Independence day 2020 : 1857 की लड़ाई में हजारीबाग का योगदान : रामगढ़ बटालियन में भारतीय सैनिकों के साथ भेदभाव और किसानों से जबरन जमीन हड़पना विद्रोह का बना कारण

Independence Day 2020 : वैसे तो झारखंड 1600 ई से ही ईस्ट इंडिया कंपनी की गिरफ्त में था. अंग्रेजों द्वारा शोषण व अत्याचार से यहां 1857 से पहले ही अंग्रेजों के खिलाफ कई बार जन आंदोलन भी हो चुका था. लेकिन, 1857 की क्रांति ने ब्रिटिश शासन को हिला दी थी. 10 मई, 1857 को मेरठ में क्रांति शुरू हुई, जिसकी चिंगारी हजारीबाग में 25 जुलाई, 1857 को पहुंची. इस दिन यहां विद्रोह शुरू हो गया था.

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 14, 2020 10:04 PM

Independence Day 2020 : बड़कागांव (संजय सागर) : वैसे तो झारखंड 1600 ई से ही ईस्ट इंडिया कंपनी की गिरफ्त में था. अंग्रेजों द्वारा शोषण व अत्याचार से यहां 1857 से पहले ही अंग्रेजों के खिलाफ कई बार जन आंदोलन भी हो चुका था. लेकिन, 1857 की क्रांति ने ब्रिटिश शासन को हिला दी थी. 10 मई, 1857 को मेरठ में क्रांति शुरू हुई, जिसकी चिंगारी हजारीबाग में 25 जुलाई, 1857 को पहुंची. इस दिन यहां विद्रोह शुरू हो गया था.

उस समय हजारीबाग के अंतर्गत रामगढ़, चतरा, गिरिडीह और कोडरमा आता था. 1857 की लड़ाई में हजारीबाग जिले क्षेत्र का महत्वपूर्ण योगदान रहा. हजारीबाग क्षेत्र के अनुसूचित जाति, जनजाति एवं पिछड़ी जातियों के लोगों ने इसलिए विद्रोही सिपाहियों का साथ दिया, क्योंकि अंग्रेजों ने उनसे जबरन जमीन हड़प ली थी. इतना ही नहीं, किसानों पर अंग्रेजों द्वारा मनमानी कर वसूली की जाती थी एवं रामगढ़ सैनिक बटालियन में भारतीय सैनिकों के साथ भेदभाव की जाती थी.

यही कारण है कि अंग्रेजों के खिलाफ हजारीबाग में 27 जुलाई को 1857 की क्रांति आग की तरह फैल गयी. दानापुर के सैनिकों एवं शाहाबाद की बाबू कुंवर सिंह के विद्रोह की सूचना मिलने पर ही हजारीबाग, रांची, चाईबासा और पुरुलिया के सैनिकों ने विद्रोह का झंडा लहराया था. इसका नेतृत्व बाबू कुंवर सिंह के भाई अमर सिंह ने की थी.

30 जुलाई को सैनिकों ने सबसे पहले प्रिंसिपल असिस्टेंट तथा अंग्रेज अधिकारियों के बंगलों को आग लगा दी. प्रिंसिपल असिस्टेंट के बंगले का सारा सामान जल गया और उसके दो घोड़े विद्रोही ले गये. सरकारी दफ्तरों तथा महाफीस खाना को भी जला दिया गया. आग और धुआं सभी जगह फैल गया. उसी दिन 3:00 बजे हजारीबाग जेल से कैदियों को छुड़ा लिया गया. खजाना लूटने वालों के हाथ 72,000 नगद और 17,875 रुपये के स्टांप पेपर तथा डाक टिकट लगे. यह सब करने के बाद उनका ध्यान अंग्रेज अफसरों को पकड़ने की ओर गया, लेकिन तब तक वह सभी भाग चुके थे.

इनका पीछा करते हुए विद्रोही बगोदर तक गये और जब उन्हें नहीं पकड़ सके, तो चौक से लूटपाट की गयी. गवर्नर जनरल कैनिंग को इस विद्रोह की खबर तार के द्वारा मिली. इसे रामगढ़ के राजा शंभू नारायण सिंह ने बगोदर तार घर से भेजा था. कैनिंग बंगाल के लेफ्टिनेंट गवर्नर फ्रेडरिक से नाराज हो गये. उसने हेलिडे को कहा कि तत्कालीन प्रगति में रामगढ़ के राजा को प्रोत्साहित करें. लॉर्ड कैनिंग ने रामगढ़ राजा को तार द्वारा सूचित किया कि उनकी रक्षा के लिए अंग्रेज सेना भेजी जा रही थी.

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उधर, अंग्रेजों की खुश करने की दृष्टि से रामगढ़ राजा ने अपने भाई कुमार रामनाथ सिंह को हजारीबाग के प्रमुख नागरिकों से विचार- विमर्श करने को भेजा. अधिकारियों की सहायता के लिए 20 बैरकदाज को भी तैनात किया गया. इस घटना से राजा के अधीनस्थ जमींदार भी उनसे नाराज थे. उनमें से अधिकांश विद्रोहियों को साथ दिया. विद्रोह के शुरू होते ही राजा की स्थिति इतनी दयनीय हो गयी थी कि उसने महल के सभी दरवाजे बंद कर लिए और सारी रात अपनी जिम्मेदारी और ब्रिटिश राज की सुरक्षा के लिए भगवान से प्रार्थना करते रहे.उसके भाई रामनाथ सिंह लोगों को समझा- बुझा रहे थे. फिर भी अनेक लोग विद्रोह में शामिल हो गये.

हजारीबाग पर कब्जा करने के बाद वहां के विद्रोही पिठोरिया मार्ग होकर रांची की ओर चल पड़े. उन्होंने रामगढ़, रांची मार्ग को जाना ठीक नहीं समझा, क्योंकि ले ग्राहम की टुकड़ी उसी मार्ग से हजारीबाग की ओर बढ़ रही थी. पिठोरिया के गणेश जगत लाल सिंह ने उन्हें रोकने के लिए पिपरिया घाट में अपने आदमियों को तैनात कर रखा था. उसके आदमियों ने मिट्टी के टीले बनाकर और उसके पीछे छिप कर उस मार्ग को अवरुद्ध कर दिया था, जिससे होकर हजारीबाग के विद्रोही रांची की ओर बढ़ रहे थे.

हजारीबाग में विरोधियों को दबाने के लिए प्रिंसिपल असिस्टेंट ने 200 अंग्रेज सैनिकों को बगोदर में तैनात करने का आग्रह किया था. उसने 50 हाथियों को जो इलाहाबाद जा रहे थे बगोदर में विद्रोहियों को लड़ने के लिए रोक लिया था. उसने सैनिक को भी बगोदर भेजने का आग्रह किया था. उसके आग्रह पर सिख कंपनी को बगोदर की ओर भेजा गया. 30 जुलाई को जब 1 या 2 बजे दिन में हजारीबाग में सैनिकों द्वारा विद्रोह किये जाने की सूचना अंग्रेजों को मिली तब से अंग्रेज अधिकारियों में खलबली मच गयी थी.

हजारीबाग के उपायुक्त कप्तान सिम्पसन सीतागढ़ा के रास्ते पैदल भागते हुए अटकागांंव पहुंचे. वहां से गांव तक जंगलों की रास्ते होते हुए इचाक गये थे. यहां ब्राह्मणों ने इनकी गर्मजोशी से स्वागत किया और आगे यात्रा के लिए घोड़े दिये. घोड़े से हीअंग्रेज 31 जुलाई को 2 बजे रात में बगोदर पहुंच कर तार के माध्यम से कोलकाता में ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकारियों एवं अंग्रेजों को इसकी सूचना दी थी.

