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फैसले से केबुल कंपनी गेट पर मनी दिवाली-होली (अविनाश जी के लिए)

फैसले से केबुल कंपनी गेट पर मनी दिवाली-होली (अविनाश जी के लिए)टाटा स्टील का पैकेज (लाख रुपये में)अनसिक्यूर्ड क्रेडिटर के पेमेंट-74.25कंपनी के पुनरुद्धार पर-1265.00अनिवार्य क्रेडिट-2984.01मजदूर के बकाये मद में-359.00पीएफ के बकाये मद में-370.00ग्रेच्यूटी मद में-1741.00मजदूरी के मद में भुगतान-2470.00कुल परियोजना-8701.00 वरीय संवाददाता, जमशेदपुरदिल्ली हाइकोर्ट का फैसला आते ही बुधवार को केबुल कंपनी के मजदूरों में […]

फैसले से केबुल कंपनी गेट पर मनी दिवाली-होली (अविनाश जी के लिए)टाटा स्टील का पैकेज (लाख रुपये में)अनसिक्यूर्ड क्रेडिटर के पेमेंट-74.25कंपनी के पुनरुद्धार पर-1265.00अनिवार्य क्रेडिट-2984.01मजदूर के बकाये मद में-359.00पीएफ के बकाये मद में-370.00ग्रेच्यूटी मद में-1741.00मजदूरी के मद में भुगतान-2470.00कुल परियोजना-8701.00 वरीय संवाददाता, जमशेदपुरदिल्ली हाइकोर्ट का फैसला आते ही बुधवार को केबुल कंपनी के मजदूरों में खुशियों की लहर दौड़ गयी. सभी कंपनी गेट पर जुट गये. 15 वर्षों बाद कर्मचारियों ने ढोल-नगाड़ों के बीच होली-दिवाली मनायी. इस दौरान एक- दूसरे को अबीर लगाकर बधाई दी. वर्षों से बंद केबुल कंपनी के अधिग्रहण की अनुमति टाटा कंपनी को देना हाइकोर्ट के लिए एक सामान्य प्रक्रिया हो सकती है, लेकिन यही आदेश केबुल कंपनी के कर्मचारियों के लिए जीवनदायिनी के समान है. कारण वर्षों से एक बाप अपनी बेटी की शादी के इंतजार में है, तो कोई अपने बच्चे का स्कूल इसलिए छुड़ा कर बैठा है कि उसके पास खाने को पैसे नहीं हैं. जो महिलाएं कभी घर के बाहर नहीं निकली थी, पेट की आग ने उन्हें घर-घर पापड़-आचार बेचने को विवश कर दिया था. जिस बच्ची के गुड्डे-गुड़ियों से खेलने की उम्र थी, वह पान या सब्जी के ठेले पर सरौते या तराजू से रोटी खाने का जोड़-घटाव समझ रही थी. हाइकोर्ट के फैसले से अब उनकी स्थिति बदलेगी. लोगों की ब्लैक एंड व्हाइट जिंदगी रंगीन हो उठेगी. केबुल बस्ती व कॉलोनी में लौटी रौनकफैसले से केबुल बस्ती और केबुल कॉलोनी की रौनक लौट गयी है. महिलाओं से लेकर बच्चों के चेहरे पर एक नयी चमक दिख रही है. सभी की आंखों में एक उम्मीद की किरण है कि आने वाले दिनों में कंपनी फिर से खुलेगी और उनके रोजी-रोजगार की स्थिति साफ हो सकती है.————कांग्रेस जिलाध्यक्ष पहुंचे, खुशियों में शामिल हुएमजदूर नेता और कांग्रेस जिलाध्यक्ष विजय खां भी केबुल कंपनी गेट पर पहुंचे. उन्होंने मजदूरों संग खुशियां मनायीं. बकाया का आधा देगी टाटा स्टीलअधिग्रहण के बाद टाटा स्टील को आधा बकाया वेतन देना होगा. इसका उल्लेख टाटा स्टील के प्रस्ताव में है. 