गुमला, जगरनाथ : दक्षिणी छोटानागपुर के गुमला जिला जो जंगल एवं पहाड़ों से घिरा है. गुमला जिले में कई परंपरा विलुप्त हो रही है. लेकिन, आदिम जनजाति आज भी अपनी परंपरा को जिंदा रखे हुए है. सबसे खुशी की बात है कि परंपराओं को जीवित रखने में आदिम जनजाति के युवाओं की भूमिका अहम है. आज भी पढ़े-लिखे युवा अपने पूर्वजों से सुनी कहानियों एवं संस्कृति के आधार पर प्राचीन परंपरा को जीवित रखते हुए हर साल उस परंपरा को एक उत्सव के रूप में मनाते हैं. इन्हीं परंपराओं में डोल जतरा है. डोल जतरा ठीक होली पर्व के दिन शुरू होता है जो तीन दिनों तक चलता है. डोल जतरा का यह उत्साह आदिम जनजातियों में देखने को मिलता है.
बिशुनपुर के पोलपोल पाट में हर साल डोल जतरा का आयोजन
बिशुनपुर प्रखंड के पठारी इलाका पोलपोल पाट में हर साल डोल जतरा का आयोजन किया जाता है. इस बार नौ, 10 और 11 मार्च को पोलपोल पाट में असुर जनजाति के लोगों द्वारा डोल जतरा का आयोजन किया गया है. असुर जनजाति गांवों में डोल जतरा को लेकर काफी उत्साहित हैं. लोग डोल जतरा की तैयारी भी शुरू कर दिये हैं. डोल जतरा की तैयारी की खुशी में आदिम जनजातियों में नये परिधान भी पहनने की परंपरा है. समय के साथ अब लोग नये परिधान में वर्तमान युग के कपड़ा का धारण करते हैं, लेकिन डोल जतरा में पूजा, पाठ की जो पद्धति है. वह आज भी पुरानी है.
पारंपरिक खान पान रहेगा आकर्षण
बिशुनपुर के राजू असुर, शांति असुर, कविता असुर ने कहा कि समय ने परंपरा, संस्कृति, रहन सहन, खानपान व वेशभूषा में बदलाव लाया है. परंतु, पूर्वजों के समय से चली आ रही परंपरा आज भी जीवित है. इन्हीं में हमारे पहाड़ी इलाका में आदिम जनजाति वर्ग के लोग होली पर्व में डोल जतरा लगाते हैं. डोल जतरा का अपना एक महत्व है. लोगों का मिलना जुलना होता है. शादी ब्याह को लेकर लड़का लड़की भी देखने की परंपरा है. इसके अलावा डोल जतरा में पारंपरिक खान पान का स्टॉल लगाया जाता है. ताकि वर्तमान पीढ़ी डोल जतरा के महत्व व मान्यताओं को समझ सके और इसे जीवित रख सके. इस वर्ष बृहत रूप से डोल जतरा का आयोजन करने की तैयारी की गयी है.
डोल जतरा को लेकर लोगों में काफी उत्साह : मुखिया
मुखिया प्रियंका असुर ने कहा कि होली पर्व के दिन से डोल जतरा शुरू होगा. इसकी तैयारी शुरू हो गयी है. इसमें आदिम जनजातियों की संस्कृति व प्राचीन परंपराओं को देखने को मिलेगा. डोल जतरा को लेकर लोगों में उत्साह है.
डोल जतरा लगाने की परंपरा की शुरूआत : विमल असुर
वहीं, अध्यक्ष विमल असुर कहते हैं एक समय था कि डोल जतरा लगाने की परंपरा खत्म हो रही थी. लेकिन, बुजुर्गों से प्राचीन परंपराओं की जानकारी लेकर फिर से डोल जतरा लगाने की परंपरा की शुरूआत की गयी है, जो आगे भी जारी रहेगा.