जमशेदपुर: शहर में टाटा स्टील, टाटा मोटर्स समेत कई कंपनियां हैं, जो गैस का भंडारण करती हैं. गैस का इस्तेमाल करती हैं, जो कभी भी खतरनाक हादसा का कारण बन सकती हैं. सुरक्षा के तमाम एहतियात बरतने के बावजूद शहर खतरे से हर दिन दो चार हो रहा है, लेकिन इसकी गंभीरता को लेकर जिला प्रशासन बेखबर है. कंपनियां भी पूरी तरह निश्चिंत दिख रही हैं. ऐसे में कभी भी हादसा हो सकता है, लेकिन अगर जान माल का भारी नुकसान हुआ तो उसकी भरपाई कैसे होगी या किस तरह नुकसान को रोका जा सकता है, इसका कोई मास्टर प्लान तक तैयार नहीं है. हालात यह है कि इस एक्ट के बारे में जिला प्रशासन, उपायुक्त का कार्यालय, कंपनियों की सुरक्षा और अन्य मसलों को देखने वाला फैक्ट्री इंस्पेक्टर कार्यालय से लेकर वन एवं पर्यावरण विभाग तक पूरी तरह अनभिज्ञ है. इसको लेकर कोई जवाबदेही लेने को तैयार नहीं है.
उपायुक्त कार्यालय ने अनभिज्ञता जतायी
समाजसेवी और मानवाधिकार कार्यकर्ता जवाहरलाल शर्मा ने सूचना के अधिकार के तहत उपायुक्त से तीन सवाल पूछे थे. पहला कि टाटा स्टील ने पब्लिक लाइबिलिटी इंश्योरेंस एक्ट के तहत जमशेदपुर शहर का इंश्योरेंस कराया है या नहीं, दूसरा अगर कराया है तो कितने रुपयों का और कितनी आबादी या क्षेत्रफल का इंश्योरेंस कराया है और तीसरा कितना रुपया प्रतिवर्ष प्रीमियम के तौर पर जमा किया जाता है. इन तीनों सवाल का डीसी ऑफिस के जन सूचना पदाधिकारी एडीसी ने कहा है कि ऐसी कोई संचिका या अभिलेख कार्यालय में संधारित नहीं है.
क्या है पब्लिक लायबिलिटी इंश्योरेंस एक्ट
भोपाल गैस हादसा के बाद भारत सरकार ने ऐसे सारे इलाके जहां कंपनियां संचालित हो रही हैं. जहां गैस का स्टोरेज और आदान-प्रदान या ट्रांसपोर्टेशन हो रहा है, वैसे इलाके का इंश्योरेंस कराने की जवाबदेही कंपनियों को दी गयी है. 23 जनवरी 1991 को भारत सरकार ने इसके लिए अधिसूचना जारी की थी और इसको हर जिले के कलेक्टर को लागू कराने का आदेश दिया था. यह जमशेदपुर में आज तक लागू नहीं हो सका है.
प्रदूषण विभाग को भी इसकी कोई जानकारी नहीं
प्रदूषण विभाग के चेयरमैन एके मिश्र से इस बावत जानने के लिए संपर्क किया गया, लेकिन उन्होंने साफ तौर पर इसके बारे में कोई जानकारी होने से इनकार कर दिया .