युद्ध समाप्ति के बाद इंदिरा गांधी खुद उनसे मिलने जालंधर हॉस्पिटल पहुंची, जहां उनके लिए वे रसगुल्ले लेकर आयी थीं. इंदिरा गांधी ने उनसे कहा था कि ऊपर चले गये थे, वापस कैसे आये. जवाब में उन्होंने मजाकिया लहजे में कहा, भगवान ने डंडा मार कर भगाया तो वापस आ गया. इंदिरा गांधी ने कहा आपका एक पांव खराब हो चुका है, यह सुनते ही श्री सिंह ने कहा, मैं रडार ऑपरेटर हूं. एक पांव पर खड़े होकर भी फायर कर सकता हूं. उनके इस असीम साहस के लिए 1972 में तत्कालीन राष्ट्रपति बीबी गिरि ने उन्हें वीर चक्र से सम्मानित किया था.
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वीर चक्र विजेता श्रीपति लड़ रहे जिंदगी की जंग
जमशेदपुर : 1971 में भारत-पाक युद्ध शुरू हाेने के मात्र 24 घंटे के भीतर पाकिस्तान के दो एयरक्राफ्ट को मार गिरानेवाले वीर चक्र विजेता श्रीपति सिंह (75) जिंदगी की जंग लड़ रहे हैं. टीएमएच के सीसीयू में वे काेमा में हैं. उनका इलाज कर रहे डॉक्टराें ने उनकी स्थिति चिंताजनक बतायी है. 1971 युद्ध के […]
जमशेदपुर : 1971 में भारत-पाक युद्ध शुरू हाेने के मात्र 24 घंटे के भीतर पाकिस्तान के दो एयरक्राफ्ट को मार गिरानेवाले वीर चक्र विजेता श्रीपति सिंह (75) जिंदगी की जंग लड़ रहे हैं. टीएमएच के सीसीयू में वे काेमा में हैं. उनका इलाज कर रहे डॉक्टराें ने उनकी स्थिति चिंताजनक बतायी है.
1971 युद्ध के हीरो श्रीपति सिंह की जांबाजी पर उस वक्त पूरा देश फिदा था, इन दिनाें वे चकाचाैंध से दूर हाेकर अपने बिरसानगर स्थित आवास में रह रहे हैं. 1993 में सेवानिवृत्ति के बाद से जमशेदपुर में शिफ्ट हाे गये थे. टीएमएच में भर्ती होने के बाद से उनके दाे बेटे आैर एक बेटी दिन-रात सीसीयू के बाहर बैठे रहते हैं. वहां किसी काे भी इस बात की जानकारी नहीं है कि श्रीपति सिंह जमशेदपुर के इकलाैते वीर चक्र विजेता हैं. उनसे मिलने आैर हाल जानने के जमशेदपुर आर्मी के कर्नल केएम राय, कर्नल सी नाथ के अलावा पूर्व सैनिक सेवा परिषद के सदस्य ही पहुंच रहे हैं.
पठानकाेट की यूनिट का नाम श्रीपति सिंह के नाम पर. आर्मी की 502 एयर डिफेंस ग्रुप में रडार ऑपरेटर के रूप में श्रीपति ने अपना याेगदान आर्मी में दिया था. वीर चक्र विजेता श्रीपति सिंह की तबीयत की जब पठानकाेर्ट की 26 एडी यूनिट काे जानकारी मिली ताे वहां के अधिकारी ने एक सूबेदार आरके पांडेय आैर जवान के जमशेदपुर भेजा. दाेनाें दिन-रात टीएमएच में जमे हैं आैर डॉक्टराें से हर पल उनके स्वास्थ की जानकारी हासिल कर रहे हैं. पठानकाेट की 26 एडी यूनिट का नाम वीर चक्र श्रीपति सिंह के नाम से ही है. यूनिट से साफ निर्देश था उन्हें इलाज के लिए देश के किसी बड़े अस्पताल या फिर सेना की यूनिट में दाखिल कराया जायेगा. यहां आने के बाद मालूम चला कि उनकी स्थिति काफी खराब है आैर उन्हें कहीं लेना जाना मुश्किल है.
वीर चक्र के नाम से जानती ही आर्मी. श्रीपति सिंह के साथ काम करने वाले पूर्व सैनिक सत्येंद्र सिंह ने बताया कि श्रीपति सिंह काे उनके अधिकारी भी नाम से नहीं, बल्कि वीर चक्र के नाम से संबाेधित करते थे. उनके पुत्र राम प्रसाद सिंह आैर डॉ आरबी सिंह ने बताया कि पिछले कुछ दिनाें से बाबूजी ने खाना-पीना छाेड़ दिया था आैर सुस्त हाे गये थे. इलाज के लिए अस्पताल में पहले टिनप्लेट ले जाया गया, जहां डॉक्टराें ने स्थिति गंभीर बताते हुए टीएमएच भेज दिया. यहां सीसीयू में हैं आैर काेमा में चले गये हैं.
तीन गाेलियां लगीं, डॉक्टर ने मृत घाेषित किया, इंदिरा ने पूछा कैसे वापस आये
एसीयू यूनिट में बतौर रडार ऑपरेटर तैनात श्रीपति सिंह की बहादुरी की कायल तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उनसे मिलकर बधाई दी आैर हाैसला बढ़ाया था. वीर चक्र विजेता श्रीपति सिंह पर पाकिस्तान की तीसरी एयरक्राफ्ट ने निशाना बना कर फायर किया था, जिसमें तीन गोलियां उनके शरीर में लगी थीं. उन्हें सेना के डॉक्टराें ने मृत घोषित कर शरीर काे मोर्ग में रखवा दिया. पोस्टमार्टम के दौरान पता चला कि जीवट लड़ाका मौत को मात दे चुका था, जिंदा है.
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