जमशेदपुर: टाटा स्टील के कर्मचारी पिछले 32 माह से वेज रिवीजन समझौता का इंतजार कर रहे हैं. एनजेसीएस में तो एरियर का भी भुगतान हो गया, वेतन बढ़कर मिलने भी लगा है. लेकिन यहां वेज रिवीजन को लेकर पिछले एक साल से सिर्फ उठापटक चल रहा है.
हर कोई परेशान है, लेकिन इस पर राजनीति भी खूब चल रही है. कुल मिलाकर वेज, कोर्ट और राजनीति में टाटा स्टील के कर्मचारी फंस कर रह गये हैं. आम मजदूर, जिसको ट्रेड यूनियन की राजनीति से दूर-दूर तक मतलब नहीं है, उसको कैसे इस्तेमाल की जाये, इसको लेकर प्रयास किये जा रहें हैं.
सत्ता पक्ष की विवशता, परेशानी व ब्रांडिंग
सत्ता पक्ष में वार्ता के लिए अध्यक्ष पीएन सिंह, महामंत्री बीके डिंडा, डिप्टी प्रेसिडेंट संजीव चौधरी टुन्नु मैनेजमेंट के आला अधिकारियों से मिल रहे हैं. सत्ता में रहने वाले हर अध्यक्ष और पदाधिकारी के साथ कमेटी मेंबरों की संख्या ज्यादा होती है, जो उनकी ब्रांडिंग करने में लगे हुए हैं ताकि यह दिखे कि काफी संघर्ष के बाद वेज रिवीजन समझौता करने में यूनियन कामयाब हो पायी है. सत्ता पक्ष एनजेसीएस से अलग होने का रोना तो रो रहा है, लेकिन प्रमुख वार्ताकार पीएन सिंह खुद एनजेसीएस के समझौता की सराहना कर चुके हैं. परेशानी यह है कि मैनेजमेंट की जिद्द के आगे यूनियन दबाव में है. मजदूरों का दबाव भी है, समझौता भी बेहतर करना है. थोड़ा घाटा भी हो तो ब्रांडिंग ऐसी हो कि मजदूरों को इसका मलाल न हो.
विपक्ष : राजनीति, भविष्य और चुनाव
सत्ता का स्वाद चखकर विपक्ष में रहना मुश्किल होता है. रघुनाथ पांडेय और उनकी टीम ऐसे ही दौर से गुजर रही है. उनको सत्ता पक्ष में मौजूद पदाधिकारियों की विफलता को गिनाना है. इसके माध्यम से राजनीति करनी है. अपने भविष्य को सुरक्षित रखने की चुनौती है और कैसे चुनाव करा लिया जाये, सत्ता को हासिल कर लिया जाये, इसके लिए विपक्ष मेहनत कर रहा है. चुनाव भी कराकर जीतना है और भविष्य को भी सुरक्षित करना भी उनकी मजबूरी है, यहीं वजह है कि विपक्ष हर मोरचे पर आगे आ रहा है, लेकिन वेज पर दबी जुबान से ही बातें हो रही है. क्यों कि ऊपर से कार्रवाई का डर भी सता रहा है.