संवाददाता, जमशेदपुर घाघीडीह सेंट्रल जेल में बंदी की तबीयत खराब होने पर एमजीएम या सदर अस्पताल ले जाने के लिए मात्र एक एंबुलेंस (सुमो) है. इसमें आपातकालीन चिकित्सा की व्यवस्था नहीं है. तकनीशियन तथा आधारभूत सुविधा का घोर अभाव है. एंबुलेंस के लिए मात्र एक चालक है. एक मायने में उसे 24 घंटे ऑन ड्यूटी रहना पड़ता है. एक एंबुलेंस के भरोसे 1485 मरीज यहां 1485 बंदी हैं. इनमें 50 महिलाएं हैं. 10 बंदी ऐसे हैं, जिनकी उम्र 70 साल से ज्यादा है. वे शारीरिक तौर पर कमजोर हैं. स्वयं उठ- बैठ नहीं पाते हैं. अगर किसी बंदी की अचानक तबीयत खराब हो जाये, तो मात्र एक एंबुलेंस है. एंबुलेंस से एक बार में एक से ज्यादा मरीज को भेजने की कोई व्यवस्था नहीं है. अचानक बड़ा हादसा हो जाये, तो जेल प्रशासन के समक्ष परेशानी आ सकती है. जन प्रतिनिधि का ध्यान भी इस ओर नहीं है. एंबुलेंस में मरीज के साथ रहती है पुलिस एंबुलेंस में बीमार बंदी के साथ सुरक्षाकर्मी भी होते हंै. जेल प्रशासन के पास वाहन के नाम पर अधीक्षक को मिला एक वाहन छोड़ दिया जाये, तो दूसरा को वाहन उपलब्ध नहीं है. घाघीडीह जेल से एमजीएम अस्पताल की दूरी 10 किलोमीटर से ज्यादा है. हालांकि सदर अस्पताल करीब दो किलोमीटर दूर है. क्या होनी चाहिए एंबुलेंस में एंबुलेंस में आधुनिक ब्लड प्रेशर, पल्स की जानकारी देने वाले इलेक्ट्रानिक मॉनीटर के अलावा ऑक्सीजन का भी प्रावधान होना चाहिए.
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1 चालक, 1 एंबुलेंस, 1485 बंदी फोटो मनमोहन की
संवाददाता, जमशेदपुर घाघीडीह सेंट्रल जेल में बंदी की तबीयत खराब होने पर एमजीएम या सदर अस्पताल ले जाने के लिए मात्र एक एंबुलेंस (सुमो) है. इसमें आपातकालीन चिकित्सा की व्यवस्था नहीं है. तकनीशियन तथा आधारभूत सुविधा का घोर अभाव है. एंबुलेंस के लिए मात्र एक चालक है. एक मायने में उसे 24 घंटे ऑन ड्यूटी […]
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