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घोड़ी पर हो के सवार, चला है दूल्हा यार…

घोड़ी पर हो के सवार, चला है दूल्हा यार…शाही शादियों में बाराती घोड़ा, हाथी और ऊंट आदि पर सवार होकर आते थे. अब बाराती तो इनकी सवारी नहीं कर पाते, लेकिन दूल्हे के लिए घुड़चढ़ी एक रस्म बनती जा रही है. एक तरह से देखें तो यह रस्म मनोरंजन और शानोशौकत के साथ-साथ कई लोगों […]

घोड़ी पर हो के सवार, चला है दूल्हा यार…शाही शादियों में बाराती घोड़ा, हाथी और ऊंट आदि पर सवार होकर आते थे. अब बाराती तो इनकी सवारी नहीं कर पाते, लेकिन दूल्हे के लिए घुड़चढ़ी एक रस्म बनती जा रही है. एक तरह से देखें तो यह रस्म मनोरंजन और शानोशौकत के साथ-साथ कई लोगों को रोजगार भी दे रही है. अपने शहर में भी घुड़चढ़ी का चलन है. इसके लिए शहर में ही कुछ लोग प्रोफेशनल रूप से घोड़े और घोड़ी पालते हैं. लगन के दौरान तो इनके घोड़े व घोड़ियों की डिमांड रहती ही है, बाद में भी कई अवसरों पर इनकी मांग बनी रहती है. लगन के बहाने हमने जानने की कोशिश की इन बेजुबान और इनके पालने वालों की जिंदगी के बारे में.पढ़िये लाइफ @ जमशेदपुर की रिपोर्ट…शाही है अपने शहर का अंदाज शहर में होने वाली शादियों में घुड़चढ़ी काफी लोकप्रिय है. एडवांस बुकिंग भी लंबी रहती है. घोड़ा-घोड़ी की डिमांड सबसे ज्यााद लगन में होती है. कुछ वर्ष पहले लोग वाहनों की ओर खिंचने लगे थे. नयी-नयी कारें लोगों को प्रभावित कर रही थीं. लेकिन, अब फिर से वह दौर लौट रहा है. घुड़चढ़ी अब शादी का जरूरी रस्म बनता जा रहा है. इंसानों के बीच रहने की आदि हैं ये बेजुबान कीताडीह निवासी शालिग्राम तिवारी पिछले 25 वर्षों से घुड़चढ़ी कराते आ रहे हैं. ये घोड़े भी पालते हैं. वर्तमान में इनके पास बलोत्रा, राजस्थानी घोड़ी, पंजाबी, मकनपुर सहित कई नस्लों के 11 घोड़े-घोड़ियां हैं. शालिग्राम बताते हैं कि यह पालतू होते हैं. इनका पालन-पोषण भी हम वैसे ही करते हैं, जैसे अपने बच्चों की परवरिश करते हैं. प्यार की भाषा ही ऐसी है कि यह इंसानों के आदि हो जाते हैं. इन्हेें चारा खिलाने के साथ दू्ध भी पिलाया जाता है. शादी में जाते रहने से इन्हें शादी के माहौल की भी आदत हो जाती है. इसमें इनकी उन्नत नस्ल का भी काफी योगदान रहता है. अच्छे ब्रीड के घोड़े सामान्य घोड़ों की तुलना में ज्यादा समझदार होते हैं. ये बच्चों से काफी लगाव रखते हैं. अश्वार को भी दी जाती है ट्रेनिंगशालिग्राम बताते हैं कि अश्वार वो होते हैं, जो घोड़ों को कंट्रोल में रखते हैं. उन्हें घोड़े को काबू में करने के हर उपाय मालूम होते हैं. नये अश्वार को लाने के दौरान उन्हें घोड़े को किस प्रकार काबू में किया जाये, उसकी ट्रेनिंग दी जाती है. घोड़े के स्वभाव से जुड़ी छोटी से छोटी बात भी बतायी जाती है. जब शादियों में घोड़े जाते हैं, तो उनके साथ अश्वार हर समय तैनात रहते हैं.जन्म के बाद से ही शुरू हो जाती है घोड़ों की ट्रेनिंगप्यार की भाषा हर कोई समझता है. यह बेजुबान भी इंसानों की बातों व इशारों को बखूबी समझते हैं. अश्वार बैजू बताते हैं कि घोड़े की परवरिश उसके जन्म के बाद से ही शुरू हो जाती है. यह ट्रेनिंग पालन-पोषण पर निर्भर करती है. वहीं उसे घुमाना, उससे ठीक वैसा बर्ताव करना, जैसा अपनों के साथ किया जाता है. बेटा कहकर हर काम कराना. ऐसे कर धीरे-धीरे घोड़ों को भी इंसानों की भाषा समझ में आने लगती है. इससे वो करीब भी आ जाते हैं.घोड़े भी करते हैं रिलैक्सबारात से लौटने के बाद सभी थके-हारे होते हैं. यही हाल घोड़ों के साथ भी होता है. शालिग्राम तिवारी बताते हैं कि बारात से लौटने के बाद उसके अगले दिन घोड़ों को ऐसे ही खुले में छोड़ दिया जाता है. ताकि वह खुले वातावरण में चैन की सांस ले सकें. ऐसा कर वे भी मानसिक तनाव से मुक्त होते हैं. 50 साल बाद लौट रहा है दौर शालिग्राम बताते हैं कि मेरे पिता करीब 50 साल पहले से ही घोड़ों को रखा करते थे. उस दौरान काफी डिमांड हुआ करती थी. बीच में लोग वाहनों से बारात जाना पसंद करने लगे. लेकिन, अब पुराना दौर फिर आ रहा है. लगन के दिनों में काफी लोग घोड़ों की बुकिंग करा रहे हैं.एक नजर रेट चार्ट परदो घोड़ों के साथ रथ : 11 हजार रुपयेएक घोड़ी : 4100 से 5100 रुपये————-2016 में शुभ लगनजनवरी : 17, 20, 28, 29, 31फरवरी : 1, 3, 4, 8, 11, 17, 22, 24, 25, 29मार्च : 3, 4, 6, 7, 9, 10, 11अप्रैल : 17, 18, 21, 22, 24, 25, 27, 28, 29मई : 1 व 4जून : 27 व 29जुलाई : 1, 8, 10, 11, 13, 14————घोड़ों का काम है पुश्तैनी तेज नारायण तिवारी पिछले 33 सालों से शादी समारोह में घोड़े-घोड़ियों को भेजते आ रहे हैं. वह बताते हैं कि मेरे जन्म के पहले से ही हमारे पूर्वज घर में घोड़ा रखा करते थे. ऐसे में बचपन से ही घोड़ा पास में होने की वजह से उसके स्वभाव व उसे कैसे काबू में किया जाये यह जानकारी होती गयी. अभी मेरे पास कुल छह घोड़े-घोड़ियां हैं. इनकी देखरेख व सेवा इस कदर की जाती है कि वह इंसानों के बीच रहने के आदि हो जाते हैं.घोड़ों की होती है मालिशघोड़ों की मालिश करना, सुनने में भले ही अटपटा लगे, लेकिन तेज नारायण तिवारी अपने घोड़ों की मालिश करवाते हैं. इससे शारीरिक तौर पर और भी ज्यादा मजबूती मिलती है. इसके अलावा उनके खानपान व अन्य जरूरतों को पूरा कर ही उन्हें इंसानों के बीच रहने का आदि बनाया जाता है.

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