116 करोड़ है बकायाकेबुल कंपनी के जमशेदपुर प्लांट में 1450 मजदूरों व पदाधिकारियों के मद में 116 करोड़ रुपये बकाया है. वर्तमान में 1292 कर्मचारी व पदाधिकारी कार्यरत हैं, जिनमें 120 पदाधिकारी हैं. इस मद में भुगतान कंपनी को करना होगा. ————–1920 में स्थापित कंपनी 15 साल पहले बंद हुई प्रोमोटरों ने तीन बार धोखा दियासाल दर साल कंपनी की स्थिति : 1920 में स्थापित1988 में इंकैब इंडस्ट्रीज लिमिटेड नाम पड़ा1996 में मलयेशिया की कंपनी ने अधिग्रहण किया1999 में मलयेशिया की कंपनी ने हाथ खींचा2000 में केबुल कंपनी रुग्ण घोषित और बंद, बायफर में गयी2000 से 2007-कोई बिडर नहीं आया23 फरवरी 2007-इंडियन केबुल वर्कर्स यूनियन के महासचिव रामबिनोद सिंह ने दिल्ली हाइकोर्ट में याचिका दायर की. जिसके बाद टाटा स्टील को बिडर के रूप में आगे किया.9 दिसंबर 2009-बायफर ने टाटा स्टील को ही उचित बिडर के रूप में घोषित कियाजनवरी 2010-बायफर के फैसले के खिलाफ आरआर केबुल व उनकी समर्थित यूनियनों के लोग आयफर में सुनवाई करने के लिए चली गयी30 जून 2011 – आयफर ने कहा : उसका फैसला सही हैजुलाई 2011 – आयफर के फैसले के खिलाफ दिल्ली हाइकोर्ट में आरआर केबुल टाटा स्टील को बिडर के रूप में खारिज करने के लिए याचिका दायर की27 मई 2015-दिल्ली हाइकोर्ट में सुनवाई पूरी हुई और फैसला सुरक्षित रख लिया6 जनवरी 2016-दिल्ली हाइकोर्ट ने टाटा स्टील को ही उचित बिडर बनाते हुए आयफर व बायफर के फैसले को सही ठहरायाकुल संपत्ति और कर्मचारी (एक नजर में) बंद होने के समय कुल कर्मचारी : 1450 वर्तमान में जमशेदपुर प्लांट में कुल कर्मचारी : 1292 रिटायर हो चुके कर्मचारियों के बाद शेष : 900पुणे में कर्मचारियों की संख्या : 180कोलकाता में कुल कर्मचारी : 60भारत में कुल अन्य कर्मचारी : 60कुल अनुमानित संपत्ति बंदी के समय (जमशेदपुर) -120 करोड़वर्तमान कीमत : लगभग 500 करोड़मजदूरों का बकाया : लगभग 116 करोड़पानी-बिजली का बकाया : 23 करोड़अन्य बकाया : दो-तीन करोड़कंपनी का शेयर : 51 % लीडर यूनिवर्सल, 12 % काशीनाथ तापुड़िया और 5 % पीके सर्राफ.क्या बनता था : 33 केवीए तक का विश्वस्तरीय केबुल 2000 करोड़ की संपत्ति इंकैब इंडस्ट्रीज (केबुल कंपनी) की 2000 करोड़ की संपत्ति है. देशभर में केबुल कंपनी की संपत्ति फैली हुई है, जिसका टेकओवर टाटा स्टील करेगी. परिसंपत्ति एक नजर में : जमशेदपुर प्लांट की जमीन-188 एकड़पुणे प्लांट की जमीन-40 एकड़कोलकाता की जमीन-10 एकड़अब क्या होगा?* कानूनी अड़चनों को दूर करना होगा* हार गयी पार्टी सुप्रीम कोर्ट में जा सकती है* सब कुछ ठीक रहा, तो बकाया वेतन का 50 फीसदी टाटा स्टील भुगतान करेगी.जमशेदपुर. गोलमुरी स्थित इंकैब इंडस्ट्रीज (केबुल कंपनी) 15 साल पहले बंद हो गयी थी. 90 साल पुरानी केबुल कंपनी 1920 में स्थापित हुई थी. ब्रिटिश कैलेंडर केबुल के नाम से यह कंपनी थी. 1988 में नाम इंकैब इंडस्ट्रीज लिमिटेड हो गया. कंपनी का 26 फीसदी शेयर काशीनाथ तापुरिया ने खरीदा, इसके बाद पूरा प्रबंधन उनके हाथ में आ गया. इसके बाद करीब तीन साल तक कंपनी चलायी. 1991-92 में कंपनी की आर्थिक स्थिति बिगड़ गयी. घाटा दिखाया गया, लेकिन इससे पहले यह कंपनी न्यूनतम दो करोड़ रुपये की आमदनी करती रही. इसके बाद काशीनाथ तापुरिया ने हाथ खींच लिया. 96 में मलेशियाई कंपनी ने किया था अधिग्रहण1996-97 में केबुल कंपनी मलेशियाई कंपनी लीडर यूनिवर्सल ने इसका अधिग्रहण कर लिया. वाइस चेयरमैन पीके सर्राफ की देखरेख में उत्पादन शुरू हुआ. वर्ष 1999 में उन्होंने अपना इस्तीफा सौंपा. इसके बाद मलेशियाई कंपनी ने भी हाथ खींच लिया. इसके बाद पी घोष होलटाइम डायरेक्टर बने. 1999 के दिसंबर में कंपनी का कामकाज पूरा ठप हो गया. अप्रैल, 2000 में रुग्ण उद्योग बता बायफर में भेजी गयी कंपनीकेबुल कंपनी को अप्रैल, 2000 में रुग्ण उद्योग बताकर बायफर में भेजा गया. वहां इसकी लगातार सुनवाई हुई. इस दौरान प्रोमोटरों का लाला पड़ा हुआ था. 2001 में बनी अंतरिम प्रबंधकीय कमेटी, 2009 में तीन नये डायरेक्टर बनेवर्ष 2001 में अंतरिम प्रबंधकीय कमेटी का गठन हुआ. इसकी देखरेख में ही कंपनी की सारी गतिविधियां संचालित थीं. वर्ष 2009 के मई माह में तीन नये डायरेक्टर को मलेशियाई कंपनी प्रतिनिधि के रूप में नियुक्त किया. तब से निदेशक मंडल की देखरेख में कंपनी चलायी जा रही है. मजदूरों के डिमांड पर काफी देर बाद टाटा स्टील ने केबुल के लिए प्रस्ताव सौंपाशुरुआती दौर में प्रोमोटर आगे नहीं आये. कई यूनियनों ने अपनी ओर से प्रस्ताव दिया. बाद में टाटा स्टील ने कर्मचारियों के साथ बैठक करने के बाद केबुल कंपनी के लिए अपना प्रस्ताव सौंपा. अभी भी केबुल के पास थे कई आर्डरमहाप्रबंधक आरबी सिंह के मुताबिक जिन्होंने आर्डर दिया था, वे आज भी उत्पाद के लिए फोन करते थे. बंद होने के दो साल तक 10 करोड़ रुपये से अधिक का आर्डर था. 33 केवीए तक के केबुल का कंपनी उत्पादन करती रही है. पान व सब्जी बेच चलाया परिवार, महिलाएं बनी सेल्स गर्लजमशेदपुर. केबुल कंपनी बंद होने पर दिन गिन-गिनकर 15 साल काटे गये. 15 साल में कर्मचारियों ने पान और सब्जी बेचकर जीवन यापन किया. महिलाएं सेल्स गर्ल बनकर किसी तरह परिवार का भरन-पोषण करती रहीं. कमलेश ने सब्जी बेची, दो-दो बेटा-बेटी का जिम्मा (फोटो है दुबे जी का)कमलेश सिंह ने बताया कि यह शब्दों में नहीं बयां किया जा सकता है कि उन्हें क्या परेशानी हुई. उसके दो बेटे और दो बेटियां हैं. नौकरी चली गयी थी. उस वक्त सूझ नहीं रहा था कि क्या किया जाये. लोक लाज छोड़कर टिनप्लेट चौक पर सब्जी बेचना शुरू किया. किसी तरह दो बेटे और दो बेटियों का भरण पोषण करना शुरू किया. वे किसी की शादी भी नही कर पाये हैं. पान बेचकर बहन की शादी की, माता-पिता खोयाटिनप्लेट चौक पर पान दुकान चलाने वाले शशिभूषण श्रीवास्तव कहते हैं. वर्ष 1995 में केबुल कंपनी में नौकरी लगी, लेकिन 2000 से चिमनियों से धुआं निकलना बंद हो गया. कुछ माह तक इंतजार किया. घर में एक बहन थी. वहीं तीन भाई थे, जो टेम्पो चला कर जिंदगी की गाड़ी चलाते थे. शशि ने घर को चलाने के लिए टिनप्लेट चौक पर पान की दुकान खोल ली. किसी तरह जिंदगी की गाड़ी चली और बहन की शादी कर सका. इस दौरान इलाज के अभाव में उसने माता-पिता भी खो दिया. केबुल की सुरक्षा में तैनात रहे सुरक्षाकर्मीकेबुल कंपनी बंद हो गयी, लेकिन सुरक्षाकर्मियों को सुरक्षा में तैनात रखा गया. उन्हें आधा वेतन मिल रहा था. वे लोग डय़ूटी पर तैनात रहे. उमेश मुंडा ने कहा कि ड्य़ूटी है, तो करना ही होगा. आनंद सिंह सुंडी ने कहा कि सुरक्षा का पूरा ख्याल रखा जा रहा है. टाटा स्टील आयेगी, तो भी अपना काम करते रहेंगे. केबुल के साथ मंदिर का भी होगा जीर्णोद्धारकेबुल कंपनी के साथ ही मंदिर का भी जीर्णोद्धार संभव हो सकेगा. इस मंदिर की स्थापना प्रोमोटर काशीनाथ तापुड़िया ने की थी. मंदिर तैयार किया गया था, लेकिन उसके पहले बंद कर दिया गया. इसका निर्माण अधूरा है. अब वहां चारों ओर गंदगी व जंगल-झाड़ हो गया है. यह मंदिर पूरे शहर के लिए चर्चा का विषय था, लेकिन हालात ऐसे बने कि यह मंदिर अंत तक नहीं बन पाया. मंदिर को बनाने के लिए कई हिंदूवादी संगठनों ने प्रयास किया, लेकिन यह संभव नहीं हो पाया. अब कोर्ट-कचहरी बंद कीजिये, कंपनी खोलिये : कर्मचारीकर्मचारियों ने सबसे आग्रह किया कि वे लोग कोर्ट कचहरी छोड़ दें. कंपनी को खोलने के लिए एक राय होकर काम करें, ताकि लोगों की रोजी रोटी फिर से चल सके. कोटटाटा स्टील जल्द कंपनी खोले : मृणालहम लोगों ने कितने दुख काटे हैं. आज के फैसले से कंपनी खुलने की आस जगी है. हम लोग खुश हैं. कंपनी को हर हाल में खोला जाना चाहिए. इसे टाटा स्टील जल्द खोले. अब खोल दीजिये, बहुत देर हुई : अकबरअब तो बस इंतजार है कि कब कंपनी खुलेगी और सबका भला हो सकेगा. 15 साल में काफी दुख काटा है. अब और लोगों से दुख नहीं कटवाये. अब कोर्ट-कचहरी बस कर दें : सपनकोर्ट कचहरी के चक्कर में अब तक कंपनी चालू नहीं हो सकी है. बहुत दिन बीत गये हैं. अब जल्दी से जल्दी केबुल कंपनी को खोल देना चाहिए. मजदूरों के लिए अच्छे दिन आये : राजूमजदूरों ने काफी दुख देखा है. कई युवकों ने आत्महत्या तक कर ली है. ऐसे में युवाओं को भी एक दिशा मिल सकेगी. लोगों का जीवनस्तर भी सुधर सकता है. —————-बुधवार शुभ है केबुल कंपनी के लिएबुधवार का दिन केबुल कंपनी के लिए काफी शुभ रहा है. 