1 अगस्त को कप्तान रांची पहुंच कर कमिश्नर डाल्टन को इसकी जानकारी दी. हजारीबाग में विद्रोहियों को कुचलने के लिए ले ग्राह्म ने 2 सूबेदार, 2 जमींदार, 9 नायक, 3 ड्यूल घरों एवं 2 हजार सिपाहियों के साथ भेजा. ले ग्राह्म को रामगढ़ पहुंचते ही उन्हीं की टुकड़ी ने माधव सिंह सूबेदार और नादिर अली खान के नेतृत्व में विद्रोह शुरू कर दिया. इन विद्रोही सिपाहियों ने तोप- गोलों और बारूद के साथ बैलगाड़ियों और 4 हाथियों को अपने कब्जे में कर लिया. जमींदार और कुछ वफादार घुड़सवार सैनिकों की सहायता से ग्राह्म अपनी जान बचा कर भाग निकला.

इस बीच अंग्रेज अधिकारी डाल्टन हजारीबाग पहुंचकर रामगढ़ राजा से संपर्क किया. अपने छोटे सैनिक दल से हजारीबाग को शांत करने का आग्रह किया. 5 अगस्त को डाल्टन ने रामगढ़ के एक सूबेदार, एक जमींदार, 2 नायक, 17 सिपाहियों को हजारीबाग जेल की सुरक्षा के लिए तैनात कर दिया गया. हजारीबाग के प्रिंसिपल असिस्टेंट मेजर सिंपसन के रानीगंज भाग जाने के बाद डाल्टन ने लोहरदगा के असिस्टेंट कमिश्नर कैप्टन डेविस्को को हजारीबाग का प्रभार सौंपा.

हजारीबाग के विद्रोही सैनिक बिहार में कुंवर सिंह से मिलने के लिये जा रहे थे. उन्हें रोकने के लिए अंग्रेज अधिकारियों ने 2 कंपनियां अंग्रेज मद्रासी सैनिकों की टुकड़ियों को भेज दिया गया. रामगढ़ में घटवाल लोग विद्रोहियों को साथ दे रहे थे. उस दौरान ग्राह्म ने सभी घरवालों को धमकी दिया कि जो विद्रोहियों को साथ देगा उसे मार दिया जायेगा. फिर भी घटवाला और विद्रोही नहीं हारे. वे अंग्रेज अधिकारियों के साथ संघर्ष करते रहे. यह लोग महाजनों द्वारा हड़पी गयी जमीन वापस लेने के लिए अंग्रेजों से लड़ रहे थे.

11 सितंबर को हजारीबाग से रांची के डोरंडा पहुंच कर विद्रोही 4 तोपों समेत काफी मात्रा में गोला-बारूद और खजाना लूट लिया. विद्रोही वीर कुंवर सिंह से मिलने के लिए जा रहे थे. रास्ते में ही 17 सितंबर, 1857 को अंग्रेज का पक्षधर भोला सिंह सैनिकों के साथ रामगढ़ घाटी पहुंच कर विद्रोहियों को रोक दिया. विद्रोहियों एवं भोला सिंह के बीच काफी संघर्ष हुआ. इससे बदला लेने के लिए डाल्टनगंज में विद्रोही अंग्रेज समर्थकों जमींदारों की हत्या करने लगे और घर जला रहे थे. 6000 संताल पुरुलिया के लिए बढ़ रहे थे. रास्ते में गोला चैनपुर, रामपुर को उन्होंने पूरी तरह नष्ट कर दिया था. रामगढ़ के राजा ने उन्हें रोकने की कोशिश की थी, लेकिन उसके कई लोग मारे गये थे.

