाददाता सम्मेलन में उक्त जानकारी दी गयी. इसमें एआइएसएफ के रमेश हांसदा, आदिवासी महासभा के सुरा बिरुली, कदमा जाहेर थान समिति के धानू मुर्मू, एआइएफए के सागेन हांसदा, जन जागरण अभियान के सुरेंद्र टुडू, रमेश बास्के, सुमी मुर्मू, टीकाराम हांसदा, अभिनेत्री मंजूला मांडी, समाजसेवी लुखी मुर्मू, दीपक पूर्ति, सेन बासु हांसदा समेत अन्य काफी लाेग माैजूद थे.

आदिवासी युवती दूसरे से शादी की, तो आरक्षण न मिले

आइसफा के प्रमुख रमेश हांसदा ने कहा कि हाल में हुए पंचायत चुनाव में एक मामला सामने आया है. साहेबगंज के पंचायत चुनाव में चेयरमैन का पति गैर आदिवासी है, ऐसे ही कई मामले जमशेदपुर प्रखंड में भी देखने काे मिलेंगे, जिसमें कई मुखिया पति, पंचायत समिति सदस्य आैर वार्ड मेंबर के पति गैर आदिवासी हैं. श्री हांसदा ने कहा कि आदिवासी युवती यदि अपनी मरजी से किसी दूसरे समुदाय के लड़के के साथ विवाह करती है, ताे वह आदिवासी नहीं रह जाती है, इसलिए उसे आरक्षण का लाभ किसी भी सूरत में प्रदान नहीं किया जाना, उसकी सीएनटी, एसपीटी आैर राजनीतिक दावेदारी काे पूरी तरह से खत्म करते हुए उसे सामान्य के रूप में ट्रीट किया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि आदिवासियाें का जीवन स्तर उठाने के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गयी है. आरक्षण चाहे नाैकरी में हाे या राजनीति के क्षेत्र में, जमीन की रक्षा के लिए सीएनटी आैर एसपीटी के रूप में दाे रक्षा कवच प्रदान किये गये हैं. पिछले एक दशक से आदिवासियाें के आरक्षण का हक का दूसरे लाेग अपने फायदे के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं. जाति के नाम पर वे खुद काे दूसरे समुदाय का कहते हैं, जबकि आरक्षण के वक्त वे आदिवासी की सीमा में आ जाते हैं.

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