9 दिसंबर 2009 को जब बायफर ने टाटा स्टील के प्रस्ताव को ओके किया था, उस दिन भी बुधवार ही था. वहीं दिल्ली हाइकोर्ट में 27 मई 2015 को सुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित रख लिया गया था, उस दिन भी बुधवार था. वहीं फैसले का दिन भी बुधवार था.राम बिनोद सिंह रहे टाटा स्टील के टेकओवर के मुख्य हीरोबंदी के बाद वर्ष 2000 से 2007 तक कंपनी को टेकओवर करने के लिए कोई बिडर ही नहीं आया. इसके बाद 23 फरवरी 2007 को इंडियन केबुल वर्कर्स यूनियन के महासचिव रामबिनोद सिंह ने पहली बार दिल्ली हाइकोर्ट में याचिका दायर की. इसके बाद टाटा स्टील को बिडर के रूप में आगे किया गया. इसके बाद उन्होंने लड़ाई लड़ना शुरू किया. ———————सुप्रीम कोर्ट से हाइकोर्ट तक आरआर केबुल व समर्थित यूनियन हार गयीटाटा स्टील को बायफर की ओर से बिडर के रूप में शामिल करने के लिए राम बिनोद सिंह ने जो याचिका दायर की थी, उस याचिका को सही ठहराते हुए दिल्ली हाइकोर्ट ने टाटा स्टील को बिडर बनाने का आदेश पारित कर दिया था. इसके खिलाफ आरआर केबुल सुप्रीम कोर्ट चली गयी थी. सुप्रीम कोर्ट में दिल्ली हाइकोर्ट के फैसले को सही ठहराया गया. टाटा स्टील के साथ ही आरआर केबुल और पेगासस कंपनी की सुनवाई को पूरा करने का आदेश जारी किया गया. इसके बाद से सुनवाई हुई. स्टेट बैंक फाइनांस करने को तैयारदिल्ली हाइकोर्ट के फैसले के अनुसार दो माह के भीतर स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के साथ मिलकर इस प्रोजेक्ट को तैयार करना है. वहीं इसके अधिग्रहण के लिए काम शुरू करना होगा. टाइड अप प्रोजेक्ट के तहत पूरी विस्तृत रिपोर्ट तैयार की जायेगी. इसमें तय किया जायेगा कि कितना बकाया का भुगतान कब तक किया जा सकता है. कंपनी किस तरह चलायी जा सकती है. कंपनी को चालू करने के लिए मुख्य ऑपरेटिंग एजेंट स्टेट बैंक पूरा फाइनांस करने को तैयार हो चुकी है. इसकी जानकारी स्टेट बैंक ने दिल्ली हाइकोर्ट से लेकर बायफर तक को दे दी है. टाटा स्टील ही चला सकती है कंपनी : राकेश्वरमजदूर नेता राकेश्वर पांडेय ने भी इसके लिए लड़ाई लड़ी है. श्री पांडेय ने कहा कि टाटा स्टील ही कंपनी को सही मायने में चला सकती है. इससे कंपनी का भविष्य भी बेहतर होगा. तार कंपनी की तर्ज पर जापानी कंपनी के साथ मिलकर चलेगी केबुल कंपनीकेबुल कंपनी को टाटा स्टील संचालित करेगी. एक जानकारी के अनुसार करीब तीन सौ करोड़ रुपये की लागत से टाटा स्टील कंपनी को पुर्नजीवित करेगी. टाटा स्टील सूत्रों के मुताबिक, तार कंपनी की तर्ज पर ही केबुल कंपनी का संचालन जापानी कंपनी के साथ मिल कर किया जायेगा, जिसे लेकर तैयारी कर ली गयी है.

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