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अॉटज्मि के लिए नहीं है कोई दवा, ऋषि 1-3 (संपादित)

अॉटिज्म के लिए नहीं है कोई दवा, ऋषि 1-3 (संपादित)फ्लैग ::: टीएमएच में ‘ऑटिज्म का समेकित इलाज’ विषय पर कार्यशाला, बोले विशेषज्ञ संवाददाता 4 जमशेदपुर ऑटिज्म एक आजीवन बढ़ते रहने वाला विकार है. जो आम तौर पर जीवन के पहले तीन वर्षों में प्रकट होता है. इसकी वजह से जीवन के तीन मुख्य क्षेत्रों सामाजिक […]

अॉटिज्म के लिए नहीं है कोई दवा, ऋषि 1-3 (संपादित)फ्लैग ::: टीएमएच में ‘ऑटिज्म का समेकित इलाज’ विषय पर कार्यशाला, बोले विशेषज्ञ संवाददाता 4 जमशेदपुर ऑटिज्म एक आजीवन बढ़ते रहने वाला विकार है. जो आम तौर पर जीवन के पहले तीन वर्षों में प्रकट होता है. इसकी वजह से जीवन के तीन मुख्य क्षेत्रों सामाजिक कौशल, संवाद कौशल व बार-बार दोहराने संबंधी और प्रतिबंधित व्यवहार की समस्या होती है. उक्त बातें शुक्रवार को टाटा मेन हॉस्पिटल के मनोचिकित्सा विभाग द्वारा टीएमएच प्रेक्षागृह में ‘ऑटिज्म का समेकित इलाज’ विषय पर आयोजित वर्कशॉप में टीएमएच के डॉ संजय अग्रवाल ने कहीं. उन्होंने बताया कि शहर में इस बीमारी के मरीजों के लिए कोई व्यवस्था नहीं होने के कारण टीएमएच द्वारा बाहर से विशेषज्ञ डॉक्टरों को बुलाकर उनसे ट्रेनिंग लेकर इलाज किया जाता है. इससे पूर्व वर्कशॉप का उद्घाटन रुचि नरेंद्रन, श्रीमंती सेन, जॉली भास्करन, राधा त्रिपाठी, जी राम दास, डॉ समादार ने संयुक्त रूप से किया. वर्कशॉप में दीपशिखा इंस्ट्रीट्यूट फॉर डेवलपमेंट एंड मेंटल हेल्थ रांची के मनोवैज्ञानिकों, स्पीच थेरेपिस्ट, ऑक्यूपेश्नल थेरेपिस्ट एवं स्पेशल एजुकेटर की एक टीम ने लोगों को इस बीमारी के लक्षण, इलाज का तरीका, बीमारी से ग्रसित बच्चों के प्रति बर्ताव, सावधानी आदि की जानकारी दी. डॉ अलका निजामी ने कहा कि अगर किसी बच्चे में इस बीमारी के के लक्षण मिलते है, तो उसे तुरंत डॉक्टरों को दिखाएं, जिससे सही समय पर उनका इलाज शुरू किया जा सके. वर्कशॉप में टीएमएच के सभी विभाग के विभागाध्यक्ष, नर्स सहित बीमारी से ग्रसित बच्चे और उनके अभिभावक मौजूद थे.क्या है ऑटिज्म डॉ संजय अग्रवाल ने बताया कि ऑटिज्म एक ऐसी बीमारी है जिसके इलाज के लिए कोई दवा नहीं बनी है. ऑटिज्म कोई दुर्लभ विकार नहीं है. यह दुनिया का तीसरा सबसे आम डेवलपमेंटल डिजॉर्डर है. आम तौर पर हर 10 हजार की आबादी में 20 लोगों में यह समस्या पायी जाती है. इस बीमारी से प्रभावित मरीजों में 80 प्रतिशत किशोर होते हैं. जागरूकता की कमी के कारण कई लोग शुरू में इस बीमारी को इलाज नहीं कराते, जो आगे चलकर परेशानी का सबक बन जाता है.

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