चतरा के नादिर अली खां ने तोप लूटकर अंग्रेजों को ही मार डाला

पलामू के बाद 30 सितंबर को विद्रोहियों का दल चतरा पहुंचा. इस दल में 700 सिपाही एवं अन्य ग्रामीण थे. इसकी खबर मिलने पर कमिश्नर डाल्टन ने अंग्रेज सेना को तैनात कर दिये. 2 अक्टूबर को 9:00 बजे विद्रोही सेना 2 टुकड़ी में बंट कर सरकारी खजाने की लूटपाट करने लगे. यह देख कर मेजर इंग्लिश ने विद्रोही सैनिकों पर हमला कर दिया. विद्रोही सिपाही कमजोर होने के बावजूद भी डटकर मुकाबला किया.

चतरा शहर के पश्चिम क्षेत्र में विद्रोही सुरक्षित ठहरे हुए थे. वहां मेजर इंग्लिश ने अंग्रेज सिपाहियों के साथ अचानक धावा बोल दिया. 300 मीटर की दूरी पर से ही एनफील्ड राइफल से अंग्रेज सिपाही गोली चलाना शुरू कर दिया. इसके जवाब में विद्रोही भी गोली चलाये. दोनों ओर से अंधाधुंध गोलियां बरस रही थी. इसी दौरान मेजर सिंपसन और लेफ्टिनेंट अल के सिख सैनिकों ने एक सिपाही और एक जमादार को मार डाला. इसके बाद विद्रोही सैनिक और तीव्र होकर गोलियां बरसाना शुरू कर दिया. सूबेदार नादिर अली खान ने अंग्रेज सिपाहियों के तोपों पर कब्जा कर लिया.

इस दौरान सूबेदार अली खान ने अपने साथियों का बदला लेते हुए कई अंग्रेज सैनिकों को मार गिराया, लेकिन बंगाल एनआई के लेफ्टिनेंट जेसीसी डोंट ने बांयीं ओर से सूबेदार नादिर अली खान पर हमला कर दिया. इस हमले में वह बुरी तरह से घायल हो गया. इसके बावजूद भी विद्रोही सिपाही अंग्रेजों से लड़ते रहे. 50 विद्रोही सिपाही बुरी तरह घायल हो गये. जय मंगल पांडे और सूबेदार माधव सिंह उसका नेतृत्व कर रहे थे. युद्ध चल ही रहा था कि माधव सिंह सिपाहियों की टुकड़ी के साथ चतरा बाजार की ओर भाग गये. उसे पकड़ने के लिए अंग्रेजों ने 1000 रुपये का इनाम घोषित किया, लेकिन इसका पता नहीं चला. माधव सिंह के भाग जाने के बाद भी अंग्रेजों के साथ युद्ध होता रहा. इस युद्ध में अंग्रेज की ओर से 46 अंग्रेज और 10 सिख मारे गये थे, जबकि 4 अंग्रेज सिपाही भी गंभीर रूप से घायल हुआ था.

इस बीच 3 अक्टूबर को जय मंगल पांडे और नादिर अली खान पकड़े गये. 1857 एक्ट के तहत उन पर मुकदमा चलाया गया. इसी मुकदमे के तहत 4 अक्टूबर को चतरा के हर तालाब के सामने उन्हें फांसी दी गयी. लेकिन, विद्रोहियों के 2 अन्य प्रमुख नेता विश्वनाथ राय और गणपत राय भागने में सफल रहे थे.

77 भारतीय सिपाहियों को आम के पेड़ में दी गयी फांसी

चतरा तालाब के पास अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने वाले विद्रोहियों को गिरफ्तार कर उन्हें आम के पेड़ों में फांसी दी गयी. इसके बाद 77 मृतक सिपाहियों को एक साथ ही दफनाया गया. अगले दिन 150 एवं 10अन्य मृतकों दफना दिया गया था. चतरा के हर तलाब को आज भी फांसीहर पोखरा के नाम से जाना जाता है.

Posted By : Samir Ranjan.

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