कार्तिक उरांव के गांव के मिडिल स्कूल में पढ़ाई बंद, जानें क्या है वजह

गुमला से 10 किमी दूरी पर लिटाटोली गांव है. इसी गांव में प्रतिभा के धनी व कुशाग्र बुद्धि के स्वर्गीय कार्तिक उरांव का जन्म हुआ था. कार्तिक उरांव ने अभियांत्रिकी के क्षेत्र में महारत हासिल कर गुमला जिले का नाम रोशन किया था.

By Prabhat Khabar | October 28, 2021 1:06 PM

गुमला : गुमला से 10 किमी दूरी पर लिटाटोली गांव है. इसी गांव में प्रतिभा के धनी व कुशाग्र बुद्धि के स्वर्गीय कार्तिक उरांव का जन्म हुआ था. कार्तिक उरांव ने अभियांत्रिकी के क्षेत्र में महारत हासिल कर गुमला जिले का नाम रोशन किया था. लेकिन दुर्भाग्य है. दुनिया के सबसे बड़े ऑटोमैटिक पावर स्टेशन का प्रारूप ब्रिटिश सरकार को देने वाले कार्तिक उरांव के गांव में स्थित प्रोजेक्ट कार्तिक उरांव हाई स्कूल लिटाटोली की स्थिति ठीक नहीं है.

कारण, स्कूल का भवन जर्जर हो गया है. वर्ष 1990 में बना स्कूल भवन बेकार हो गया. भवन टूट कर गिर रहा है. जर्जर भवन के कारण ही यहां आठवीं कक्षा में इस वर्ष एक भी नामांकन नहीं हुआ. इस कारण आठवीं में पढ़ाई बंद कर दी गयी. जबकि छठवीं व सातवीं कक्षा में दो साल पहले ही पढ़ाई बंद कर दी गयी थी.

अभी सिर्फ नौवीं व दसवीं कक्षा में पढ़ाई हो रही है. फिलहाल में नौवीं व दसवीं कक्षा में 200 छात्र हैं. हालांकि यहां देखने के लिए कई भवन हैं. परंतु सभी भवन बेकार है. भवन की जो स्थिति है. कभी भी ध्वस्त हो सकता है. वहीं भौतिकी, संस्कृत, इतिहास, नागरिक शास्त्र व खेल विषय के शिक्षक नहीं है.

स्कूल में शिक्षकों की स्वीकृत पद आठ है. इसमें छह शिक्षक हैं. तीन साल पहले यहां 315 छात्र थे. जो अब घट कर 200 बच गये हैं. अगर जल्द इस स्कूल की समस्या दूर नहीं की गयी तो स्कूल को ही बंद करना पड़ सकता है. प्रभारी एचएम संदीप टोप्पो ने बताया कि स्कूल में समस्याओं का अंबार है. राज्यसभा सांसद, डीसी व डीइओ को पत्र लिखकर स्कूल में चहारदीवारी, भवन व चापानल बनवाने की मांग की है, लेकिन कोई ध्यान नहीं देता.

समस्या, जिसका निराकरण जरूरी है

स्कूल में एक चापानल है. गरमी में पानी नहीं निकलता है. छठवीं, सातवीं व आठवीं कक्षा में पढ़ाई बंद होने के बाद यहां मध्याह्न भोजन योजना भी बंद कर दी गयी है. कूल की चहारदीवारी नहीं है. असामाजिक तत्व व जानवर स्कूल में घुस जाते हैं. स्कूल के खिड़की व दरवाजा गायब हो रहा है. बेंच डेक्स की कमी है. सबसे बड़ी समस्या पानी की है. अगर बच्चों को प्यास लगती है तो नजदीक के गांव पानी पीने जाते हैं. शौचालय की मरम्मत हुई. परंतु पानी संकट के कारण उपयोग नहीं हो पाता है.

भवन बनाकर छोड़ दिया, उपयोग नहीं

स्कूल परिसर में वर्ष 2012 में 12 कमरों का भवन बनना शुरू हुआ था. वर्ष 2015 में भवन बनकर तैयार हो गया. भवन 64 लाख रुपये की लागत से बना है. भवन बना. लेकिन खिड़की व दरवाजा नहीं लगाया गया. इस कारण अभी तक स्कूल को हैंड ओवर नहीं किया गया है. छह साल में स्कूल भवन जर्जर व भूत बंगला हो गया है. खिड़की व दरवाजा नहीं लगा है. अगर कुछ बहुत लगा था तो उसकी चोरी हो गयी है.

खेल ग्राउंड नहीं है, अभ्यास कहां करे?

स्कूल के बगल में स्कूल के नाम से अपनी जमीन है. लेकिन यह उबड़ खाबड़ है. छात्रों का कहना है कि अगर इस ग्राउंड को समतल कर दिया जाता तो यहां विभिन्न प्रकार की प्रतियोगिता का आयोजन किया जा सकता है.

Next Article

Exit mobile version