Jharkhand News: आदिम जनजाति बिरहोर जंगलों में शिकार करना छोड़ अब कर रहे जैविक खेती, बीएड कर रही अनीता

Jharkhand News: बिरहोर समुदाय के लोग कहते हैं कि केवल शनिचर बिरहोर को ट्रैक्टर खेती करने के लिए मिला है. बाकी 40 बिरहोरों को खेती करने के लिए हल-बैल की जरूरत है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 10, 2021 3:58 PM

Jharkhand News: झारखंड के हजारीबाग जिले के बड़कागांव प्रखंड का सतबहिया गांव महूदी पहाड़ की तराई में बसा है. यहां के वाशिंदे आदिम जनजाति बिरहोर (Primitive tribe birhor) अब मुख्यधारा से जुड़ गए हैं. वे आजीविका के लिए खेतीबारी कर रहे हैं. पहले जंगल ही इनका जीवन था. वे न सिर्फ जंगल में रहते थे, बल्कि उस पर निर्भर भी रहते थे. जंगल का संरक्षण भी करते थे. यह उनकी परंपराओं में शामिल था. आज भी कई गांवों में बिरहोर जंगलों में शिकार करते नजर आते हैं, लेकिन बड़कागांव के बिरहोर आदिम जनजाति समुदाय ने अब जैविक खेती करना शुरू कर दिया है. नयी पीढ़ी पढ़ भी रही है. शनिचर बिरहोर की बेटी अनीता कुमारी बीएड कर रही है.

हजारीबाग जिले के सतबहिया में आदिम जनजाति बिरहोरों (Primitive tribes in jharkhand) की जनसंख्या 130 है .यहां के बिरहोर अन्य गांवों के बिरहोरों के लिए प्रेरणा हैं, जबकि प्रखंड के करमाटांड़ ,नापो,पोटंगा के बिरहोर जंगलों में शिकार किया करते हैं. बिर का अर्थ जंगल और होर का अर्थ आदमी होता है यानी जंगल का आदमी. बिरहोर जनजाति में से एक हैं. यह घुमंतू जनजाति मानी जाती है. सतबहिया के बिरहोर आलू, मूली व सरसों की खेती करते हैं. शनिचर बिरहोर 2 एकड़ में धान कर चुके हैं. मुकेश बिरहोर, छोटन बिरहोर 10-10 कट्ठा, बिरसा बिरहोर एक-एकड़, बलकहिया बिरहोर सवा एकड़, मगरा बिरहोर सवा एकड़, महावीर बिरहोर, सुरेंद्र बिरहोर, पांडेय बिरहोर, विनोद बिरहोर, खाटू बिरहोर, पाता बिरहोर, मंजू मसोमात, सुरेश बिरहोर, मुन्ना बिरहोर, चरका बिरहोर धान की खेती कर चुके हैं. अब आलू की खेती में लगे हुए हैं.

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मालती बिरहोर ने बताया कि यहां केवल शनिचर बिरहोर को एक ट्रैक्टर खेती करने के लिए मिला है. बाकी हम सभी 40 बिरहोरों को खेती करने के लिए हल-बैल की आवश्यकता है. यहां के बिरहोर पूर्व में शिकार करते थे और वनोपज एकत्र करते थे. बंदरों का शिकार उन्हें बहुत प्रिय था, लेकिन अब शिकार पर कानूनी प्रतिबंध है. आदिम जनजाति बिरहोर (Primitive tribes group) मुख्यतः रस्सी बनाकर बेचते हैं. पटुआ (पौधा) और चोप की छाल से रस्सी बनती है. खेती-किसानी व मवेशियों को बांधने के लिए रस्सियां बनाते हैं. जोत, गिरबां, सींका, दउरी आदि चीजें रस्सी से बनती हैं. इनमें से जोत व गिरबां गाय बैल को बांधने व हल बैल में काम आते हैं. ये खेती और पशुपालन साथ-साथ करते हैं. इसके अलावा सरई पत्तों से दोना-पत्तल बनाकर बेचते हैं. इससे उनकी आजीविका चलती है. इनकी जीवनशैली अब भी जंगल पर आधारित है.

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आदिम जनजाति समुदाय बिरहोर (Primitive tribes jharkhand) में पढ़े-लिखे बहुत कम ही हैं. हालांकि अब की पीढ़ी शिक्षित होने लगी है. यहां दो बिरहोर मैट्रिक पास हैं. शनिचर बिरहोर की बेटी अनिता कुमारी स्नातक पास है, जो बिरहोर जनजाति में पहली है. फिलवक्त वह बीएड कर रही है. बिरहोरों ने बताया कि पहले अनाज खाने के लिए नहीं मिलता था. जंगली पशुओं का शिकार कर लाते थे और उसी को आग में पकाकर खाते थे. अब वे खेतीबारी कर रहे हैं. जैविक खेती के साथ-साथ पशुपालन भी कर रहे हैं.

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रिपोर्ट : संजय सागर

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