14.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

प्रशासन नहीं था अलर्ट, साल भर से हो रही थी घटनाएं

सुरजीत सिंह हजारीबाग : हजारीबाग शहर और इसके आसपास के क्षेत्रों में पिछले एक वर्ष से सांप्रदायिक हिंसा की घटनाएं हो रही थीं. इन घटनाओं को रोक नहीं पाने के कारण ही पिछले वर्ष 24 अक्तूबर को छड़वा डैम मेला में बड़ी घटना हुई थी, जिसमें एक व्यक्ति की मौत हो गयी थी. भीड़ ने […]

सुरजीत सिंह
हजारीबाग : हजारीबाग शहर और इसके आसपास के क्षेत्रों में पिछले एक वर्ष से सांप्रदायिक हिंसा की घटनाएं हो रही थीं. इन घटनाओं को रोक नहीं पाने के कारण ही पिछले वर्ष 24 अक्तूबर को छड़वा डैम मेला में बड़ी घटना हुई थी, जिसमें एक व्यक्ति की मौत हो गयी थी. भीड़ ने 16 गाड़ियों को फूंक दिया था. इस घटना के बाद भी पुलिस-प्रशासन ने ऐसा कुछ भी नहीं किया, जिससे शहर और इसके आसपास के क्षेत्रों में शांति का माहौल बनाया जा सके.
पुलिस मुख्यालय के स्तर से हजारीबाग पुलिस को पर्याप्त फोर्स उपलब्ध नहीं कराये गये. हजारीबाग की पुलिस भी अलर्ट नहीं थी. केरेडारी घटना के बाद तो शहर में फोर्स की संख्या में और कमी आ गयी. हजारीबाग में सांप्रदायिक घटनाओं का सिलसिला पिछले साल 30 अप्रैल को कटकमसांडी थाना क्षेत्र के उलांज गांव में हुआ. इसके बाद लगातार आठ घटनाएं हुई, लेकिन प्रशासन की तरफ से ठोस कार्रवाई नहीं की गयी. घटनाओं को लेकर दर्ज प्राथमिकी के आरोपियों को पकड़ा नहीं गया. घटना को लेकर दर्ज प्राथमिकी का समय पर सुपरविजन भी नहीं किया गया.
तत्कालीन आइजी की रिपोर्ट पर नहीं हुई कार्रवाई
24 अक्तूबर, 2015 को छड़वा डैम मेला में हुई हिंसा के बाद तत्कालीन जोनल आइजी तदाशा मिश्र ने पुलिस मुख्यालय को रिपोर्ट भेजी थी. इसमें कहा गया था कि पहले की घटनाओं पर रोक लगाने का प्रयास नहीं किया गया.
आइजी ने पुलिस-प्रशासन की निष्पक्षता पर भी सवाल उठाया था. उन्होंने तर्क दिया था कि एक ही घटना को लेकर दोनों पक्षों की तरफ से दर्ज की गयी प्राथमिकी में एक (सदर थाना कांड संख्या-1027-2015) का सुपरविजन किया गया, जबकि दूसरी प्राथमिकी (कांड संख्या-1028-2015) का सुपरविजन नहीं किया गया. आइजी की रिपोर्ट पर न तो सरकार के स्तर से और न ही पुलिस मुख्यालय के स्तर से कोई कार्रवाई नहीं की गयी.
उचित फोर्स की तैनाती नहीं थी
जिस तरह केरेडारी थाना क्षेत्र में 15 अप्रैल को दो गुटों के बीच हिंसक झड़प और आगजनी की घटनाएं हुई, उसे देखते हुए 16-17 अप्रैल को हजारीबाग शहर में फोर्स की तैनाती नहीं की गयी थी.
17 अप्रैल को जिस जगह (खिरगांव चौक) हिंसा की शुरुआत हुई, उस वक्त वहां पर सिर्फ 10-15 पुलिसकर्मी तैनात थे. भीड़ के सामने इन पुलिसकर्मियों की संख्या बिल्कुल कम थी. यही कारण है कि जब भीड़ में शामिल लोग तोड़फोड़ व आगजनी कर रहे थे, तो पुलिस मूकदर्शक बनी रही. घटना के बाद में शहर की सुरक्षा-व्यवस्था चाक-चौबंद नहीं थी. जो फोर्स पिछले दो-तीन दिनों से तैनात थी, वह काफी थक गयी थी.
नये फोर्स के आते-आते रात के करीब 10 बज गये थे. रैफ के जवान सुबह में हजारीबाग पहुंचे. उल्लेखनीय है कि वर्ष 1989 के दंगा के बाद कुछ साल पहले तक हजारीबाग में रामनवमी व दशमी के जुलूस के दौरान बीएसएफ के जवानों की भी तैनाती की जाती थी. हर जगह पुलिस फोर्स की तैनाती की जाती थी. जिस कारण किसी तरह की घटना करने में लोग सफल नहीं हो पाते थे.
दिन के 1.00 बजे के बाद दिखी पुलिस की सक्रियता
17 अप्रैल की घटना के बाद शाम में प्रशासन ने नगर निगम क्षेत्र में कर्फ्यू लगा दिया था. इसका प्रचार भी किया गया. इसके बाद भी कुछ लोग आराम से शहर में घुमते रहे. सिर्फ झंडा चौक पर लोगों को रोका गया. शहर के अन्य हिस्से इंद्रपुरी, नवाबगंज, मटवारी, कोर्रा, बंशीलाल चौक आदि जगहों पर पुलिस की तैनाती नहीं दिखी. सुबह में भी यही हालात थे.
कर्फ्यू है, निषेधाज्ञा लागू है या सबकुछ सामान्य है, यह पता ही नहीं चल रहा था. लोग घर से निकल रहे थे. कहीं रोका जा रहा था, तो कहीं किसी को कोई टोकने वाला नहीं था. दिन के 1.00 बजे के बाद शहर में हर फोर्स ने चहलकदमी शुरू की. इसके बाद सड़कों पर सन्नाटा पसर गया.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें